रविवार, 30 सितंबर 2012

परख.....

नजरो से तुल ही जाती हे,

हेसियत हर शक्स की |

हो ही जाती हे जहा परख,

वक्त आने पर दक्ष की ||

पट

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यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !ग़ज़ल]

!! ग़ज़ल !!
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये !!

आंगन मे खून कि न बहे

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हैं प्यार में नाकारा......!!!

हैं प्यार में नाकारा......!!!

इल्जाम है हम जिन्दगी मे अब किसी काम के ना रहे,;
क्या जरुरत थी "हुश्न दीदार" से हमें नाकारा

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यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !ग़ज़ल]

!! ग़ज़ल !!
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये !!

आंगन मे खून कि न बहे

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यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !ग़ज़ल]

!! ग़ज़ल !!
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये !!

आंगन मे खून कि न बहे

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यूँ मजहबों में बंट ना संसार बांटिये !...[ग़ज़ल]

!! ग़ज़ल !!
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये !!

आंगन मे खून कि न बहे

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यूँ मजहबों में बंट ना संसार बांटिये !...[ग़ज़ल]

!! ग़ज़ल !!
यूँ मजहबों में बंट ना संसार बांटिये !
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये !!

आंगन मे खून कि न बहे

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दो क्षणिकांये

ब्‍यूटी पार्लर
ब्‍यूटी पार्लर ने उनकी

अजब तस्‍वीर खींची।

जैसे लग गई हो

किसी बंदरियां के

हाथ कैंची।।

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बयां हुश्न का कर..गजल लिखते हैं....

बयां हुश्न का कर..गजल लिखते हैं....

गहरे जुल्फों में उलझ गये,माना था उन्हें सनम ;
नसीब तो देखो, सोचा था, रहेंगे इनके

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शनिवार, 29 सितंबर 2012

चाँद की है क्या मजाल ?......!!!

जब उनकी नज़र जो इनायत हुई हम पर,
सब की निगाहों मे मेरा ही वजूद छा गया...!
महफ़िल में आज सब की नजर हम पर,
जब से

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मेरे ह्रदय में समाई

तुमने ली जब मद-मस्त अंगढ़ाई...


हृदय के रुधिर वेग मे फ़ैली पंचम तान
अंग -अंग मे शिहरित ओस का स्नान
पुष्प सा पुष्पित

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मेरे ह्रदय में समाई

तुमने ली जब मद-मस्त अंगढ़ाई...


हृदय के रुधिर वेग मे फ़ैली पंचम तान
अंग -अंग मे शिहरित ओस का स्नान
पुष्प सा पुष्पित

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मेरे ह्रदय में समाई

<strong>तुमने ली जब मद-मस्त अंगढ़ाई.....

हृदय के रुधिर वेग मे फ़ैली पंचम तान
अंग -अंग मे शिहरित ओस का स्नान
पुष्प सा

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मेरे ह्रदय में समाई

<strong
>तुमने ली जब मद-मस्त अंगढ़ाई.....

हृदय के रुधिर वेग मे फ़ैली पंचम तान
अंग -अंग मे शिहरित ओस का स्नान
पुष्प सा

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मेरे ह्रदय में समाई

<strong
>तुमने ली जब मद-मस्त अंगढ़ाई

...।

हृदय के रुधिर वेग मे फ़ैली पंचम तान
अंग -अंग मे शिहरित ओस का स्नान
पुष्प सा

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मेरे ह्रदय में समाई

<strong
>तुमने ली जब मद-मस्त अंगढ़ाई

...।

हृदय के रुधिर वेग मे फ़ैली पंचम तान
अंग -अंग मे शिहरित ओस का स्नान
पुष्प सा

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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

प्रेम और प्रबंध विवाह

प्रेम विवाह मे आप एक दूसरे को, काफ़ी अरसे से जानते हैं,
मेरी होने वाली संगिनी देवी का काली रूप है, यह भली भाँति

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मैं क्या करूँ.....

मैं क्या कहूँ
मैं क्या करूँ
क्या मैं ये कहूँ की
तुम बहुत बुरी थी
बेवफा थी
धोखेबाज थी
तो सुन लो मैं
नहीं कह

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मैं क्या करूँ.....

मैं क्या कहूँ

मैं क्या करूँ

क्या मैं ये कहूँ की

तुम बहुत बुरी थी

बेवफा थी

धोखेबाज थी

तो सुन लो मैं

नहीं कह

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मैं क्या करूँ.....

मैं क्या कहूँ

मैं क्या करूँ

क्या मैं ये कहूँ की

तुम बहुत बुरी थी

बेवफा थी

धोखेबाज थी

तो सुन लो मैं

नहीं कह

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ज़िंदगी से शिकवा । (गीत)

अय ज़िंदगी, तुं ही बता, शिकवा करें भी तो क्या करें..!

गले लगाई है मर्ज़ी से, अब करें भी तो क्या करें..!


(शिकवा=

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उम्र तमाम नाकाम रहा ।

उम्र तमाम नाकाम रहा ।
हर दाव पै किस्मत आजमाता रहा ,
हर बार हार कर पछ्ताता रहा
हारा हुआ जुआरी बदनाम रहा
उम्र तमाम

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उम्र तमाम नाकाम रहा ।

उम्र तमाम नाकाम रहा ।
हर दाव पै किस्मत आजमाता रहा ,
हर बार हार कर पछ्ताता रहा
हारा हुआ जुआरी बदनाम रहा
उम्र तमाम

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उम्र तमाम नाकाम रहा ।
हर दाव पै किस्मत आजमाता रहा ,
हर बार हार कर पछ्ताता रहा
हारा हुआ जुआरी बदनाम रहा
उम्र तमाम

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उम्र तमाम नाकाम रहा ।

उम्र तमाम नाकाम रहा ।

हर दाव पै किस्मत आजमाता रहा ,
हर बार हार कर पछ्ताता रहा
हारा हुआ जुआरी बदनाम रहा
उम्र

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उम्र तमाम नाकाम रहा ।

उम्र तमाम नाकाम रहा ।

हर दाव पै किस्मत आजमाता रहा ,
हर बार हार कर पछ्ताता रहा
हारा हुआ जुआरी बदनाम रहा
उम्र

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उम्र तमाम नाकाम रहा ।

उम्र तमाम नाकाम रहा ।

हर दाव पै किस्मत आजमाता रहा ,
हर बार हार कर पछ्ताता रहा
हारा हुआ जुआरी बदनाम रहा
उम्र

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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

कवीता/ निष्कर्ष

 

आज सुबह जब आंख खुली
चन्द शब्द सिराहने बैठे थे ।
हौले - धीरे जुडने लगे
जैसे बनी हो, कोई गीत माला ।
कोई ढलना चाहता

निष्कर्ष कौशल

कवीता/ निष्कर्ष

 

आज सुबह जब आंख खुली
चन्द शब्द सिराहने बैठे थे ।
हौले - धीरे जुडने लगे
जैसे बनी हो, कोई गीत माला ।
कोई ढलना चाहता

निष्कर्ष कौशल

उम्र तमाम नाकाम रहा ।

उम्र तमाम नाकाम रहा ।

हर दाव पै किस्मत आजमाता रहा ,
हर बार हार कर पछ्ताता रहा
हारा हुआ जुआरी बदनाम रहा
उम्र

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उम्र तमाम नाकाम रहा ।

उम्र तमाम नाकाम रहा ।

हर दाव पै किस्मत आजमाता रहा ,
हर बार हार कर पछ्ताता रहा
हारा हुआ जुआरी बदनाम रहा
उम्र

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दिल और जला ले मेरा

दिल और जला ले मेरा
क्या दिल नही भरा तेरा मुझे प्यार के

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दिल और जल ले मेरा

दिल और जल ले मेरा
क्या दिल नही भरा तेरा मुझे प्यआर के

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दिल की दरार

दिल की दरार । (गीत)

दिल की दरार से, दर्द का लावा बह रहा है ।

दोस्त, राख बन कर अब वो, पछतावा कर रहा है

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गौरवमय राजस्थान

महाराणा प्रताप के शौर्य का
बखान है राजस्थान
मीरा के भक्तिमय गीतों का
गान है राजस्थान
मां पन्नाधाय का ममतामय

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कविता का भूत

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कविता का भूत

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कविता का भूत

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बूढ़ा पेढ़,

मैं अपने आप को बूढ़े पेढ़ के साथ मिलाकर
सोचता हूँ, कितनी त्रासदी हैं उन बुजुर्गों की
जिन्हें अब बेकार का जंजाल

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बूढ़ा पेढ़,

मैं अपने आप को बूढ़े पेढ़ के साथ मिलाकर
सोचता हूँ, कितनी त्रासदी हैं उन बुजुर्गों की
जिन्हें अब बेकार का जंजाल

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बूढ़ा पेढ़,

मैं अपने आप को बूढ़े पेढ़ के साथ मिलाकर
सोचता हूँ, कितनी त्रासदी हैं उन बुजुर्गों की
जिन्हें अब बेकार का जंजाल

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नजरों से पिलाया गया........!!!

सूरज तो डूब गया रात के इंतजार मे और तन्हा रात आई,
दिल जले,कोफ़्त कैसा, रात बाकी, अभी तो चाँद निकला कंहा !

अभी रात

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बुधवार, 26 सितंबर 2012

दिल की द्स्तान

अगर तुमने एक पल के लिये भी मुझे अपन हक समझा तो ! उस पल कि कसम प्लीज बस एक बार मुझसे अपनी बात कहने का

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मर गया मेरा मन |

मर गया मेरा मन |

हाल-फ़िलहाल,
न जाने कियों,?
अंतर्मन के बिचारों को,
मन की जमी मे बोया था,
सोचा था..........,
सुन्दर सा कोई

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सीख लिया है उसने । (गीत)

सीख लिया है उसने । (गीत)


नफ़रत निभाने का इल्म, सीख लिया है उसने ।
हमारे आँसूओं का साग़र, चख लिया है उसने

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सीख लिया है उसने । (गीत)

सीख लिया है उसने । (गीत)


नफ़रत निभाने का इल्म, सीख लिया है उसने ।
हमारे आँसूओं का साग़र, चख लिया है उसने

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सीख लिया है उसने । (गीत)

सीख लिया है उसने । (गीत)


नफ़रत निभाने का इल्म, सीख लिया है उसने ।
हमारे आँसूओं का साग़र, चख लिया है उसने

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सीख लिया है उसने । (गीत)

सीख लिया है उसने । (गीत)


नफ़रत निभाने का इल्म, सीख लिया है उसने ।
हमारे आँसूओं का साग़र, चख लिया है उसने

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प्यार के गीत

प्यार रामा में है प्यारा अल्लाह लगे ,प्यार के सूर तुलसी ने किस्से लिखे

प्यार बिन जीना दुनिया में बेकार है ,प्यार

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कुदरत

क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.
हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में ..

एक जमी बक्शी थी

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चार पल

 

कभी गर्दिशो से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ

चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ..

 

इस आस में बीती उम्र कोई

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चार पल

 

कभी गर्दिशो से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ

चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ..

 

इस आस में बीती उम्र कोई

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सीख लिया है उसने । (गीत)

सीख लिया है उसने । (गीत)


नफ़रत निभाने का इल्म, सीख लिया है उसने ।
हमारे आँसूओं का साग़र, चख लिया है उसने

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बूढ़ा पेढ़

मेरी तो उम्र हो चुकी
वर्षों से यहाँ खड़ा हूँ
कई सावन झेल चुका
शीत को निहार ता रहा
मौसम के सारे उतार चड़ाव भी

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रोटी का सवाल

रोटी का सवाल

आज एक बार,
रोटी का निवाला देखकर,
अन्दर आत्मा चीख उठी !
और निवाले को देखकर बोली-
इतनी सी बात का था बजूद

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बेटी नहीं है पराया धन

बेटी नहीं है पराया धन

तुम्हारे जाने के बाद,
आ रहें मुझे वह पल याद,
विदाई के समय रोना फुट-फुटकर !
होस्टल मे भेजे

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मंगलवार, 25 सितंबर 2012

कर रहीं थी सवाल जब आँखें , होंठ कुछ ना जवाब दे पाए

कर रहीं थी सवाल जब आँखें

होंठ कुछ ना जवाब दे पाए

kar rahi'n thi sawaal jab aankhe'n

hon'th kuch na jawaab de paye

-Sanjeev

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हिन्दी दिवस

14 सितम्बर कुछ तो याद आया, आएगा क्यों नही भई इसे तो हम हिंदी दिवस के रूप मे मनाते हैं। वैसे तो आजकल हमने हर बात का कोई

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हिन्दी दिवस

14 सितम्बर कुछ तो याद आया, आएगा क्यों नही भई इसे तो हम हिंदी दिवस के रूप मे मनाते हैं। वैसे तो आजकल हमने हर बात का कोई

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नेता

राजनीति की दाल में
नारों का तड़का लगाकर
वोटों की रोटीयाँ खाने वाले ये नेता
जाने कैसे हजम कर जाते हैं सब कुछ
डकार

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Booda Ped

hindi sahitya
मेरी तो उम्र हो चुकी
वर्षों से यहाँ खड़ा हूँ
कई सावन झेल चुका
शीत को निहार ता रहा
मौसम के सारे उतार चड़ाव भी

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मेरा देश-प्रेम

मेरा देश-प्रेम

मेरा देश
छब्बीस जनवरी,
पन्द्रह अगस्त,
खादी का कुर्ता और टोपी,
भारत का झंडा फहराके गाते,
बन्दे

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सोमवार, 24 सितंबर 2012

साथ

पल दो पल की
बात नही है
साथ नही है
ये कुछ क्षण का
साथ हमारा
जीवन भर का
जैसै चंदा और गगन

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साथ

पल दो पल की
बात नही है
साथ नही है
ये कुछ क्षण का
साथ हमारा
जीवन भर का
जैसै चंदा और गगन

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दुनिया में एक शख्स

माना की दिल से प्यार तेरा कम नहीं होतादुनिया में मगर एक यही गम नहीं होता दुनिया में एक शख्स ही तुमको है क्यों

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नौजवानो कि चौपाल

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हमारे वोट, पेड़ पर उगते हैं क्या ? (व्यंग गीत)

यूँ लगा मानो कि ग़लती से हमने, गधे की दुम दबा दी..!
हुआ ऐसा, एक नेताजी को पीछे से आवाज़ लगा दी..!


चुनाव सर पर था

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दुनिया में एक शख्स

माना की दिल से प्यार तेरा कम नहीं होतादुनिया में मगर एक यही गम नहीं होता दुनिया में एक शख्स ही तुमको है क्यों

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दुनिया में एक शख्स

माना की दिल से प्यार तेरा कम नहीं होता
दुनिया में मगर एक यही गम नहीं होता

दुनिया में एक शख्स ही तुमको है क्यों

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आज दिल फिर रो रहा है ....

आज दिल फिर रो रहा है
जैसे कोई अपनों को खो रहा है

उजड़ गई हैं बस्तियां जिनकी
वो आज तिनके फिर ढो रहा है

लहूलुहान

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आज दिल फिर रो रहा है ....

आज दिल फिर रो रहा है

जैसे कोई अपनों को खो रहा है



उजड़ गई हैं बस्तियां जिनकी

वो आज तिनके फिर ढो रहा है

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दुआओं में सबके

दुआओं में सबके है आना जानाक्या मेरा क्या तुम्हारा ठिकाना सपनों में आना यादों में मिलनाबस छोटा-सा है, हमारा

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क्षणिकायें

द्फ्‍तर

यूं तो वे द्फ्‍तर
कम ही जाते हैं,
पर, जब भी जाते है,
या तो लेट जाते हैं,
या तो लेट ही जातें

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क्षणिकायें

द्फ्‍तर

यूं तो वे द्फ्‍तर
कम ही जाते हैं,
पर, जब भी जाते है,
या तो लेट जाते हैं,
या तो लेट ही जातें

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क्षणिकायें

द्फ्‍तर

यूं तो वे द्फ्‍तर
कम ही जाते हैं।
पर जब भी जाते है,
या तो लेट

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क्षणिकायें

द्फ्‍तर

यूं तो वे द्फ्‍तर
कम ही जाते हैं।
पर जब भी जाते है,
या तो लेट

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कल नक़ाब उतर जाये उनका , जो आज हम दम हो रहे है....

अरे संभालो यारों !
हंसी ज़िन्दगी के दिन कम हो रहे है ,
बेशकीमती लम्हे ख़ुशी से तब्दील हो कर ग़म हो रहे है..


काजल

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कौन ख़ूबसूरत मैं या वो ? ......

मुझे ख़ूबसूरत कहेने वाले
मुझे रास्ता उसके दिल में उतरने का बता..
हर कोशिश की हमने , तेरी कसम
शायद तेरी बात माने

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हमारे वोट, पेड़ पर उगते हैं क्या ? (व्यंग गीत)

यूँ लगा मानो कि ग़लती से हमने, गधे की दुम दबा दी..!
हुआ ऐसा, एक नेताजी को पीछे से आवाज़ लगा दी..!


चुनाव सर पर था

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शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर जरुरत है

नज़्म “शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||”

 

अजब छाई हुई अहले वतन पर आज गफ़लत है |

हवालों और घुटालों से

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चिट्ठी आई बेटे की

चिट्ठी आई बेटे की

तुम्हारे जाने के बाद
हर दिन खिड़की से बाहर तकाते
उम्मीदों की आश लगाये
मायूस होकर अब गुमशुम

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लोग मुझे कहते पागल

लोग मुझे कहते पागल

मेरे अपने लोग मुझे कहते पागल,
सोचता था व्यवस्था को दूंगा बदल !
इतनी हिम्मत भी नहीं करूँ

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तम्मना

तम्मना

नजदीक रहे, नजदीक न रह पाये,
नजर तो उठी, पर नजर न मिलाये,
वहम था दिल का, कभी तो नजदीक होंगें,
अल्फाजे बयां, दिल

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संसार/ निष्कर्ष

 

तुझे चाहने से पहले ,

अन्जाना था जमाने की शर्तों से |

 

अब कभी ढूंढता हूँ तुझे ,

रूढीयों के बाजार में

निष्कर्ष कौशल

बदलाव चाहिये

बदलाव चाहिये

सुबह की चाय
हाथ मे अखवार
वही खबर
लूटमार
बलात्कार
भ्रस्टाचार
पढ़ते पढ़ते
चाय ठंडाई
छाई

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(हाइकु प्रयास)..भाग-३

(हाइकु प्रयास)..भाग-३


जाती के नाम
आरक्षण का खेल
सत्ता चाहिए
************
धरम में भेद
राजनेताओं का कम
बाँट के

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(हाइकु प्रयास)..भाग-२

जीवन....! (हाइकु प्रयास)..भाग-२
देख सोचता
हाइकु प्रयास में
सब लिखते
............
जीवन पर
या अन्य बिषय मे
चाहत मेरी
.............
आप

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(हाइकु प्रयास)..भाग-२

जीवन....! (हाइकु प्रयास)..भाग-२
>>>>>>>>>>>>>>>>>>
देख सोचता
हाइकु प्रयास में
सब लिखते
............
जीवन पर
या अन्य

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रविवार, 23 सितंबर 2012

नज्म,"शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर जरुरत है।"

 

नज़्म “शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||”

अजब छाई हुई अहले वतन पर आज गफ़लत है |

हवालों और घुटालों से इन्हें

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दिल की छत पर टहल कर आते हैं..! (गीत)

दिल की छत पर टहल कर आते हैं..! (गीत)

चल रे मन हम, दिल की छत पर टहल कर आते हैं..!
प्यार भरी सोच के, नरम पापोश पहन कर जाते

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इक नज़र देख लो जो जी भर के , तुम मुझे आफ़ताब सा कर दो

इक नज़र देख लो जो जी भर के
तुम मुझे आफ़ताब सा कर दो
Ik nazar dekh lo jo ji bhar ke

Tum mujhe aaftaab sa kar do

- Sanjeev

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जीवन का सच

जीवन का सच

जीवन का सच

स्मृतियों नें

अनुभवों के ताने बाने से

जीवन को बुना

बुनते बुनते

कुछ धागे टूटे,

कुछ

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जीवन का सच

जीवन का सच

जीवन का सच

स्मृतियों नें

अनुभवों के ताने बाने से

जीवन को बुना

बुनते बुनते

कुछ धागे टूटे,

कुछ

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इक नज़र देख लो जी भर के तो , तुम मुझे आफ़ताब सा कर दो

इक नज़र देख लो जी भर के तो
तुम मुझे आफ़ताब सा कर दो
ik nazar dekh lo ji bhar ke to
tum mujhe aaftaab sa kar do

- Sanjeev

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इक नज़र देख लो जी भर के तो
तुम मुझे आफ़ताब सा कर दो

ik nazar dekh lo ji bhar ke to
tum mujhe aaftaab sa kar do

- Sanjeev

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लौट जाओ

 

लौट जाओ

 

 

तम,

तुम्हारा वास्ता क्या,

इस नगर से।

छोड़ दो यह रास्ता,

अब दूर जाओ,

इस डगर से।

ये नगर है

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शनिवार, 22 सितंबर 2012

नफरत की आग ने यूँ दिलों जाँ जला दिया !

नफरत की आग ने यूँ दिलों जाँ जला दिया !
लोगो ने एक इंसा को शैतां बना दिया!!

जामें वफ़ा पे

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नफरत की आग ने यूँ दिलों जाँ जला दिया !

ग़ज़ल
नफरत की आग ने यूँ दिलों जाँ जला दिया !
लोगो ने एक इंसा को शैतां बना दिया!!

जामें

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shayar salimraza gazal

ग़ज़ल
नफरत की आग ने यूँ दिलोंजाँ जला दिया !
लोगो ने एक इंसा को शैतां बना दिया!!

जामें

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संभल जाओ अब ज़माने वाले....

संभल जाओ अब ज़माने वाले ,
आ गए तलवार उठाने वाले ,

तारीख गवाह है देखो तुम भी ,
मिट गए इस्लाम को मिटाने वाले ,

तेरा मकान

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बता तेरा मेरा हिसाब क्या है....

सवाल क्या है जवाब क्या है ,
बता तेरा मेरा हिसाब क्या है ,

जुर्म-ए-मुहब्बत तो कर लिया ,
बता ईस में अब अज़ाब क्या है

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शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

तुझे खरीद सकूँ मेरी औकात कहाँ......

ख्व़ाब तो हैं मगर तस्सुरात कहाँ ,
कुछ कर सकूँ मैं ऐसे हालात कहाँ ,

तेरी कीमत बहुत है इश्क़-ए-बाज़ार में ,
तुझे खरीद

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मैं नींद में भी तेरा नाम लेता हूँ.....

जब दिल से अपने मैं कोई काम लेता हूँ ,
तो उम्मीद का दामन थाम लेता हूँ ,

कुछ ईस तरह से मैं इनाम लेता हूँ ,
दुआएं लेकर

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कैसी महफ़िल है....

कैसी महफ़िल है कोई इन्तेज़ाम नहीं है ,
किसी के भी हाथों में जाम नहीं है ,

चन्द लम्हें को सही वो पास बैठे ,
क्या एसा भी

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आज भी kajal sky.. लिखती हूँ मैं....

आज भी kajal sky.. लिखती हूँ मैं,
पर अब वो दिल भी नहीं,
कोई ओर भी नहीं , और तुम भी नहीं..


अब भी तितलियों को छूने की नाकाम

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आज भी kajal sky.. लिखती हूँ मैं....

आज भी kajal sky.. लिखती हूँ मैं,
पर अब वो दिल भी नहीं,
कोई ओर भी नहीं , और तुम भी नहीं..


अब भी तितलियों को चुने की नाकाम

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ख़ुदा मेरा वो हो न सका, और वो मेरा ख़ुदा हो गया.....

ख़ुदा भी मेरा वो हो न सका , और वो मेरा ख़ुदा हो गया ,
ख़ुदा तो दूर जा न सका, और वो मुझसे जुदा हो गया..


उसे चाहा, उसे

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एक बार जो की मुहब्बत मैंने, अब दुबारा नहीं होती....

अब सपनों में नहीं खोती, और बैचेन हो कर नहीं सोती,
सच कहूँ तो एक बार जो की मुहब्बत मैंने,
अब दुबारा नहीं होती....


वो

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तुझ सी वो बात कहाँ से लाऊं मैं.....

तुझ सा कोई दिखे , ये तो मैं मानूं ,

पर तुझ सी वो बात कहाँ से लाऊं मैं..
तेरा बोलना,बैठना,बतियाना,चलना
होगी ये सारी

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मैं हूँ ना

मैंने कहा दुनिया मे सच नही है
झूठ ने कहा मैं हूँ ना
नेता ने कहा वोट नही है
वादों ने कहा मैं हूँ ना
पापा ने कहा घर पर

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गुरुवार, 20 सितंबर 2012

आईना सामने और दिखती नहीं हूँ मैं.....

यहाँ होकर भी , यहाँ नहीं हूँ मैं,
आईना सामने और दिखती नहीं हूँ मैं..
मुस्कुरा के हालात-ए-ग़म सहेती हूँ यारो,
अब चिलाती

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तुम ठहेरे बेवफ़ा, मैं पागल दीवानी......

नासमझ हूँ, ना समझ पाऊँगी तुम्हे,
तुम ठहेरे बेवफ़ा,
मैं पागल दीवानी क्या समझ पाऊँगी तुम्हे..
कोशिश ही करती हूँ रोज़

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निष्ठुर हवायें

चलना है दूर बहुत, जख्मीं से पाँव हैं,

आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।

धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,

पत्थरों

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निष्ठुर हवाऍ

चलना है दूर बहुत, जख्मीं से पाँव हैं,

आस नही दूर तलक बेगाना गाँव है।

धूप से भरे हैं मग, चल रहें अकेले हम,

पत्थरों

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मैं

दीये सा जलता हूँ मैं

हवाओं सा बहता हूँ मैं



नफरत सा पैदा होता हूँ

प्यार सा बढ़ता हूँ मैं



अपनों की फ़िक्र है

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बुधवार, 19 सितंबर 2012

मस्त पवन के संग-संग

मस्त पवन के संग-संग
खेत-खेत में सरसों झूमे, सर-सर वहे वयार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
धानी

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मस्त पवन के संग-संग

मस्त पवन के संग-संग
खेत-खेत में सरसों झूमे, सर-सर वहे वयार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
धानी

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उजियार होगा या नहीं.

 
उजियार होगा या नहीं.
रवि किरण ने कर लिया , रिश्ता तिमिर से,
कौन जाने भोर को, उजियार होगा या

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नयन नीले

नयन नीले

नयन नीले, वसन पीले,
चाहता मन और जी ले।
छू हृदय का तार तुमने,
प्राण में भर प्यार तुमने।
और

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नयन नीले

नयन नीले


नयन नीले, वसन पीले,

चाहता मन और जी ले।

छू हृदय का तार तुमने,

प्राण में भर प्यार तुमने।

और

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दिल मानता नहीं…..

दिल मानता नही इसे आदत है चोट खाने की….

कितनी दफ़ा कोशिश की हमने इसे समझाने की…..

बहुत कुछ सीखा है इसने तुमसे पर इक

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नयन नीले

नयन नीले


नयन नीले, वसन पीले,

चाहता मन और जी ले।

छू हृदय का तार तुमने,

प्राण में भर प्यार तुमने।

और

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काश कभी…..

काश कभी तुमने मेरी चाहत को समझा होता.

चाहत ये ना थी सब कुछ मिले, पर कभी कुछ तो मिला होता….

हर क़दम पे तेरे साथ चले थे

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जादूगरी

ये कैसी है तेरे इश्क की जादूगरी,

अभी तू यहीँ है और नहीं अभी |

अभी तुझसे मिलकर हँसे थे हम,

अभी तुझे खोकर रो दिये भी

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तुझे नही….!

तुझे नहीं मैं खुद को ढूँढता हूँ |

उजालो से डर लगता है, अंधेरों को ढूँढता हूँ |

ढूँढता हूँ उस शख्स को, जिसे तूने कभी

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तेरी याद में

दर्द की इंतहाँ हो गयी है यारों |

सुबह चले थे अब शाम हो गयी है यारों |

थक गयें हैं लेकिन कोई सहारा नहीं मिलता |

समंदर

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तेरी याद में

दर्द की इंतहाँ हो गयी है यारों |

सुबह चले थे अब शाम हो गयी है यारों |

थक गयें हैं लेकिन कोई सहारा नहीं मिलता |

समंदर

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दर्द की इंतहाँ हो गयी है यारों |

सुबह चले थे अब शाम हो गयी है यारों |

थक गयें हैं लेकिन कोई सहारा नहीं मिलता |

समंदर

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समझे नहीं जो खामोशी मेरी

समझे नहीं जो खामोशी मेरी,

मेरे लब्जों को क्या समझेंगे |

बचते रहे उम्र भर साये से मेरे,

मेरे जख्मों को क्या

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पर अब भी बहुत कुछ याद है मुझे

बहुत भुलाना चाहा, बहुत कुछ भुलाया,

पर अब भी बहुत कुछ याद है मुझे |

वो इश्क की राहों में पहले कदम,

उन कदमों पे

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बात बहुत मामूली है…..

रात तब नहीं होती जब अंधेरा आ जाता है,

रात तब होती है जब उज़ाला चला जाता है……

बात बहुत मामूली है…..इसिलिये तो खास

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वो चाहत कहाँ से लाओगे…!

जितना चाहा है तुम्हे…. वो चाहत कहाँ से लाओगे…!

चाहत मिल भी गयी तो ये दिल कहाँ से लाओगे..!

दिल ढूँढ भी लिया तुमने तो

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दुआ

मैने खुदा से दुआ माँगी…

ए खुदा कोई तो ऐसा दे..

जो अंधेरो को उजालों मे बदल दे

जो उदास चेहरे पे मुस्कान ला दे

कोई तो

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आओ आज नाम बदल लें…!

आओ आज नाम बदल लें…!

ले लो इस नाम से जुड़ी सब दौलत और शौहरत,

मुझे बेनामी का सुकून लौटा दो….

अक्सर तुम्हे देखा है

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आख़िर क्यूँ..

कितनी दफा हम पूछते हैं न….. आख़िर क्यूँ..???

 

कुछ बातों का कोई कारण नही होता

कोई अर्थ नहीं होता

कोई तर्क नहीं

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कैसे कह दूं….!!!

कैसे कह दूं कि तेरी याद नही आती है,

मेरी हर सांस मे बस तू ही महकाती है.

आज भी रातों को जब चौंक के उठता हूँ,

बस तू ही

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जिंदगी यूँ चली

जिंदगी यूँ चली, होके खुद से खफ़ा |

पाके भी खो दिया, हमने सब हर दफ़ा ||

कोई साथी नहीं, कोई संग ना चला |

दर्द की रह में,

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खुशबु तेरी

भीनी भीनी सी खुशबु तेरी,

महका महका सा एहसास है… |

एक अरसा हुआ तुझको देखे हुए…

पर तू हर लम्हा मेरे पास है…. ||

- गौरव

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हत्थां ते लिखा नहीं मिटदा…..

हत्थां दा लिख्या लक्ख मिटाए कोई,

हत्थां ते लिख्या नहीं मिटदा…..

लक्ख करें जतन तू जट्टा,

किस्मत दा लिख्या नहीं

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सोचा नहीं कभी हमने

सोचा नहीं कभी हमने,

क्यूँ दिल तुमबिन परेशां है |

क्यूँ सांसे उखड़ी उखड़ी हैं,

आँखें क्यूँ हैरान हैं ||

 

सोचा

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एक मोहब्बत बेनाम

क्यूँ मसरूफ रहें हर वक्त, चंद लम्हें फुर्सत के भी बिताएं जाएँ |

क्यूँ हर रिश्ते का नाम हो, एक मोहब्बत बेनाम भी निभाई

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जितना जाना जिंदगी को

जितना जाना जिंदगी को,

बस इतना ही जाना है जाना……

कुछ भी नहीं है जानने को,

बस

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हाइकु लोरी खीर की

1. लोरी खीर की
माँ सुनाती बच्चे को
है दोनों भूखे ...!!
2. सूखे वृक्ष में
पंछी के घोंसले ने
आस जगाई ...!!

3. ओढ़ी थकन
जमीं के

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हाइकु

नैनों में रात
स्वप्न के जुगनू से
जाती चमक ...!!
-संजीव

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करोड़ोँ झूठ बोलेँ हम,

करोड़ोँ झूठ बोलेँ हम, पर उनको सच्चे लगते हैँ।
मगर ये प्रीत के धागे हमेँ क्यूँ कच्चे लगते हैँ।
ये दोष नज़रोँ का है

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नेताजी, ऐसा क्यूँ होता है ? (व्यंग गीत)

ऐसा क्यूँ होता है? नेताओं तक पहूँचती नहीं, आम आदमी की चीख़ पुकार..!
ऐसा क्यूँ होता है? ठंडे चूल्हे, खाली थाली, पापी पेट

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देखा है

मैने रात को रन्ग बद्लते देखा है,
अन्धेरे के बाद सवेरा होते देखा है,
तिन्के बीना करते थे कभी धूप मे ,
आज खुद को बर्गद

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हाइकु

नैनों में रात
स्वप्न के जुगनू से
जाती चमक ...!!
-संजीव

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दिल की छत पर टहल कर आते हैं..! (गीत)

दिल की छत पर टहल कर आते हैं..! (गीत)

चल रे मन तनिक हम, दिल की छत पर टहल कर आते हैं..!
प्यार भरी सोच के, नरम पापोश पहन कर जाते

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दिल की छत पर टहल कर आते हैं..! (गीत)

दिल की छत पर टहल कर आते हैं..! (गीत)


चल रे मन तनिक हम, दिल की छत पर टहल कर आते हैं..!
प्यार भरी सोच के, नरम

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दिल की छत पर टहल कर आते हैं..! (गीत)

दिल की छत पर टहल कर आते हैं..! (गीत)
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/09/blog-post_19.html

चल रे मन तनिक हम, दिल की छत पर टहल कर आते हैं..!
प्यार

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इश्वर की खोज

इश्वर की खोज

गाते रहो, गाना गाते रहो,
इश्वर का नाम लेकर गाते रहो ,
तुम गाओगे तो, मिलेगी सुख शांति,
न गाओगे तो भी,

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प्यार का इकरार

प्यार का इकरार
प्यार की हलचल में, हो गई पागल मैं,
एक ही धुन में गाती, प्यार में पड गई मैं |
पहली बार जो मिला था, दिल के

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प्यार का इकरार

प्यार का इकरार

प्यार की हलचल में, हो गई पागल मैं,
एक ही धुन में गाती, प्यार में पड गई मैं |
पहली बार जो मिला था, दिल के

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तेरे गुलशन की कलियां...........

तेरे गुलशन की कलियां बिखरने न देगें,
के मज़हब पे इनको यूं लड़ने न देगें ।
जो रहते यहां पे सभी हैं वो भाई,
देश अपना ये

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तेरे गुलशन की कलियां...........

तेरे गुलशन की कलियां बिखरने न देगें,
के मज़हब पे इनको यूं लड़ने न देगें ।
जो रहते यहां पे सभी हैं वो भाई,
देश अपना ये

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आज खुश हुन

आज खुश हुन कि खुसि का थिकाना नहि

कल क्या

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आज खुश हुन

आज खुश हुन कि खुसि का थिकाना नहि

कल क्या

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आज खुश हुन

आज खुश हुन कि खुसि का थिकाना नहि

कल क्या

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JINDAGI HAI KAHIN

आज खुश हुन कि खुसि का थिकाना नहि

कल क्या

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कहीं किसी ओर ......

मैं ढूंढता रहा हूँ अब तक
कहाँ हो तुम
आओ चलें
कहीं किसी ओर
किसी आकाश के नीचे
किसी बदल के पीछे
आओ
मुहब्बत हमेशा

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कहीं किसी ओर ......

मैं ढूंढता रहा हूँ अब तक

कहाँ हो तुम

आओ चलें

कहीं किसी ओर

किसी आकाश के नीचे

किसी बदल के पीछे

आओ

मुहब्बत

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जीवन का संदेश

अच्छा और बुरा, सुख और दुःख हैं
एक ही सिक्के के दो पहलू
सच मानो तो दोनों ही करते हमें
जीने और जानने को जिज्ञासु

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ए तकदीर बता तेरा फैसला क्या है....

हिम्मत क्या है हौसला क्या है ,
बेघर को क्या पता घोन्सला क्या है ,

कब तक करुन्गा मै इन्तेजार उसका ,
ए तकदीर बता तेरा

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मेरे गम को ही मेरा मरहम कर दे....

मुझे अपनी रह्मतो मे जम कर दे ,
मेरी आन्खो को और भी नम कर दे ,

कैसे काटून्गा वो तारीकीयो वाली शब ,
ए खुदा कब्र की

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मंगलवार, 18 सितंबर 2012

मन है मन का सकल बखेरा / शिवदीन राम जोशी

मन है, मन का सकल बखेरा |
मन लग जाये भक्ति करन में,सोचूं साँझ सवेरा ||
मन माने माने ना कहना, पागल मन के संग में रहना |
है

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अमर शहीदों को प्रणाम

अमर शहीदों को प्रणाम
सरहद के वीरों को सलाम
कारगिल, द्रास और बटालिक में,
मची हुई थी घुसपैठ भारी
पाक अपने नापाक

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प्रिय पापा की परछाईं, खुशहाली की अंगड़ाई ।

प्रिय पापा की परछाईं,
खुशहाली की अंगड़ाई ।



प्यारे दोस्तों,

अभी मेरे हाथों में, एक `नवजात पिता` की निजी डायरी है ।

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सोमवार, 17 सितंबर 2012

हाइकु

नैनों में रात
स्वप्न के जुगनू से
जाती चमक ...!!
-संजीव

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nirasha

kabhi kabhi nirasha

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छोडकर सबकुछ

छोडकर सब-कुछ नया आगाज़ करते हैंनहीं शिकवा-शिकायत हंसी मजाक करते हैं सिर्फ गम ही तो नहीं दिये हमें ज़िंदगी

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छोडकर सबकुछ

छोडकर सब-कुछ नया आगाज़ करते हैंनहीं शिकवा-शिकायत हंसी मजाक करते हैं सिर्फ गम ही तो नहीं दिये हमें ज़िंदगी

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छोडकर सबकुछ

छोडकर सबकुछ नया आगाज़ करते हैं

नहीं शिकवा-शिकायत हंसी मजाक करते हैं

 

सिर्फ गम ही तो नहीं दिये हमें ज़िंदगी

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सर्वहारा किसान

सर्वहारा किसान

प्रसन्न होता है

लहलहाती फसल को

देखकर

लहलहाती फसल में

देखता है

अपना प्यारा नन्हा फूल

इच्छा

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सर्वहारा किसान

सर्वहारा किसान

प्रसन्न होता है

लहलहाती फसल को

देखकर

लहलहाती फसल में

देखता है

अपना प्यारा नन्हा फूल

इच्छा

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देखा है

मैने रात को रन्ग बद्लते देखा है,
अन्धेरे के बाद सवेरा होते देखा है,
तिन्के बीना करते थे कभी धूप मे ,
आज खुद को बर्गद

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एक परिचय

ब्रह्माण्ड ब्रह्मा की अदभुत कल्पना
उसमें हुई पृथ्वी की रचना
"वसुधैव कुटुम्बकं"
हिन्दुस्तानी हैं

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एक परिचय

ब्रह्माण्ड ब्रह्मा की अदभुत कल्पना
उसमें हुई पृथ्वी की रचना
"वसुधैव कुटुम्बकं"
हिन्दुस्तानी हैं

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एक परिचय

ब्रह्माण्ड ब्रह्मा की अदभुत कल्पना
उसमें हुई पृथ्वी की रचना
"वसुधैव कुटुम्बकं"
हिन्दुस्तानी हैं

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हम कैसे जिये

हम इस दुनिय मे कैसे जिये,
रात जैसे अंधेरे मे हम कैसे चले !
हम आगे तो है साफ लेकिन,
पिछे की बुराईयों को कैसे मले!
लोग

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हम कैसे जिये

हम इस दुनिय मे कैसे जिये,
रात जैसे अंधेरे मे हम कैसे चले !
हम आगे तो है साफ लेकिन,
पिछे की बुराईयों को कैसे मले!
लोग

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आन्ख खुली तो तन्हाई थी....

हर बात मे उसकी गहराई थी ,
आन्खो मे उदासी छाई थी ,

रात करीब मेरे वो आई थी ,
पर आन्ख खुली तो तन्हाई थी

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तेरे शहर मे आए है....

ये किसने नफरतो के आग लगाए है ,
हर तरफ बस तारीकीओ के साए है ,

एक तेरा ही मकान महफुज है यहा ,
ये सोच कर तेरे शहर मे आए है

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रविवार, 16 सितंबर 2012

दर्द किसी से मत कहो

दर्द जब
सहन और बर्दास्त से
हो जाए बाहर
तो उसे व्यक्त कर दो
मगर सवाल ये है
कि कहे तो किससे कहे !
इंसान है संग दिल
और

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दर्द किसी से मत कहो

दर्द जब
सहन और बर्दास्त से
हो जाए बाहर
तो उसे व्यक्त कर दो
मगर सवाल ये है
कि कहे तो किससे कहे !
इंसान है संग दिल
और

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कुछ बाकी है तो और आजमाले मुझको....

दे तो दिए हैं तुने दर्द के छाले मुझको ,
कुछ बाकी है तो और आजमाले मुझको ,

ईस नर्म दिली का कुछ फायदा तो हो ,
तू कर दे आज

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हर शख्स तो जहां में खूबसूरत नहीं होता....

हुस्न ईश्क-ओ-अदा की मूरत नहीं होता ,
लौट जाते हम अगर तू जरुरत नहीं होता ,

मेरी बद्शक्ली का तू ख्याल न किया कर ,
हर

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आवाज़ देकर हम बुलाया नहीं करते....

आईना सूरज को दिखाया नहीं करते ,
अहसास-ए-ईश्क बताया नहीं करते ,

जिन्हें करीब आना हो वो खुद आते हैं ,
आवाज़ देकर हम

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चाँद चिलमन से यूँ निकल रहा है....

चाँद चिलमन से यूँ निकल रहा है ,
जैसे चराग कोई बाम पे जल रहा है ,

इसे इत्तेफाक कहें या मुहब्बत कहें ,
अन्धेरा रौशनी के

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ईश्क फिरकों में बटी जागीर देखी हमने....

हर ख्वाब की अलग ताबीर देखी हमने ,
सबसे जुदा अपनी तकदीर देखी हमने ,

मुकम्मल जहां नहीं मिलता किसी को ,
हर रांझे से अलग

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क़त्ल तो कर देता वो अगर तैयार होते हम....

तेरे मकान की जो कच्ची दिवार होते हम ,
दवा तो मिल जाता अगर बीमार होते हम ,

हिम्मत न हुई चमकते खंज़र को देख कर ,
क़त्ल तो

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प्यार हर किसी से नहीं होता ....

रेत की तरह फिसल गये वो दिन ,
वक़्त किसी का नहीं होता ...
बहुत मिले एक से दिखने वाले शख्स ,
पर प्यार हर किसी से नहीं होता

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अजीब कशमकश में हूँ मैं...

सुलझ कर भी , उलझ जाती हूँ मैं...
ख़ुद को ही समझते हुए भी,
ख़ुद को ही समझाती हूँ मैं....

नाराज़ भी ख़ुद से कब

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दुआ ख़ुदा की , मैं खैरातों का सहारा..

तू चाँद सी चांदनी, मैं टुटा एक तारा..
तू दुआ ख़ुदा की , मैं खैरातों का सहारा..
आरज़ू हमें भी है तुझे पाने की...
पर तू

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कैसे कह दूँ गिर कर संभलना नहीं आता......

नफरत की आग में मुझे जलना नहीं आता ,
मर्द-ऐ-मुजाहिद हूँ रास्ता बदलना नहीं आता ,

काँटों के साथ गुज़ारी है जिंदगी मैंने

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अफ़सोस नीलाम हो रहा है चमन मेरा....

आज सर पे मैंने बांधा है कफ़न मेरा ,
खून-ए-जिगर में नहाया है पैरहन मेरा ,

कहाँ हैं वो दीवाने आजादी के परवाने ,
कोई बचा

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शिकवा कहाँ अब शिकायत कहाँ रही....

शिकवा कहाँ अब शिकायत कहाँ रही ,
पहले जैसे हुस्न में इनायत कहाँ रही ,

दिल के बदले जो दिल देने का चलन था ,
अब भूल जाओ के

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हर आईने में तुझको अक्सर संवरते देखा....

हर एक ख्वाब को टूट कर बिखरते देखा ,
हमने ख्वाहिशों को तिल तिल कर मरते देखा ,

इतनी हिम्मत तो नहीं थी के रो सकूँ मैं

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साया-ऐ-दिवार लेते आना........

घर लौट के जब आओ बहार लेते आना ,
थोड़ा ही सही मेरे लिए प्यार लेते आना ,

तपते सहरा में है जलता हुआ मकाँ मेरा ,
आँगन को ढके

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मैं सहरा हूँ के समन्दर वख्त बताएगा........

वख्त तो गुज़रता है गुज़र जाएगा ,
तू आज भी मुझे शब् भर जगाएगा ,

उदास न होना तू हम मिलेंगे जरूर ,
के यही बेदर्द ज़माना हमें

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जब तक नाम न हो कोई बदनाम नहीं होता....

आगाज़ तो होता है मगर अंजाम नहीं होता ,
साकी तेरी बज़्म में कोई गुमनाम नहीं होता ,

शोहरत-ए-शज़र की शाख कमज़ोर है बहुत ,
जब

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अच्छा हुआ गुनाह-ए-जिंदगी नजात आ गई....

दर्द और भी बढ़ गया जब रात आ गई ,
तुने कही थी जो याद वो बात आ गई ,

मौसम तो आ गया है खिजाओं का मगर ,
मेरी आँखों में क्यूँ आज

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तू नज़रें झुका ले तो और संवर जायेगा......

जनाब अहमद फराज़ साहब के एक गज़ल का मिसरा है -: ""तू कभी खुद को भी देखेगा तो डर जाएगा"" ईस मिसरे पर मेरी एक छोटी सी कोशीश

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मिट जायेगा सब दुनिया फानी है........

ये बात लगती तो पुरानी है ,
पर अपनी तो यही कहानी है ,

जो ना ढले वो गम है अपना ,
जो ढल जाए वो ही जवानी है ,

ख्वाब जो पलकों

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अभी दुनिया में खुदा का नाम बाकी है......

हसरत बाकी है अभी अरमान बाकी है ,
अभी तुझसे मिलने का इमकान बाकी है ,

कैसे कह दूँ के दुआ कुबूल नहीं होती ,
अभी दुनिया

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कुछ पा लिया है तो अब कुछ खोना है......

कुछ पा लिया है तो अब कुछ खोना है ,
अना को ज़ब्त के समन्दर में डुबोना है ,

टूट न जाए किसी पत्थर से मकां उनका ,
शीशे के घर

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उन्हें फुर्सत नहीं दुनिया के काम से......

उन्हें फुर्सत नहीं दुनिया के काम से ,
सोचते हैं हम भी हैं बड़े आराम से ,

दुश्मनी ही सही अपनी मैखाने से मगर ,
कुछ

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दरमियां अब फासलों की दिवार कहाँ है....

दरमियां अब फासलों की दिवार कहाँ है ,
कश्ती तो मिल गई मगर पतवार कहाँ है ,

दिल की बस्ती उजाड़ने वाले ये बता दे ,
अब कहाँ

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बुला लीजिए एक बार पूरी उम्मत को मदीना....

हो अस्सलात-ओ-वस्सलाम या ताजदार-ए-मदीना ,
मेरी किस्मत में भी थी जो देख आया मदीना ,

या सरकार-ए-दो आलम या

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एक बार जो मिल जाए खुदा हमको......

बंदीश-ए-जिंदगी से क्या मिला हमको ,
खुद भी तन्हा हो गए करके तन्हा उनको !!

तुम्हीं को चाहा तुम्हीं को मांगेंगे हमेशा

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एक बार जो मिल जाए खुदा हमको......

बंदीश-ए-जिंदगी से क्या मिला हमको ,
खुद भी तन्हा हो गए करके तन्हा उनको !!

तुम्हीं को चाहा तुम्हीं को मांगेंगे हमेशा

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देख क्या मिलता है दुआओं में फ़कीर से......

कुछ हासील तो हुआ तेरी तस्वीर से ,
अब कोई गिला नहीं अपनी तकदीर से ,

मैं सोचता रहा के कदम क्यूँ नहीं बढते ,
तुने बाँध जो

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तेरी यादें ही काफी हैं मुस्कुराने को.......

हकीकत बनाना है एक फसाने को ,
अज्म दिखाना है अपना जमाने को ,

जब मौत भी दस्तक दे कर पलट गई ,
तो अब बचा ही क्या है आजमाने

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बिकने के लिए ही हम बाजार निकले....

एतबार वाले थे वो बेएतबार निकले ,
अयादत करने वाले ही बीमार निकले ,

बहुत शौक था खरीद ले कोई हमें भी ,
बिकने के लिए ही हम

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मैं हिस्सा हूँ तेरे हुस्न-ए-बाजार का....

वख्त ढूंढता है वो लम्हा बहार का ,
कुछ उम्मीद बाकी है एतबार का ,

कितना तड़पे हैं तुझे क्या मालूम ,
कोई सिला तो दे मेरे

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वो बोला नज्मों में मेरा ज़िक्र आता क्यूँ है....

वो बोला नज्मों में मेरा ज़िक्र आता क्यूँ है ,
मैंने कहा तू मुझसे रुठ कर जाता क्यूँ है ,

वो बोला तेरी बातें मुझे समझ

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दूर सही पर चाँद नज़र तो आया है......

तू मेरी दुआओं का सरमाया है ,
आरजु-ओ-मिन्नत से तुझे पाया है ,

तेरा शुक्र मैं कैसे अदा करूँ मौला ,
तुने मेरे ख्वाब को

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हमारा रिश्ता तो जज़्बात से है........

शिकवा तो अपने हालात से है ,
तू क्यूँ जुदा मेरी ज़ात से है ,

तू चाहता है मुझको ये काफी है ,
क्या लेना मुझे आब-ए-हयात से है

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ख्वाब तो ख्वाब हैं अक्सर टूट जाते हैं......

चरागों की तरह रोज़ जलना पड़ा मुझे ,
बेसाख्ता काँटों पे भी चलना पड़ा मुझे ,

मंजील करीब थी मगर सफर तवील ,
ये सोच कर रास्ता

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मौत बख्श दो मेरी जान ले लो !!

मुजरीम-ए-इश्क हूँ मेरा इम्तिहान ले लो ,
गम मुझे देकर मेरी खुशियाँ तमाम ले लो ,

बहुत परवाज़ कर चुका खुले आसमान में

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कैसा लगता है शमा बन कर चरागाँ होना....

बेफिक्र हो कर भी तेरा यूँ परेशां होना ,
हैरां हूँ मैं देख कर तेरा यूँ हैरां होना ,

रात आंधीयों से बात ये मालुम हुई

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मैं जिन्दा हूँ तुझे ये खबर तो है......

मेंरी दुआओं में कुछ असर तो है ,
मैं जिन्दा हूँ तुझे ये खबर तो है ,

हकीकत की ज़मीन न मिली तो क्या ,
मेरे पास ख़्वाबों का

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खुशीयां समेट लाया हूँ........

तेरी खातीर ही तेरी महफ़िल में आया हूँ ,
अपना ले मुझे जमाने का सताया हूँ ,

तू मुझसे खफा न हो सकेगा कभी ,
यकीन कर मैं

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फख्र है के हमारा मुल्क हिन्दोस्तान है....

एखलाक-ओ-मुहब्बत ही हमारी पहचान है ,
फख्र है के हमारा मुल्क हिन्दोस्तान है ,

यहाँ संगम है गंगा और जमुना का भी ,
ईद की

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हम मिल जाएँ ये दुआ करना........

एक छोटी सी पर खता करना ,
हम मिल जाएँ ये दुआ करना ,

तेरी याद ही तो है मेरे साथ अब ,
क्या जरूरी है इसे भी जुदा करना ,

मेरी

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जवाब कौन देगा........

आँखों को रंगीन ख्वाब कौन देगा ,
उसके सवालों का जवाब कौन देगा ,

वो मेरे लिए क्यूँ रोता है बार बार ,
उसके आंसुओं का

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कमाल-ए-हुस्न........

कम खाना सेहत कम सोना भी इबादत है ,
हया ही तेरे कमाल-ए-हुस्न की जीनत है ,

जो रूह में पिन्हा है उसकी बात करता हूँ ,
क्या

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ऐसी बददुआ दे मुझे........

जख्म देने की हर वो अदा दे मुझे ,
जो किसी को न मिली वो सजा दे मुझे ,

तेरी चाहत का असर के तू याद आता है ,
तुझे भूल जाऊं ऐसी

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महकता गुलाब होना चाहता हूँ........

तेरी तदबीर तेरा ख्वाब होना चाहता हूँ ,
तेरे रुख पर फैला हिजाब होना चाहता हूँ ,

जमाने ने ठुकराया है तो कोई बात नहीं

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कोई मिलता नही आईना दिखाने वाला......

कोई रास्ता नही मन्जिल पे जाने वाला ,
कोई बचा नही हाथ छूड़ाने वाला ,

मै अपनी सूरत देखु भी तो कैसे ,
कोई मिलता नही आईना

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हाइकु लोरी खीर की

1. लोरी खीर की
माँ सुनाती बच्चे को
है दोनों भूखे ...!!
2. सूखे वृक्ष में
पंछी के घोंसले ने
आस जगाई ...!!

3. ओढ़ी थकन
जमीं के

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शनिवार, 15 सितंबर 2012

तेरी आँखें भी एक अजब सवाल करती हैं.......

इज़हार-ए-ख्याल हसरतों का भी मलाल करती हैं ,
ये तेरी आँखें भी एक अजब सवाल करती हैं ,

ग़म-ए-तकलीफ़ से ही नींद नहीं ज़ाया

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मैं महफूज हूँ !!

तेरे होठों के किसी कोने में,
हंसी की तरह मैं महफूज हूँ..

तेरे आँखों के किसी कोने में,
आंसू की तरह मैं महफूज

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मैं महफूज हूँ !!

तेरे होठों के किसी कोने में,
हंसी की तरह मैं महफूज हूँ..

तेरे आँखों के किसी कोने में,
आंसू की तरह मैं महफूज

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सर जी

तुमने सोचा तो बहुत था

हमें बेड़ियों में बाँध

अपने इशारों पर नचाओगे

चाबुक दिखाकर डराओगे



तुम आगे चलोगे

हम

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हम कैसे जिये

हम इस दुनिय मे कैसे जिये,
रात जैसे अंधेरे मे हम कैसे चले !
हम आगे तो है साफ लेकिन,
पिछे की बुराईयों को कैसे मले!
लोग

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हम कैसे जिये

हम इस दुनिय मे कैसे जिये,
रात जैसे अंधेरे मे हम कैसे चले !
हम आगे तो है साफ लेकिन,
पिछे की बुराईयों को कैसे मले!
लोग

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जमाना उल्टा है (कलयुगी दोहे)

रहिमन जमाना उल्टा है, मांगे मिले ना भीख।
बिन मांगे नोट मिले, चमचागिरी तो सीख ॥
रहिमन राशन राखिये, बिन राशन सब सून

kalyug ke dohe, kalyugi dohe

तंत्र-मंत्र-यंत्र

सब मनाते हैं गणतंत्र
कहां बचा है जनतंत्र
कहां ओझल है लोकतंत्र
यह तो लगता है भीङतंत्र
फैला भ्रष्टाचारी

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दीपमाला

चहुंदिश फैला है उजाला
एक बार फिर सजी है दीपमाला
एक ही माटी ने हमें है पाला
इसी मातृभूमि ने हमें सम्भाला
नहीं भेद

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नेताजी, ऐसा क्यूँ होता है ? (व्यंग गीत)

ऐसा क्यूँ होता है? नेताओं तक पहूँचती नहीं, आम आदमी की चीख़ पुकार..!
ऐसा क्यूँ होता है? ठंडे चूल्हे, खाली थाली,

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नहीं हो दूर हम से...

नहीं हो दूर हम से...

दूर रहते तुमसे, पर दूर कंहा रह पाते |
कहने के लिये दूर है,पर दूर नहीं दिल से,
आवाज देकर

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बेटियाँ

 

 
पता नहीं कब
बड़ी हो जाती हैं बेटियाँ
जैसे
बड़े होते हैं पेड़
बड़े होते हैं दिन
बड़ी होती हैं रातें

पता नहीं

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बेटियाँ

पता नहीं कब

बड़ी हो जाती हैं बेटियाँ

जैसे

बड़े होते हैं पेड़

बड़े होते हैं दिन

बड़ी होती हैं रातें

 

पता नहीं

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करोड़ोँ झूठ बोलेँ हम,

करोड़ोँ झूठ बोलेँ हम, पर उनको सच्चे लगते हैँ।
मगर ये प्रीत के धागे हमेँ क्यूँ कच्चे लगते हैँ।
ये दोष नज़रोँ का है

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करोड़ोँ झूठ बोलेँ हम,

करोड़ोँ झूठ बोलेँ हम, पर उनको सच्चे लगते हैँ।
मगर ये प्रीत के धागे हमेँ क्यूँ कच्चे लगते हैँ।
ये दोष नज़रोँ का है

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करोड़ोँ झूठ बोलेँ हम,

करोड़ोँ झूठ बोलेँ हम, पर उनको सच्चे लगते हैँ।
मगर ये प्रीत के धागे हमेँ क्यूँ कच्चे लगते हैँ।
ये दोष नज़रोँ का है

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करोड़ो झूठ बोलेँ हम...

करोड़ोँ झूठ बोलेँ हम, पर उनको सच्चे लगते हैँ।
मगर ये प्रीत के धागे हमेँ क्यूँ कच्चे लगते हैँ।
ये दोष नज़रोँ का है उनकी

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मैं प्रेमी नहीं ,पर प्रेम जरुर करता हूं

मैं प्रेमी नहीं ,पर प्रेम जरुर करता हूं

मैं प्रेमी नहीं ,पर प्रेम जरुर करता हूं
कैसे, कियों, किसलिये,सोचकर में

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मैं प्रेमी नहीं ,पर प्रेम जरुर करता हूं

मैं प्रेमी नहीं ,पर प्रेम जरुर करता हूं


कैसे, कियों, किसलिये,सोचकर में निरूत्तर हूं
माता-पिता से प्रेम है या

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शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

मेरे लफ़्ज़ों की गहराई न देख....

आईने में अपनी परछाई न देख ,
ज़माने की जलवा नुमाई न देख ,

मज़मून के साहील पे ठहर जा ,
मेरे लफ़्ज़ों की गहराई न देख

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हम तेरे शहर का एक रास्ता हो जायेंगे....

ना मिल पायें तुझसे तो जुदा हो जायेंगे ,
कैसे सोच लिया के हम खफा हो जायेंगे ,

कम से कम तेरे कदम तो पड़ेंगे वहाँ पर ,
हम

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तेरा दीद-ए-नज़र भी खूब तमाशाई है........

पैगाम मुहब्बत के वो ले कर आई है ,
एक खुशबु सी इन फिजाओं में छाई है ,

देखता है तू चमन में फूल भी कांटे भी ,
तेरा

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तू और भी याद आता है जब भुलाना चाहता हूँ........

मुहब्बत क्या है ज़माने को बताना चाहता हूँ ,
मगर दिल के ज़ख्म सबसे छुपाना चाहता हूँ ,

बस चाँद ही नहीं मशहूर ज़माने में

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क्या रक्खा है तेरे शहर में के लौट आऊँ मैं....

क्या रक्खा है तेरे शहर में के लौट आऊँ मैं ,
अब उतनी हिम्मत नहीं के दुबारा चोट खाऊं मैं ,

इतनी तकलीफ़ में जीने से तो मर

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वन ग्लिम्प्स ओफ यु !!

One glimpse of u and world becomes so beautiful,
Nature starts smiling and heart starts dancing.
One thought of u n smile looks so graceful,
Eyes start dreaming n dreams start floating.
A few words from u and my mind become so thoughtful,
Creates a web of sentences and starts finding

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पत्थर कहाँ से लाऊं दिल लगाने के लिए........

कलेजा बड़ा है मेरा गम खाने के लिए ,
मगर हौसला चाहीए मुस्कुराने के लिए ,

मोम है शायद इसलीए पिघल जाता है ,
पत्थर कहाँ से

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उस से बिछड़ा हूँ तो ये ख्याल होता है........

उस से बिछड़ा हूँ तो ये ख्याल होता है ,
रु ब रु न होने का भी मलाल होता है ,

जिसने आंच न सही हो वो क्या जाने ,
ग़म-ए-आफ़ताब

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काश तू शीशा-ए-आईना बना ले मुझको........

तू ईस तरह अपने पहलु में छुपा ले मुझको ,
मैं सितारा बन जाऊं ज़ुल्फ़ में सजा ले मुझको ,

तेरी ही सूरत को मैं देखा करूँ दिन

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सितम ये है के खाने के लिए निवाला नहीं मिलता........

दर्द बयाँ कैसे करूँ मैं, सुनने वाला नहीं मिलता ,
रुठ तो जाऊं मैं मगर मनाने वाला नहीं मिलता ,

दश्त-ए-मुफलिसी में

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!! मेरी चुनी राह !!

जिसे समझते थे हम अपनी जिंदगी , आज पता चला वो एक गलती थी !

जिस भरोसे की ऊँगली थाम चल परे थे हम मुसाफिर बन कर,
आज पता

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कल तक तो उम्मीद-ए-विसाल उसको भी था........

बाद-ए-वस्ल, हिज्र का ख्याल उसको भी था ,
बिछड़ने का मुझसे तो मलाल उसको भी था ,

आज वो ना उम्मीदी की बात क्यूँ करता है ,
कल

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अब लैला और कैस के ईश्क का ज़माना नहीं है

बताना नहीं है अब उसको समझाना नहीं है ,
मुझे अपना इलाज-ए-गम करवाना नहीं है ,

तुम ये क्या सच्ची मुहब्बत की रट लगाए हो

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अनजाना स डर !!

एक मुलाकात से डरता हूँ..

दिल की हर बात से डरता हूँ..

हर एक जज्बात से डरता हूँ..

आँखों की गुस्ताखी से डरता हूँ..

सपनो

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जलाओ न चराग़ कोई अभी अँधेरा रहने दो.........

ईस जुर्म-ए-मुहब्बत की सज़ा हमें सहने दो ,
जलाओ न चराग़ कोई अभी अँधेरा रहने दो ,

तुम दास्तान-ए-इश्क़ न सुनना चाहो न

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जलाओ न चराग़ कोई अभी अँधेरा रहने दो.........

ईस जुर्म-ए-मुहब्बत की सज़ा हमें सहने दो ,
जलाओ न चराग़ कोई अभी अँधेरा रहने दो ,

तुम दास्तान-ए-इश्क़ न सुनना चाहो न

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फरियाद !!

आज सुदूर चल पड़ा है मन मेरा.
जैसे सपनो में मिल गया हो एक नया बसेरा.
जैसे दूर कहीं नज़र आया हो एक खुबसूरत सवेरा.

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फरियाद !!

आज सुदूर चल पड़ा है मन मेरा.
जैसे सपनो में मिल गया हो एक नया बसेरा.
जैसे दूर कहीं नज़र आया हो एक खुबसूरत सवेरा.

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मैं महफूज हूँ !!

तेरे होठों के किसी कोने में,
हंसी की तरह मैं महफूज हूँ..

तेरे आँखों के किसी कोने में,
आंसू की तरह मैं महफूज

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कुछ लम्हे जिंदगी के हमारे नाम कर दो.......

कुछ लम्हे जिंदगी के हमारे नाम कर दो ,
यूं किस्सा-ए-मुहब्बत बहार-ए-आम कर दो ,

तपीश सूरज की अब हमसे सही नही जाती ,
तुम

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मेरी कहानी

ये किस डगर चल पड़ा था जिसमे,
मुसाफिर भी मैं ही और हमसफ़र भी मैं ही था !!

ये कैसी बिमारी थी जिसमे,
चीख भरी ख़ामोशी भी

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वो बेवफा नहीं......

दिल-ए-गुमनाम को कोई नाम कैसे दूँ ,

इन खाली पैमानों में कोई जाम कैसे दूँ ,

मैंने खुद ही डुबाई है कश्ती साहिल पर ,

वो

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हम अपने आंसू के कतरों का भी हिसाब रखते हैं........

चेहरे पे नकाब और आईने की तलाश रखते हैं ,
अजीब हैं अहले समंदर लबों पे प्यास रखते हैं ,

सितम की इन्तेहा है तुझे मालूम

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वो बेवफा नहीं......

दिल-ए-गुमनाम को कोई नाम कैसे दूँ ,

इन खाली पैमानों में कोई जाम कैसे दूँ ,

मैंने खुद ही डुबाई है कश्ती साहिल पर ,

वो

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खुद परस्ती का हाथ हटा क्यूँ नहीं लेते

खुद परस्ती का हाथ हटा क्यूँ नहीं लेते ,
दर्द जब दिया है तो दवा क्यूँ नहीं देते ,

आग को ज्यादा दबाना भी ठीक नहीं ,
दबी

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फ़रियाद

आज सुदूर चल पड़ा है मन मेरा.
जैसे सपनो में मिल गया हो एक नया बसेरा.
जैसे दूर कहीं नज़र आया हो एक खुबसूरत सवेरा.
जैसे

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फ़रियाद

आज सुदूर चल पड़ा है मन मेरा.
जैसे सपनो में मिल गया हो एक नया बसेरा.
जैसे दूर कहीं नज़र आया हो एक खुबसूरत सवेरा.
जैसे

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फ़रियाद

आज सुदूर चल पड़ा है मन मेरा.
जैसे सपनो में मिल गया हो एक नया बसेरा.
जैसे दूर कहीं नज़र आया हो एक खुबसूरत सवेरा.
जैसे

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एक प्यास कुछ ऐसी लगी मुझे

पानी तो रोज पीता हुँ मैँ...
पर आज एक प्यास कुछ ऐसी लगी मुझे,
की उसने पानी को मेरे नाम कर दिया.
.
.
सपने तो रोज देखता हुँ

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एक प्यास कुछ ऐसी लगी मुझे

पानी तो रोज पीता हुँ मैँ...
पर आज एक प्यास कुछ ऐसी लगी मुझे,
की उसने पानी को मेरे नाम कर दिया.
.
.
सपने तो रोज देखता हुँ

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पानी तो रोज पीता हुँ मैँ...
पर आज एक प्यास कुछ ऐसी लगी मुझे,
की उसने पानी को मेरे नाम कर दिया.
.
.
सपने तो रोज देखता हुँ

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आँधी से कोई कह दे औकात में रहे !!

सूरज चाँद सितारे मेरे साथ में रहे ,
जब तक तेरे हाथ मेरे हाथ में रहे ,

शाखों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं है हम ,
आँधी से

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