बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

जन्नत की किसे ख्वाहिश थी

जन्नत की किसे ख्वाहिश थी
हम जहन्नुम चले जाते
तेरे हुश्न की अगर आखिरी
लम्होतक जीया होता

शिकवे की नौबत नही आती
अगर

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शाम होते ही

शाम होते ही

शोर यादों का

उसकी ...

घुस आता है

घर में मेरे

और सन्नाटा

तन्हाईओं का

और ज्यादा

गहरा जाता

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शाम होते ही

शाम होते ही

शोर यादों का

उसकी ...

घुस आता है

घर में मेरे

और सन्नाटा

तन्हाईओं का

और ज्यादा

गहरा जाता

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शाम होते ही

शाम होते ही

शोर यादों का

उसकी ...

घुस आता है

घर में मेरे

और सन्नाटा

तन्हाईओं का

और ज्यादा

गहरा जाता

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प्रीत लगी कुछ ऐसी उनसे

प्रीत लगी कुछ ऐसी उनसे
दीदार हुये तब कह नही पाया
जब रुखसत हुई तो
याद आया था

आँखे उनकी झुकी हुई थी
उन्हे छुने को जी

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धरती से फलक को मिलाती हो

आज मैंने ज़िन्दगी को इस पन्ने पे उतारा है,
वो सारी चीजें जिससे मैंने इसे संवारा है,
बहुत सी चीजें पायीं और बहुत सी

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मर्दाना लड़की

मर्दाना लड़की

अपनी उम्र से लम्बी साइकिल के पैडल पर कभी एक पैर से फिर दुसरे पैर से धकेलती मर्दाना लड़की

बैठा अपने

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Mardana Ladki

मर्दाना लड़की अपनी उम्र से लम्बी साइकिल के पैडल परकभी एक पैर सेफिर दुसरे पैर से धकेलती मर्दाना लड़की बैठा अपने से

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सत्य की पहचान

सत्य की पहचान होती है जरुर

हर सुबह की शाम होती है जरुर।

बीच मे जब अर्थ आ जाता है तो

दोस्ती नाकाम होती है

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कविता जो तुमसे छोटी रह गयी

कविता जो तुमसे छोटी रह गयी
तुम्हारे बड़े होने के अभिमान में
हो गयी और छोटी
हो गयी नीची आँखे उसकी
चुनरी में दबक

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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

Kavita

कविता जो तुमसे छोटी रह गयी
तुम्हारे बड़े होने के अभिमान में
हो गयी और छोटी
हो गयी नीची आँखे उसकी
चुनरी में दबक

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Mardana Ladki

मर्दाना लड़कीअपनी उम्र से लम्बी साइकिल के पैडल परकभी एक पैर सेफिर दुसरे पैर सेधकेलतीमर्दाना लड़कीबैठा अपने से

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धरती से फलक को मिलाती हो

आज मैंने ज़िन्दगी को इस पन्ने पे उतारा है,
वो सारी चीजें जिससे मैंने इसे सवारा है,
बहुत सी चीजें पायीं और बहुत सी

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चित खोकर चितचोर हो गए

चित खोकर चितचोर हो गए
घनघोर अँधेरे भोर हो गए

खुद को खोकर तुझको पाया
हम चन्दा और चकोर हो गए

प्रीत का ऐसा है

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चित खोकर चितचोर हो गए

चित खोकर चितचोर हो गए
घनघोर अँधेरे भोर हो गए

खुद को खोकर तुझको पाया
हम चन्दा और चकोर हो गए

प्रीत का ऐसा है

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चित खोकर चितचोर हो गए
चित खोकर चितचोर हो गए
घनघोर अँधेरे भोर हो गए
खुद को खोकर तुझको पाया
हम चन्दा और चकोर हो

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saty ki pehaan

सत्य की पहचान होती है जरुर

हर सुबह की शाम होती है जरुर।

बीच मे जब अर्थ आ जाता है तो

दोस्ती नाकाम होती है

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देश की कहानी

जब घर में अँधेरा छाता है

चाँद भी मुँह फेर जाता है

लोगों के ताने को सुन

सूरज उगने से घबराता है

 

जब रोज-रोज की

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एक कुत्ता कुत्ते की मौत मरा किसी को कोई फर्क नही पड़ा

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ज़िन्दगी में कुछ ऐसा कर दिखाना है

ज़िन्दगी हर कदम पे कुछ नया दिखाती है,
कभी साथ तो कभी तनहा रहना सिखाती है,
इस के हर पहलू को हो सके दो दिल से जीना

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ज़िन्दगी में कुछ ऐसा कर दिखाना है

ज़िन्दगी हर कदम पे कुछ नया दिखाती है,
कभी साथ तो कभी तनहा रहना सिखाती है,
इस के हर पहलू को हो सके दो दिल से जीना

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प्रेम का वरदान दे दो।

प्रेम का वरदान दे दो।
चेतना का गान दे दो।।

जिन पदों में प्रीत की
सुरभित, तरंगित रश्मियाँ हों।
सूर, कबिरा और तुलसी

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प्रेम का वरदान दे दो।

प्रेम का वरदान दे दो।
चेतना का गान दे दो।।

जिन पदों में प्रीत की
सुरभित, तरंगित रश्मियाँ हों।
सूर, कबिरा और तुलसी

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फिर यह धरती बुला रही है

राणा की संतानों जागो, जागो वीर शिवा के लालों।
फिर यह धरती बुला रही है, जागो महाकाल के कालों॥

शत-शत आघातों को सहकर

फिर यह धरती बुला रही है

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

ग़जल

जन्नत की किसे ख्वाहिश थी
हम जहन्नुम चले जाते
तेरे हुश्न की अगर आखिरी
लम्होतक जीया होता

शिकवे की नौबत नही

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इक सफ़र जो कभी, खतम ही नहीं होता

बदस्तूर मुकम्मल है काफ़िला
बामुश्किल मंज़िलों का गुमान होता है

इक आती साँस यहाँ की
इक जाती साँस वहाँ की
जो

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मर्दाना लड़कीअपनी उम्र से लम्बी साइकिल के पैडल परकभी एक पैर सेफिर दुसरे पैर सेधकेलतीमर्दाना लड़कीबैठा अपने से छोटे को छोटी गद्दी परचेहरे पर बड़ा होने का अभिमान लिएअट्टहास करते कहते लोगवो देखोमर्दाना लड़की ...साईकिल की रेस में खुद से आगे निकलने की चाह मेंजब कुछ मर्दों से आगे निकल जातीहवा से बातें करती बेपरवाहतो हवा भी फुसफसा कर कह जातीमर्दाना  लड़की ....यौवन की ऊर्जा फुटबॉल में लिपटकर मैदानों को लाँघती , झगडती घासों से उछ्लकर पार कराती गोलपोस्ट तो रेफ़री की सीटी ....एक सुर में चिल्ला जाती मर्दाना लड़की ,..चाँदी की बालों वाली मेरी दादी बतलाती नुस्ख़े  सिखलाती सरसों की बोतल पकड़ाती तो जुओं से कुश्ती में बाल खिच गए कुछ सर पर चपत लगा दादी कहती मर्दाना छोरी ....और मेरी आंखें देखती देखती देखती चली जाती गहराती जाती दादी की आँखें में .....और मेरे बॉबकट बाल हवा में लहरा जाते .....

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माँ मैं भी तो एक जान हूँ

माँ मैं भी तो एक जान हूँ ,
मैं भी तो तेरी पहचान हूँ ,
क्यों दुखी है तु मेरे आने से,
या डर है तुघे इस ज़माने से।।

कि ये

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gazal

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रविवार, 24 फ़रवरी 2013

माँ-बाप

एक औरत के प्यार में तूमने,
माँ-बाप को भुला दिया;
क्या ये सच है? तूमने,
अपने आप को भुला दिया...!!!

अपनी नींद गवाँ के

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माँ-बाप

एक औरत के प्यार में तूमने,
माँ-बाप को भुला दिया;
क्या ये सच है? तूमने,
अपने आप को भुला दिया...!!!

अपनी नींद गवाँ के

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माँ-बाप

एक औरत के प्यार में तूमने,
माँ-बाप को भुला दिया;
क्या ये सच है? तूमने,
अपने आप को भुला दिया...!!!

अपनी नींद गवाँ के

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चोरों ने फिर रचा स्वयंवर

गंदे नाले बने समंदर
रंगदार अब बने सिकन्दर

सत्ता के गलियारों में देखो
इधर भी बंदर उधर भी बंदर

सच्चाई के

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मेरी जिंदगी

जिन्दगी विरान है,
सब, हम से अंजान है,
क्या करे, बस चल रही जान है.

ये दिल परेशान है,
उन्हे ना, कुछ ध्यान है,
क्या करे, वो

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चोरों ने फिर रचा स्वयंवर

गंदे नाले बने समंदर
रंगदार अब बने सिकन्दर

सत्ता के गलियारों में देखो
इधर भी बंदर उधर भी बंदर

सच्चाई के

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मेरे वो दिन लौटा दे

भगवान मुझे इतनी दुआ दे,
मेरे वो पुराने दिन लौटा दे,
बागों में घूमा करती थी मैं,
सखियों संग झूमा करती थी

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मेरी जिंदगी

<em><strong>जिन्दगी विरान है,
सब, हम से अंजान है,
क्या करे, बस चल रही जान है.

ये दिल परेशान है,
उन्हे ना, कुछ ध्यान

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रात की कंबल

रात की कंबल
बेआवाज दीवारें
नींद तन्हा
कोई रूठ गया है किसी से
और कोई
तार-तार कंबल
उधेड़ रहा है
बुन रहा

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रात की कंबल

रात की कंबल
बेआवाज दीवारें
नींद तन्हा
कोई रूठ गया है किसी से
और कोई
तार-तार कंबल
उधेड़ रहा है
बुन रहा

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रात की कंबल
बेआवाज दीवारें
नींद तन्हा
कोई रूठ गया है किसी से
और कोई
तार-तार कंबल
उधेड़ रहा है
बुन रहा

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रात की कंबल
बेआवाज दीवारें
नींद तन्हा
कोई रूठ गया है किसी से
और कोई
तार-तार कंबल
उधेड़ रहा है
बुन रहा

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यह देश चलता कैसे है

यह देश चलता कैसे है


सीधे-सुलझे रिश्ते भी,वो उलझाते कुछ ऐसे हैं
नहीं जानता राम-रहीम,यह देश चलता कैसे है

समस्या से

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यह देश चलता कैसे है

यह देश चलता कैसे है


सीधे-सुलझे रिश्ते भी,वो उलझाते कुछ ऐसे हैं
नहीं जानता राम-रहीम,यह देश चलता कैसे है

समस्या से

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मेरे वो दिन लौटा दे

भगवान् मुघे इतनी दुआ दे,
मेरे वो पुराने दिन लौटा दे,
बागों में घुमा करती थी मैं,
सखियों संग झुमा करती थी

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कलम से टपके सोच

कलम से जो टपकते है,
उन सोचों कों
कविता न समज़ना,
शब्दोंके सहारे बहता हूँ मैं;

मेरे मन, मेरे दिल,
मेरी भावनाओं को
एक

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कलम से टपके सोच

कलम से जो टपकते है,
उन सोचों कों
कविता न समज़ना,
शब्दोंके सहारे बहता हूँ मैं;

मेरे मन, मेरे दिल,
मेरी भावनाओं को
एक

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नूर

है नूर ही ऐसा तेरी नज़र का, जैसे उजाला हो तू जहाँ भी है,
हरपल, हरदिन हमें, इसी कारण तेरा इन्तज़ार रहता ही है

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दोस्ती

डूब गया हूँ इतना अब मैं, की मैं तैर रहा हूँ
दोस्ती की गहराईओँ का पता फिर भी न मिला

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नूर

है नूर ही ऐसा तेरी नज़र का, जैसे उजाला हो तू जहाँ भी है,
हरपल, हरदिन हमें, इसी कारण तेरा इन्तज़ार रहता ही है

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आज फिर तुम्हारी याद गयी

तेरी राह तकते तकते अखियाँ तरस गयीं,
थोड़ी देर रुकीं और फिर बरस गयीं,
इन तरसीं अंखियों की खातीर तुम आना जरुर,
अपना

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बड़ा मुश्किल है

ज़िन्दगी के सफ़र में ज़िन्दगी का गुजरना बड़ा मुश्किल है
कमा तो सभी लेते है पर खर्च करना बड़ा मुश्किल है

खिलखिला लेते

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मैं पतंग नहीं

बड़ा मजबूत है ये प्यार का धागा कभी कट नहीं सकता
जितना दोगे ओर बढ़ेगा ये प्यार कभी घट नहीं सकता

मील के पत्थर की

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शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

नेता जी मस्त

ये नेता होते भ्रष्ट
ये देवें सबको कष्ट
खुद तो हैं ये हष्ट-पुष्ट
पर देश को करें ये नष्ट
इनका system अस्त-व्यस्त
जनता

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भारत माता हरा दी

बहरी हो गयी गूंगी हो गयी ये अपनी सरकार

नपुंसक बन गयी देखो ये हो गयी बिलकुल बेकार

दुशासन करे चीर द्रौपदी नहीं है

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बहरी हो गयी गूंगी हो गयी ये अपनी सरकार

नपुंसक बन गयी देखो ये हो गयी बिलकुल बेकार

दुशासन करे चीर द्रौपदी नहीं है

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नेता जी की दाल

सूरज पर चढ़कर बैठे जिन्होंने दिन में देखे तारे

भंडारों में खाते थे अब जिनके भरे भंडारे

अरे नेता बन गए, जो यहाँ

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प्रेम का वरदान दे दो।

प्रेम का वरदान दे दो।
चेतना का गान दे दो।।

जिन पदों में प्रीत की
सुरभित, तरंगित रश्मियाँ हों।
सूर, कबीरा और तुलसी

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मिलन

मिलन

रात ढ़लती गई, हम गुनगुनाते गये
शमा जलती रही, हम पिगलते रहे

रात घुटती गई, चाँद चमकता गया
हुस्ने-आग में खुद को

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मिलन

मिलन

रात ढ़लती गई, हम गुनगुनाते गये
शमा जलती रही, हम पिगलते रहे

रात घुटती गई, चाँद चमकता गया
हुस्ने-आग में खुद को

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मिलन

मिलन

रात ढ़लती गई, हम गुनगुनाते गये
शमा जलती रही, हम पिगलते रहे

रात घुटती गई, चाँद चमकता गया
हुस्ने-आग में खुद को

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मिलन

मिलन

रात ढ़लती गई, हम गुनगुनाते गये
शमा जलती रही, हम पिगलते रहे

रात घुटती गई, चाँद चमकता गया
हुस्ने-आग में खुद को

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ये कलजुग है

राम की माला सब जपत है,
इन्सान के ना पूछे कोए,
अमीर के घर सब जाये हैं,
चाहे गरीब खड़ा रोये।।

इन्सान न पहचानत इन्सान

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कब तू पास बुलाती है .....

कब तू पास बुलाती है .....

मेरे दिल की चाहत, तेरा इकरार चाहती है।
उल्फत के अल्फाज,तुझ से सुनना चाहती है।

ये होंठों की

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मिलन

मिलन

रात ढ़लती गई, हम गुनगुनाते गये
शमा जलती रही, हम पिगलते रहे

रात घुटती गई, चाँद चमकता गया
हुस्ने-आग में खुद को

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तितली

तितली

उड़ने दो तितलियों को मुक्त गगन में
इनके बिना यह गगन बेरंग लगता है

रहने दो तितलियों को हर उपवन में
इनके

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तितली

तितली

उड़ने दो तितलियों को मुक्त गगन में
इनके बिना यह गगन बेरंग लगता है

रहने दो तितलियों को हर उपवन में
इनके

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तितली

तितली

उड़ने दो तितलियों को मुक्त गगन में
इनके बिना यह गगन बेरंग लगता है

रहने दो तितलियों को हर उपवन में
इनके

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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एक कुत्ता कुत्ते की मौत मरा किसी को कोई फर्क नही पड़ा

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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

तितली

तितली

उड़ने दो तितलियों को मुक्त गगन में
इनके बिना यह गगन बेरंग लगता है

रहने दो तितलियों को हर उपवन में
इनके

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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तब जनम लेती हैं ये बेटियाँ

तुम दुखी हो, तो दुखी होती है ये बेटियाँ,
तुम्हारी हर तकलीफ देखके रोती है ये बेटियाँ,
उनकी आँखों में कभी आँसू मत आने

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कुञ्ज गलिन में कुंज बिहारी / शिवदीन राम जोशी

कुञ्ज गलिन में कुंजबिहारी ।
घूम रहे थे झूम रहे थे संग में थी श्री राधा प्यारी ।
ललिता और बिसाखा दौड़ी युगल स्वरूप

Kunj Galin men kunj bhihari/ Shivdin Ram Joshi

आज वो ज़िन्दगी सो गयी

ज़िन्दगी के लम्हों में मेरी ख़ुशी खो गयी,
कल तक जो सबको हसाती थी आज वो ज़िन्दगी सो गयी,
असुअन भरी अँखियाँ आज भी छलक जाती

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तुम्हारी यादें-मेरी फरियादें

जिन्दा हैं फिर भी जीने में एक कमी सी है,
खुश तो हैं पर आँखों में एक नमी सी है,
राहें तो बहुत मिली आगे बढ़ने को,
बस आसमा

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माँ मैं भी तो एक जान हूँ

माँ मैं भी तो एक जान हूँ ,
मैं भी तो तेरी पहचान हूँ ,
क्यों दुखी है तु मेरे आने से,
या डर है तुघे इस ज़माने से।।

की ये

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लिखता कहाँ हूँ

लिखता कहाँ हूँ
सिगरेट की मानिन्द
सुलगा जिन्दगी को
धुँआ जज्ब़ कर लेता हूँ
राख़ झाड़ देता हूँ पन्नों

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मोहन खेल रहे है होरी

मोहन खेल रहे है होरी ।
गुवाल बाल संग रंग अनेकों धन्य-धन्य यह होरी ।
वो गुलाल राधे ले आई मन मोहन पर ही बरसाई,
नन्दलाल

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क्यों हैं तेरे इतने रूप

माँ कहती है तुम हो एक,
फिर क्यों तेरे रूप अनेक?
हम तुमको क्या कहें बताओ |
राम, कृष्ण या अल्ला नेक ||१||

कोई पूरब को मुंह

क्यों हैं तेरे इतने रूप

नशा ऐ तमररुद में जब बन्दा मगरूर हो जाता है

नशा ऐ तमररुद में जब बन्दा मगरूर हो जाता है

खुद अपनी खुदी से टकरा कर चूरचूर हो जाता है



बहुत मान था के यह कभी न

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उदासियो में भी जीने के रास्ते निकाल लेते है

उदासियो में भी जीने के रास्ते निकाल लेते है

जब कुछ सुझाई नहीं देता सिक्का उछाल लेते है

 

ग़ुरबत इंसान को जीना

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उदासियो में भी जीने के रास्ते निकाल लेते है

उदासियो में भी जीने के रास्ते निकाल लेते है

जब कुछ सुझाई नहीं देता सिक्का उछाल लेते है

 

ग़ुरबत इंसान को जीना

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नशा ऐ तमररुद में जब बन्दा मगरूर हो जाता है

नशा ऐ तमररुद में जब बन्दा मगरूर हो जाता है

खुद अपनी खुदी से टकरा कर चूरचूर हो जाता है



बहुत मान था के यह कभी न

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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कब तू पास बुलाती है .....

कब तू पास बुलाती है .....

मेरे दिल की चाहत, तेरा इकरार चाहती है।
उल्फत के अल्फाज,तुझ से सुनना चाहती है।

ये होंठों की

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मिलन

मिलन

रात ढ़लती गई, हम गुनगुनाते गये
शमा जलती रही, हम पिगलते रहे

रात घुटती गई, चाँद चमकता गया
हुस्ने-आग में खुद को

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तितली

तितली

उड़ने दो तितलियों को मुक्त गगन में
इनके बिना यह गगन बेरंग लगता है

रहने दो तितलियों को हर उपवन में
इनके

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गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

मोहन खेल रहे है होरी / शिवदीन राम जोशी

मोहन खेल रहे है होरी ।
गुवाल बाल संग रंग अनेकों धन्य-धन्य यह होरी ।
वो गुलाल राधे ले आई मन मोहन पर ही बरसाई,
नन्दलाल

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Aaj wo zindagi so gyi

जिन्दगि के लम्हो मे मेरि खुशि खो गयि,

सारा दिन जो सब्को हसाति थि आज वो जिन्दगि सो गयि,

असुअन भरि अन्खिया आज भि

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Tumhari yadein-meri Fariyadein

जिन्दा है फिर भि जिने मे एक कमि सि है,

खुश है फिर भि आन्खो मे नमि सि है,

राहे तो बहुत मिलि आगे बध्ने को,

बस आस्मा

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ग़ज़ल

जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं


सभी पाने को आतुर हैं ,नहीं

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लिखता कहाँ हूँ
सिगरेट की मानिन्द
सुलगा जिन्दगी को
धुँआ जज्ब़ कर लेता हूँ
राख़ झाड़ देता हूँ पन्नों

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Ma mai bhi to ek jan hu

मा मै भि तो एक जान हु,

मै भि तो तेरि पह्चान हु,

क्यो दुखि है तु मेरे आने से,

या दर है तुघे इस जमाने से..

 

कि ये

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तू बरसती क्यों नही?

तू मेरी तो नही शायद,
उदासी के धुएं से
कुछ बूँदें उधार लेकर
तू बरसती क्यों नही।

किसी स्वप्न की आहट लेकर,
निद्रा की

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Tab janam leti hai ye betiyaan

तुम जब दुखि हो तो,दुखि होति है ये बेतियान,

तुम्हरि तक्लीफ देख्के,रोति है ये बेतियान,

उन्कि आन्खो मे कभि आन्सु मत

पूरा पढ़े ...

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

जीवन एक गणित है

जीवन एक गणित है
बनाना है इसको यदि सुंदर
तो इसमे मित्रों को जोड़ो
दुश्मनों को घटाओ
दुखों का करो भाग
सुखों का गुणा

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ग़जल

जब सामने आयेंगे वह
कैसे इकरार करुंगी
चुप चुप ही बैठे बैठे
बस उन्हे प्यार करुंगी

गुंगी हुई तो क्या हुवा
मोहब्बत

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ओ दलित बेटियों

ओ सांवली धरती
दो उभारों के बीच चलने वाली तुम्हारी नर्म सांसे
पछाह धान का चिउरा कूटती जवान लडकियों की साँसों

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इनकार

इस कदर मायूस था कि यार ने इकरार किया,

और ये समझा दिल-ए-नादाँ कि इनकार किया.

 

मेरे अश्कों ने किया था हाल-ए-दिल बयाँ

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याद है

कुछ नहीं अब गर्दिश-ए-हस्ती में हमको याद है,

याद है तो इक फक़त माशूक का दर याद है.

 

ज़िंदगी का आशियाँ कैसे करें

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जहाँ अभी गोली चली थी

अँधेरे की ऊनी चादर ओढ़े,
वो रात भयानक सी है.
जहाँ अभी गोली चली थी,
जहाँ थोड़ी देर पहले भगदड़ मची थी।
एक तरफ,

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भूल आया हूँ...

खुद से बातें करते, आज बहुत दूर निकल आया हूँ,
अपने घर का पता भी, मैं भूल आया हूँ।

किनारे की एक छोर पकड़, उसके साथ यहाँ

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अतीत की स्मृति

जिस ग्राम की अपार सुषमा मयी

मनोरम वनस्थली के बीच चिर-

संस्कृति की मषाल लिये आदिम

जन-जाति की छाया डोलती

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तुमने कभी सोचा सूखे तपे पहाड़ों का दुःख

मेरे जिस्म से निकलने वाली नदियों
समय के क्रूर पत्थरों
अस्मिता की अँधेरी गलियों में भटकने वाली दलित आत्माओं
बाहर

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मानवता का उद्घोष

इस पावन धरती पर फिर मानवता का उद्घोष बजेगा |
दीपक की ज्वाला में प्रतिक्षण अहंकार अज्ञान जलेगा ||

तुम कहते हो तिमिर

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मेरा दिल भी शौक से

मेरा दिल भी शौक से तोड़ो एक तजुरबा और सही,
लाख खिलौने तोड़ चुके हो एक खिलौना और सही,
रात है गम की आज बुझा दो जलता हुआ

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सार्थतकता नाम की/ हास्य कविता

हास्य कविताएं ( कुण्डलियाँ )

1 निरमल कुमार गंदे भए, और चतुरसींग संठियाय |

अजि नैनदास अंधे भये, और शांतिलाल खिसियाय

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राख हुए जाते हैं……

संग्रह- इन्द्र देव चवरे

(1) राख हुए जाते हैं

जिसके लिए ही रचे हैं अडम्बर जात,

जिसके लिए ही साज़-बाज सजवाते हैं

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बारिश ने मचलकर

बारिश ने मचलकर
जब बाल झटके
मैंने महसूस की उसकी फुहार
अपने बिस्तर तक
छींटों की छमक ने जगा दिया
कुछ अधसोये ख्वाबों

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मेरा पैगाम​...

तेरा वो,मुड़ के ना देखना;
हैरान करता है...!!!
तेरा वो,हर बात में ना कहना;
परेशान करता है...!!!

तेरा वो,मुझे बार बार

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मेरा पैगाम​...

तेरा वो,मुड़ के ना देखना;
हैरान करता है...!!!
तेरा वो,हर बात में ना कहना;
परेशान करता है...!!!

तेरा वो,मुझे बार बार

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मेरा पैगाम​...

<em><strong>तेरा वो,मुड़ के ना देखना;
हैरान करता है...!!!
तेरा वो,हर बात में ना कहना;
परेशान करता है...!!!

तेरा वो,मुझे बार

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अखिलेश औदिच्य

बारिश ने मचलकर
जब बाल झटके
मैंने महसूस की उसकी फुहार
अपने बिस्तर तक
छींटों की छमक ने जगा दिया
कुछ अधसोये ख्वाबों

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ज़रूरत क्या है पढ़ने की

रचनाकार-इन्द्र देव चवरे

अच्छा खासा घर-बार है, जिसमें नौकर भरमार हैं |

कॉलेज़ जाने को कार है, और किताबों का अम्बार है

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राख हुए जाते हैं……

संग्रह- इन्द्र देव चवरे

(1) राख हुए जाते हैं

जिसके लिए ही रचे हैं अडम्बर जात,

जिसके लिए ही साज़-बाज सजवाते हैं

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भूल गये वो आजमाना हमें

भूल गये वो आजमाना हमें,

लफ्जों में दबी राज बताना हमें,

एक

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भूल गये वो आजमाना हमें,

लफ्जों में दबी राज बताना हमें,

एक

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खुशनसीब हैं वो जो दिल मे किसी को जगह देते हैं

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दीदार ही किया तो गुनहगार हो गये

दीदार ही किया तो गुनहगार हो गये,

आज सरे जमाने

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दर्द मिला हमको पर जीना ना आया

दर्द मिला हमको पर जीना ना आया,

मासूम था दिल इसलिए पीना ना आया,

उलझते

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नाराज हैं वो कि चांद बदली में है

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देर तक मैं अम्बर पे नजर टिकाये था

देर तक मैं अम्बर पे नजर टिकाये था,

सुना था कि आसमान से एक परी गुजरती

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बारिश ने मचलकर

बारिश ने मचलकर
जब बाल झटके
मैंने महसूस की उसकी फुहार
अपने बिस्तर तक
छींटों की छमक ने जगा दिया
कुछ अधसोये ख्वाबों

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मेरा दिल भी शौक से

मेरा दिल भी शौक से तोड़ो एक तजुरबा और सही,
लाख खिलौने तोड़ चुके हो एक खिलौना और सही,
रात है गम की आज बुझा दो जलता हुआ

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मेरा दिल भी शौक से तोड़ो एक तजुरबा और सही,
लाख खिलौने तोड़ चुके हो एक खिलौना और सही,
रात है गम की आज बुझा दो जलता हुआ हर

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मेरा दिल भी शौक से तोड़ो एक तजुरबा और सही,
लाख खिलौने तोड़ चुके हो एक खिलौना और सही,
रात है गम की आज बुझा दो जलता हुआ हर

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मेरा दिल भी शौक से तोड़ो एक तजुरबा और सही,
लाख खिलौने तोड़ चुके हो एक खिलौना और सही,
रात है गम की आज बुझा दो जलता हुआ हर

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बारिश ने मचलकर
जब बाल झटके
मैंने महसूस की उसकी फुहार
अपने बिस्तर तक
छींटों की छमक ने जगा दिया
कुछ अधसोये ख्वाबों

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मानवता का उद्घोष

इस पावन धरती पर फिर मानवता का उद्घोष बजेगा |
दीपक की ज्वाला में प्रतिक्षण अहंकार अज्ञान जलेगा ||

तुम कहते हो तिमिर

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संक्रांतिकाल

संक्रांति की भोर हुई,
विभ्रांति की है शाम,
संक्रान्तिकाल* का स्वागत करे भारत की आवाम,
भारत की आवाम, करे कुछ

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SHAYARI

देर तक मैं अम्बर पे नजर टिकाये था,

सुना था कि आसमान से एक परी गुजरती

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SHAYARI

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SHAYARI

दर्द मिला हमको पर जीना ना आया,

मासूम था दिल इसलिए पीना ना आया,

उलझते

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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

SHAYARI

दीदार ही किया तो गुनहगार हो गये,

आज सरे जमाने

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भूल गये वो आजमाना हमें,

लफ्जों में दबी राज बताना हमें,

एक

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SHAYARI

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दर्द ही जब दवा बन गई

दर्द ही जब दवा बन गई
मुस्कराहट अदा बन गई

राह इतनी भी आसाँ न थी
जिद मगर हौसला बन गई

सीख माँ ने जो दी थी मुझे
उम्र

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तुमने कभी सोचा सूखे तपे पहाड़ों का दुःख

मेरे जिस्म से निकलने वाली नदियों
समय के क्रूर पत्थरों
अस्मिता की अँधेरी गलियों में भटकने वाली दलित आत्माओं

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तुमने कभी सोचा सूखे तपे पहाड़ों का दुःख

मेरे जिस्म से निकलने वाली नदियों
समय के क्रूर पत्थरों
अस्मिता की अँधेरी गलियों में भटकने वाली दलित आत्माओं

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ओ दलित बेटियों

ओ सांवली धरती
दो उभारों के बीच चलने वाली तुम्हारी नर्म सांसे
पछाह धान का चिउरा कूटती जवान लडकियों की साँसों से

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सब बदल गया

हाँ अब वो वक्त नहीं रहा,
जब रात की ठंडी खिचड़ी भी,
बन जाती थी,
एक लजीज पकवान थाली में,
मिल जाती थी चलते-फिरते,
आशिषे

सब बदल गया

वी.आई.पी.

जी हाँ हर तरफ आम आदमी त्रस्त है,
क्योंकि घिरा है कुछ खास लोगों से,
और वीआईपीयों से पस्त है।

सुबह सुबह मंदिर की

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स्वास्थ्य रक्षक कविता 1

1* जो करते नहीं परहेज़, तो दवा क्यूं खाते हैं | . ,

चंगा भी होते नहीं, और ज़ेब कटवाते हैं

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तृष्णा

संग्रह कर्ता-इन्द्र देव चवरे

कवि - 'सुंदर'

जो दस बीस पचास भए शत, होइ हजार तो लाख मंगैगी |

कोटि अरब्ब खरब्ब

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Tab janam leti hai ye pyari betiyaan

Tum jab dukhi ho to dukhi hoti hai betiyan,

Tumhari takleef dekh ke roti h ye betiyan,

Unki aankho me kabhi aansu mat aane dena,

Bahut sehensheel hoti h ye betiyan…….

 

Apne gamo ko chhupaye rakhti h ye betiyan,

Pure mahol ko sajaye rakhti hai ye betiyan,

Kabhi unka

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Tab janam leti hai ye pyari betiyaan

Tum jab dukhi ho to dukhi hoti hai betiyan,

Tumhari takleef dekh ke roti h ye betiyan,

Unki aankho me kabhi aansu mat aane dena,

Bahut sehensheel hoti h ye betiyan…….

 

Apne gamo ko chhupaye rakhti h ye betiyan,

Pure mahol ko sajaye rakhti hai ye betiyan,

Kabhi unka

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ग़जल

हम चाँद पर मर मिटे तो
आफताव भी जलने लगी
बिजली की तड़प देखकर
बादल भी बरष रोने लगी

हिमालय की छातियों से
दुपट्टे

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मुस्कुराने के वजह!!!

मुस्कुराने के वजह!!!

पहले बहोत से थे,

कभी नन्ही सी तितली को देखकर

उसके पीछे भागना,

तो कभी,

खाली माचिस की डिबिया

Shwet

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

ATIT KI SMRITI

अतीत की स्मृति

लेखक
विष्णु दत्त गुप्त
‘‘अधिवक्ता‘‘
बैकुण्ठपुर,कोरिया
(छ.ग.)
समर्पण

जिस ग्राम की अपार सुषमा

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Atit ki smriti

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कर्मयोगी

नदी किनारे
एक सूखा वृक्ष
बिन पत्तों,
बिन शाखाओं के
झुका खड़ा था।

जिसे देख
एक बूढ़े पथिक ने पूछा,
उदास दीखते हो

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नींद चली आती है...

बाँट में,
अपने हिस्से का सब छोड़,
कोने में पड़ी
सूत से बुनी वह
मंजी अपने साथ ले आई,
जो पुरानी, फालतू समझ
फेंकने के

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बदलाव

सूखे पत्तों को

उड़ते देख
ऋतु ने 
प्रश्न किया....
क्या तुम्हें
मेरे साथ की
इच्छा नहीं रही?

पत्तों ने कहा......
हम तो

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बदलाव

सूखे पत्तों को
उड़ते देख
ऋतु ने 
प्रश्न किया....
क्या तुम्हें
मेरे साथ की
इच्छा नहीं रही?

पत्तों ने कहा......
हम तो

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स्मृतियाँ

स्मृतियाँ

चाँद को देख
आँखें मूँदनी पड़ीं..
..
बिन बुलाए
 बेमौसम
झरती फुहारों सी
स्मृतियाँ
जब उनकी चली

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स्मृतियाँ

स्मृतियाँ

चाँद को देख
आँखें मूँदनी पड़ीं..
..
बिन बुलाए
 बेमौसम
झरती फुहारों सी
स्मृतियाँ
जब उनकी चली

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तेरा मेरा साथ

 

छाँव छम्म से
कूदकर वृक्षों से
स्वागत करती है
धूप के यात्री का।

जिसके चेहरे की रंगत
हो गई है ताँबे के

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तेरा मेरा साथ

छाँव छम्म से
कूदकर वृक्षों से
स्वागत करती है
धूप के यात्री का।

जिसके चेहरे की रंगत
हो गई है ताँबे के

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कठपुतली

कठपुतली हैं उसके हाथों की

फिर नाज़ -नख़रा कैसा ?
नाचो जैसे नचाता है
वह आका है तुम्हारा.......

धागें हैं उसके हाथों

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कठपुतली

कठपुतली हैं उसके हाथों की

फिर नाज़ -नख़रा कैसा ?
नाचो जैसे नचाता है
वह आका है तुम्हारा.......

धागें हैं उसके हाथों

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कठपुतली

2-कठपुतली

कठपुतली हैं उसके हाथों की
फिर नाज़ -नख़रा कैसा ?
नाचो जैसे नचाता है
वह आका है तुम्हारा.......

धागें हैं उसके

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रिश्ते

तुमने कितनी ज़ल्दी
इस अनाम एहसास को
नाम दे दिया.....
रिश्ते में बाँध दिया।

सिर्फ़ इतना कहा था,
तुम मेरे दिल के

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रिश्ते

तुमने कितनी ज़ल्दी
इस अनाम एहसास को
नाम दे दिया.....
रिश्ते में बाँध दिया।

सिर्फ़ इतना कहा था,
तुम मेरे दिल के

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JaiParkash Insan

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प्रेरना

रासते है कच्हे, मनझिल है दूर
नाउ भी है रास्ता, आसमान है भरपूर
राह मे चलते चलते गिर ना जाना
वरना कहोगे खुदसे, अभी

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प्रेरना

रासते है कच्हे, मनझिल ्है दूर
नाउ भी हेइन रास्ता, आसमान है भरपूर
राह मे चलते चलते गिर ना जाना
वरना कहोगे खुदसे, अभी

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UNKI YAAD

bhaag gye wo humein chodker
pata apna peeche choda nhi
dil tod diya unhone humara
hum bhi peecha chodenge nhi

jaan na sake humare pyar ko
khele zindgi se humari
wo kya jaane pyar kya hai
jab sacha pyar unhone kia hi nhi

peeche peeche chalenge tumhare
nazar ghumake dekhna zara
agr zara

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kareebi dost

jANE KYU APNA DOST AAJ APNA DILDAR LAGA
JANE KYU USKA EHSAS AAJ EK PYAR LAGA
RAKHNA CHAHTI THI DOSTI KA PAVITRA RISHTA
JANE KYU AAJ USKI DOSTI MEIN CHEENI KA EK DANA ZADA LAGA

YE KHEL HAI KUDRAT KA, YA MEL HAI DO DILO KA
YE SAZISH HAI KHUDA KI, YA IMTEHAAN DO DOSTO KA
KISI KO KHABAR NHI IS

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अनमोल रतन

IS DIL MEIN JO DARD CHIPA HUA HAI,
WO KOI NHI JANTA TUMHARE SIVA
YE DHADKAN JISKE LIYE DHADAKTI HAI
WO KOI NHI HAI TUM SBKE SIVA

INTZAR MEIN REHETE HAI K
KOI TO HUMEIN SAMJHE TUMHARE SIVA
PER KHALI HATH REHEJATE HAI
JB KOI NHI AATA KAREEB TUMHARE SIVA

TUM HO TO TUMHARI YE DOSTI

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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आँखें .............

आँखें .............

डूबने के लिए समन्दर की है कहाँ जरुरत
इन आँखों में बस एक गोता ...लगा कर बताओ

शाम ढलते ही भागते क्यों

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रविवार, 17 फ़रवरी 2013

&quot;भूल आया हूँ...&quot;

खुद से बातें करते, आज बहुत दूर निकल आया हूँ,
अपने घर का पता भी, मैं भूल आया हूँ।

किनारे की एक छोर पकड़, उसके साथ यहाँ

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&quot;जहाँ अभी गोली चली थी&quot;

अँधेरे की ऊनी चादर ओढ़े,
वो रात भयानक सी है.
जहाँ अभी गोली चली थी,
जहाँ थोड़ी देर पहले भगदड़ मची थी।
एक तरफ,

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स्वास्थ्य रक्षक कविता 1

1* जो करते नहीं परहेज़, तो दवा क्यूं खाते हैं | . ,

चंगा भी होते नहीं, और ज़ेब कटवाते हैं

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राख हुए जाते हैं……

संग्रह- इन्द्र देव चवरे

(1) राख हुए जाते हैं

जिसके लिए ही रचे हैं अडम्बर जात,

जिसके लिए ही साज़-बाज सजवाते हैं

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ज़रूरत क्या है पढ़ने की

रचनाकार-इन्द्र देव चवरे

अच्छा खासा घर-बार है, जिसमें नौकर भरमार हैं |

कॉलेज़ जाने को कार है, और किताबों का अम्बार है

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ज़रूरत क्या है पढ़ने की

रचनाकार-इन्द्र देव चवरे

अच्छा खासा घर-बार है, जिसमें नौकर भरमार हैं |

कॉलेज़ जाने को कार है, और किताबों का अम्बार है

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Tumhari yadein-Meri fariyadein

Zinda h pr fr bhi jine me ek kmi si h,
Khush to h fr bhi aankho me nmi si h,
Rahein to bhut mili aage bdhne ko,
Bs aasma mera tha or tmhari yadein wha jmi si h…….
Us jmi pe kaise jate hm,

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दलितनामा

दलित शब्द इस देश का वह अभिशप्त तमगा है
जो एक बार माथे पर लग गया तो
सात जन्मों तक हट नहीं सकता ।जिसके नाम के साथ

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दलितनामा

दलित शब्द इस देश का वह अभिशप्त तमगा है
जो एक बार माथे पर लग गया तो
सात जन्मों तक हट नहीं सकता ।जिसके नाम के साथ

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शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

जो अंधों में काने निकले

जो अंधों में काने निकले
वो ही राह दिखाने निकले

उजली टोपी सर पर रख के
सच का गला दबाने निकले

चेहरे रोज बदलने

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सार्थतकता नाम की/ हास्य कविता

हास्य कविताएं ( कुण्डलियाँ )

1 निरमल कुमार गंदे भए, और चतुरसींग संठियाय |

अजि नैनदास अंधे भये, और शांतिलाल खिसियाय

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सार्थतकता नाम की/ हास्य कविता

्हास्य कविताएं ( कुण्डलियाँ )

1 निरमल कुमार गंदे भए, और चतुरसींग संठियाय |

अजि नैनदास अंधे भये, और शांतिलाल खिसियाय

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सार्थतकता नाम की/ हास्य कविता

्हास्य कविताएं ( कुण्डलियाँ )

1 निरमल कुमार गंदे भए, और चतुरसींग संठियाय |

अजि नैनदास अंधे भये, और शांतिलाल खिसियाय

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senceless names inpoems

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मानवता का उद्घोष

इस पावन धरती पर फिर मानवता का उद्घोष बजेगा |
दीपक की ज्वाला में प्रतिक्षण अहंकार अज्ञान जलेगा ||

तुम कहते हो तिमिर

A Poem on life and philosiphy

मानवता का उद्घोष

इस पावन धरती पर फिर मानवता का उद्घोष बजेगा |
दीपक की ज्वाला में प्रतिक्षण अहंकार अज्ञान जलेगा ||

तुम कहते हो तिमिर

A Poem on life and philosiphy

ATIT KI SMRITI

अतीत की स्मृति

लेखक
विष्णु दत्त गुप्त
‘‘अधिवक्ता‘‘
बैकुण्ठपुर,कोरिया
(छ.ग.)
समर्पण

जिस ग्राम की अपार सुषमा

VISNU DATTA GUPTA

स्वास्थ्य रक्षक कविता 1

1* जो करते नहीं परहेज़, तो दवा क्यूं खाते हैं | . ,

चंगा भी होते नहीं, और ज़ेब कटवाते हैं

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स्वास्थ्य रक्षक कविता 2

1 फटी एड़ियाँ ठीक करे और फटने से बचाए |

हल्दी और मलाई का जो नित लेप लगाए ||

2 जो कफ़ प्रकोप हो जाए ,रह-रह के ठुसकी आए

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जिन्दगी

प्रीत भरी और प्यारी बातें,
सूनी सूनी सी अंधियारी रातें,
आती है याद अकेले में,
कहाँ खो गयी जिन्दगी
जाने जिन्दगी के

जिन्दगी

ATIT KI SMRITI

अतीत की स्मृति

लेखक
विष्णु दत्त गुप्त
‘‘अधिवक्ता‘‘
बैकुण्ठपुर,कोरिया
(छ.ग.)
समर्पण

जिस ग्राम की अपार सुषमा

VISNU DATTA GUPTA

अतीत की स्मृति

लेखक
विष्णु दत्त गुप्त
‘‘अधिवक्ता‘‘
बैकुण्ठपुर,कोरिया
(छ.ग.)
समर्पण

जिस ग्राम की अपार

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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

Atit ki smriti

vrhr dh Le`fr
ys dksfj;k
¼N-x-½
leiZ.k
ftl xzke dh vikj lq"kek e;h
euksje ouLFkyh ds chp fpj&
laLd`fr dh e’kky fy;s vkfne
tu&tkfr dh Nk;k Mksyrh gS&
mUgha ekuork ds vxznwrks dks
lknj lefiZr

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ग़जल

प्रित लगी कुछ ऐसी उनसे
दिदार हुवी तब कह नही पाया
जब रुख्सत हुई तो
याद आया था

आँखे उनकी झुकी हुई थी
उन्हे छुने को

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Yaad Hai

कुछ नहीं अब गर्दिश-ए-हस्ती में हमको याद है,

याद है तो इक फक़त माशूक का दर याद है.

(गर्दिश-ए-हस्ती = cycle or misfortune of life, माशूक =

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Inkaar

इस कदर मायूस था कि यार ने इकरार किया,

और ये समझा दिल-ए-नादाँ कि इनकार किया.

 

मेरे अश्कों ने किया था हाल-ए-दिल बयाँ

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स्वास्थ्य रक्षक कविता 1

1* जो करते नहीं परहेज़, तो दवा क्यूं खाते हैं | . ,

चंगा भी होते नहीं, और ज़ेब कटवाते हैं

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स्वास्थ्य रक्षक कविता 1

1* जो करते नहीं परहेज़, तो दवा क्यूं खाते हैं | . ,

चंगा भी होते नहीं, और ज़ेब कटवाते हैं

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1* जो करते नहीं परहेज़, तो दवा क्यूं खाते हैं | . ,

चंगा भी होते नहीं, और ज़ेब कटवाते हैं

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विस्तार...

आँख बंद की , ढूंढने लगा
डूबने लगा -
गहरे और गहरे
कभी रोशनी
कभी घुप अंधेरा
कभी तेजधारा झरने सरीखी
........
भीगकर और गहरे

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मै हूँ तन्हा...

तेरे लबों के साये में

हुई आज सहर....

 

तेरे पहलु में

छुपी है आज की शाम....

 

शर्माता हुआ निकला चाँद

तेरे शानों

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एकाकी पन

एकाकी पन

मत पुछो मुझ से
एकाकी पन क्या होता है
न गुजरे किसी पर ऐसा छण
मेरा मन ये कहता है !

दिखने मै तो वो यूँ
इस

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आजादी

आजादी

इस बस्ती का एक एक पथर
मुझ से बोल उठा .........
ये पथिक तू रुक जरा
दर्द हमारे सुनता जा ..... इस ...

मेंडे बोले , खेत बोला

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हाइकु -- पराशर गौर

माथै बिन्दिया

चमके एसे जैसे

फूल गुलाब !

---------

 

तेरी चुनर

बाते करे ह्वा से

पह्ली बन

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गैरों की बज़्म में तुम बेरिदा ही झमके...

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हाइकु -- पराशर गौर

 

 

माथै बिन्दिया

चमके एसे जैसे

फूल गुलाब !

---------

 

तेरी चुनर

बाते करे ह्वा से

पह्ली बन

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एकाकी पन.... parashargaur

एकाकी पन परशर गौर

मत पुछो मुझ से
एकाकी पन क्या होता है
न गुजरे किसी पर ऐसा छण
मेरा मन ये कहता है !

दिखने मै तो वो

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एकाकी पन

एकाकी पन परशर गौर

मत पुछो मुझ से
एकाकी पन क्या होता है
न गुजरे किसी पर ऐसा छण
मेरा मन ये कहता है !

दिखने मै तो वो

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आजादी ;l पराशर गौर

आजादी

इस बस्ती का एक एक पथर
मुझ से बोल उठा .........
ये पथिक तू रुक जरा
दर्द हमारे सुनता जा ..... इस ...

मेंडे बोले , खेत बोला

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एकाकी पन

एकाकी पन परशर गौर

मत पुछो मुझ से
एकाकी पन क्या होता है
न गुजरे किसी पर ऐसा छण
मेरा मन ये कहता है !

दिखने मै तो वो

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एकाकी पन

एकाकी पन

मत पुछो मुझ से
एकाकी पन क्या होता है
न गुजरे किसी पर ऐसा छण
मेरा मन ये कहता है !

दिखने मै तो वो यूँ

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मै हूँ तन्हा...

तेरे लबों के साये में

हुई आज सहर....

 

तेरे पहलु में

छुपी है आज की शाम....

 

शर्माता हुआ निकला चाँद

तेरे शानों

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मिलन

मिलन

रात ढ़लती गई, हम गुनगुनाते गये
शमा जलती रही, हम पिगलते रहे

रात घुटती गई, चाँद चमकता गया
हुस्ने-आग में खुद को

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तितली

तितली

उड़ने दो तितलियों को मुक्त गगन में
इनके बिना यह गगन बेरंग लगता है

रहने दो तितलियों को हर उपवन में
इनके

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गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

तितली

तितली

उड़ने दो तितलियों को मुक्त गगन में
इनके बिना यह गगन बेरंग लगता है

रहने दो तितलियों को हर उपवन में
इनके

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क्यों हमको नजर न आते

क्यों तुम हो भगवान् कहाते?
धुन बंशी की मधुर बजाते।
माँ कहती कण-कण में बसते,
फिर क्यों हमको नजर न आते।।

सूरज दादा

क्यों हमको नजर न आते

जीवन पथ ही मोड़ गया

लेकर चला गया मन मोरा,
जाने तन क्यों छोड़ गया?
एक प्रेम का दीप जलाकर,
जीवन पथ ही मोड़ गया।।

गोरे तन के कोरे मन

A Poem on God and life

जरा सा और सोने दो

जरा सा और सोने दो |
अभी तो रात बाकी है ||

हो रही आँखें उनींदी ,
स्वप्न में अब डूब जाऊं |
कुछ घडी भूलूं जगत को,
जब दिवा से

A Poem on Life

प्रीत की मनुहार

आज मेरे इन दृगों को,
एक बार निहार साथी |
अश्रुओं में जो झलकती,
प्रीत की मनुहार साथी ||

जो नहीं तुम निकट मेरे,

प्रीत की मनुहार

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

माँ-बाप

<em><strong>एक औरत के प्यार में तूमने,
माँ-बाप को भुला दिया;
क्या ये सच है? तूमने,
अपने आप को भुला दिया...!!!

अपनी नींद

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माँ-बाप

<em><strong>एक औरत के प्यार में तूमने,
माँ-बाप को भुला दिया;
क्या ये सच है? तूमने,
अपने आप को भुला दिया...!!!

अपनी नींद

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माँ-बाप

<em><strong>एक औरत के प्यार में तूमने,
माँ-बाप को भुला दिया;
क्या ये सच है? तूमने,
अपने आप को भुला दिया...!!!

अपनी नींद

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विस्तार...

आँख बंद की , ढूंढने लगा
डूबने लगा -
गहरे और गहरे
कभी रोशनी
कभी घुप अंधेरा
कभी तेजधारा झरने सरीखी
........
भीगकर और

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कब तू पास बुलाती है .....

कब तू पास बुलाती है .....

मेरे दिल की चाहत, तेरा इकरार चाहती है।
उल्फत के अल्फाज,तुझ से सुनना चाहती है।

ये होंठों की

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मिलन

मिलन

रात ढ़लती गई, हम गुनगुनाते गये
शमा जलती रही, हम पिगलते रहे

रात घुटती गई, चाँद चमकता गया
हुस्ने-आग में खुद को

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विस्तार...

आँख बंद की , ढूंढने लगा
डूबने लगा -
गहरे और गहरे
कभी रोशनी
कभी घुप अंधेरा
कभी तेजधारा झरने सरीखी
........
भीगकर और

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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

जीवन पथ ही मोड़ गया

लेकर चला गया मन मोरा,
जाने तन क्यों छोड़ गया?
एक प्रेम का दीप जलाकर,
जीवन पथ ही मोड़ गया।।

गोरे तन के कोरे मन

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जरा सा और सोने दो

जरा सा और सोने दो |
अभी तो रात बाकी है ||

हो रही आँखें उनींदी ,
स्वप्न में अब डूब जाऊं |
कुछ घडी भूलूं जगत को,
जब दिवा से

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जरा सा और सोने दो

जरा सा और सोने दो |
अभी तो रात बाकी है ||

हो रही आँखें उनींदी ,
स्वप्न में अब डूब जाऊं |
कुछ घडी भूलूं जगत को,
जब दिवा से

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दारिद्र को जारन को नहीं आयो / शिवदीन राम जोशी

अर्जुन दग्ध कियो वन खाण्डव,
जाय यो काज तो तुच्छ सरायो ।
केसरी पुत्र कछु न करी अहो !

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सन्त महन्त

दाता वह बहुत बडा देता जो अनमोल दान बदले में वह कुछ न लेता वह सन्त है बहुत ही महान।
जिसने ले लिया हो सन्यास उसे भला

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रूह और तलाश..

नदी पे
तैरते अंगारे
उन अंगारों से निकलती
धुंए की स्याह लकीर
उन लकीरों में
दफन होते मेरे ख्वाब
उन दफन क्वाबो

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रूह और तलाश..

नदी पे
तैरते अंगारे
उन अंगारों से निकलती
धुंए की स्याह लकीर
उन लकीरों में
दफन होते मेरे ख्वाब
उन दफन क्वाबो

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माँ

विविध रूप तेरे जीवन के,
हमें मातु छवि प्यारी है।
जीवन खिलता वहीँ जहाँ पर,
माँ तेरी फुलवारी है।।

हम तो तेरे

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पीड़ा

मेघ बहुत है मन मेँ मेरे,
ऐसे ही कैसे बरसा दूँ इनको
दर्द दबा है कंठनाल मेँ,
आंखो से कैसे छलका दूँ इनको।
मन मंदिर की

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sant Mahant

सन्त महन्त
 

दाता वह बहुत बडा देता जो अनमोल दान बदले में वह कुछ न लेता वह सन्त है बहुत ही महान। जिसने ले लिया हो

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teri yadein-meri fariyadein

तेरि यादे-मेरि फरियादे

जिन्दा है फिर भि जिने मे एक कमि सि है,

खुश तो है फिर भि आन्खो मे नमि सि है,

राहे तो बहुत

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सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

कब तू पास बुलाती है .....

कब तू पास बुलाती है .....

मेरे दिल की चाहत, तेरा इकरार चाहती है।
उल्फत के अल्फाज,तुझ से सुनना चाहती है।

ये होंठों की

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रूह और तलाश..

Sudheer Maurya 'sudheer'
===================
नदी पे
तैरते अंगारे
उन अंगारों से निकलती
धुंए की स्याह लकीर
उन लकीरों में
दफन होते

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माँ

विविध रूप तेरे जीवन के,
हमें मातु छवि प्यारी है।
जीवन खिलता वहीँ जहाँ पर,
माँ तेरी फुलवारी है।।

हम तो तेरे

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माँ

विविध रूप तेरे जीवन के,
हमें मातु छवि प्यारी है।
जीवन खिलता वहीँ जहाँ पर,
माँ तेरी फुलवारी है।।

हम तो तेरे

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प्रभु खुद मे है समाए

खोद खोद के ढुंढ रहे हो
मन्दीर मन्दीर तुं जाए
सुबह उठ के मन्त्र तुं जपते
ठंडे पानी नहाये

खोल के पढ ले गीता को

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सुधीर मौर्य की तीन कविताय

 

न रक्स रहा न ग़ज़ल रही...

*******************

 

इश्क के थाल में

चाँद सज़ा कर

बाज़ार में बेच दिया

कल उसने...

 

सपनो

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मेरा परिचय

पता नही क्यू मै अलग खङा हूं दुनिया से !
अपने सपनो को ढूढता विमुख हुआ हूं दुनिया से !!
पता नही क्यूं मै इस दुनिया से अलग

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मेरा परिचय

पता नही क्यू मै अलग खङा हूं दुनिया से !
अपने सपनो को ढूढता विमुख हुआ हूं दुनिया से !!
पता नही क्यूं मै इस दुनिया से अलग

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हरीयाली

जब आता है सावन और चलती है पुरवाई !

ऐसे मेघ बरसते जैसे हरीयाली आयी !!

शान्त पेङ पर बैठी कोयल करती है गान !

नाचता हुआ

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कुछ शे&#039;र मार रहा हूँ...

"तुझे पा ना सका, ये ग़म है मुझे,
तेरा नाम मगर, मरहम है मुझे..."

"ना कर इतना गुमां, पलकों पे मेरी, चढ़ के तू ऐ अश्क,
कि चढ़

Shwet

कुछ शे&#039;र मार रहा हूँ...

"तुझे पा ना सका, ये ग़म है मुझे,
तेरा नाम मगर, मरहम है मुझे..."

"ना कर इतना गुमां, पलकों पे मेरी, चढ़ के तू ऐ अश्क,
कि चढ़

Shwet

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

सुधीर मौर्य की तीन कविताय

 

न रक्स रहा न ग़ज़ल रही...

*******************

 

इश्क के थाल में

चाँद सज़ा कर

बाज़ार में बेच दिया

कल उसने...

 

सपनो

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सुधीर मौर्य की तीन कविताय

 

न रक्स रहा न ग़ज़ल रही...

*******************

 

इश्क के थाल में

चाँद सज़ा कर

बाज़ार में बेच दिया

कल उसने...

 

सपनो

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3-रोंको ना मुझे  कोई फूल अब  बिछाने   दो !-salim raza rewa

M
नात -ए ! मुबारक़

रोंको ना मुझे कोई फूल अब बिछाने दो!
मुस्तफ़ा की आमद है रास्ता सजाने दो

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3-मुस्तफ़ा की आमद है रास्ता सजाने दो !-salim raza rewa

M
नात -ए ! मुबारक़
मुस्तफ़ा की आमद है रास्ता सजाने दो !-
रोंको ना मुझे कोई फूल अब बिछाने

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2-छोंड कर दर तेरा हम किधर जाएँगे ! !! शायर सलीम रज़ा [ग़ज़ल]

M
नात-ए -रसूल
छोंड कर दर तेरा हम किधर जाएँगे !
बिन तेरे तेरी चौखट पे मर जाएँगे!

जब हबीबे ख़ुदा रह्म

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35-ईद का दिन है ख़ुशी मिल के मनाना होगा...salim raza rewa mp

!! ग़ज़ल !!
ईद का दिन है ख़ुशी मिल के मनाना होगा !
सारे शिकवे गिले ऐ यार भुलाना होगा ||

रस्म-ए-उलफ़त वफ़ा दस्तूर

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20-हम दर- बदर की ठोकरे खाते चले गए !salim raza rewa mp 9981728122

हम दर- बदर की ठोकरे खाते चले गए !
फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए !

कोशिश तो की भंवर ने डुबाने की बार बार!
तूफां

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परिवर्तन कब होगा ?

परिवर्तन कब होगा ?

गरीबों के दर्द मे हिस्सेदार हैं सारे मतलब के सरदार
बस्ती बस्ती घूमते नज़र आये पांच साल मे एक

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परिवर्तन कब होगा ?

परिवर्तन कब होगा ?

गरीबों के दर्द मे हिस्सेदार हैं सारे मतलब के सरदार
बस्ती बस्ती घूमते नज़र आये पांच साल मे एक

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परिवर्तन कब होगा ?

परिवर्तन कब होगा ?

गरीबों के दर्द मे हिस्सेदार हैं सारे मतलब के सरदार
बस्ती बस्ती घूमते नज़र आये पांच साल मे एक

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लो हो गई कविता

लो हो गई कविता

अन्दर मन मे
हर बार
हर हालात मे
अलग-अलग से
कुछ टूटा रहा है
तो कहीं कुछ
नई -नई सी
कोई सोच
अंकुरित

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मिलन के ख्याल

मिलन के ख्याल

जब वह शर्मसार होते हैं; तो चहेरे पे गुलाब होते हैं .
आँखों मे शोख़ी,होटों मे मुस्कान;दिल मे तूफ़ान

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तेरी याद मे,

तेरी याद मे,

मुस्कुराते लबों से, नज़र के झरोखे से ;

उँगलियों के बंधन से, बदन की खुशबू से,

गलों की लाली से,आलिंगन की

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बिरह

बिरह

मेरी कलम लिख रही, "बिरह" मधुमास का,

मन मुरझाया, खिला फूल जब अमलतास का,

चली जब बसंती पवन,पलाशों सा मन

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सर्द हवा ओर प्यार का मंज़र

सर्द हवा ओर प्यार का मंज़र

सर्द हवाओं का यह मंज़र,
लहू को जमाता मौसम का असर;
नर्म हथेलियों पे शबनमी ओस,
खुश्क पीले

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र्द हवा ओर प्यार का मंज़र

सर्द हवा ओर प्यार का मंज़र

सर्द हवाओं का यह मंज़र,
लहू को जमाता मौसम का असर;
नर्म हथेलियों पे शबनमी ओस,
खुश्क पीले

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तुम्हारी चिठ्ठी!?!

तुम्हारी चिठ्ठी!?!

तुम्हारी
चिठ्ठी नहीं आई
उम्मीदों की
आँख थक गई
पहले-पहले
सोचा था
शायद तुम
गमगीन हो गई
अपने

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मेहरबानी कीजिये

मेहरबानी कीजिये

खोखली ही चाहे उल्फतें, कुछ मगजमारी कीजिये;
इक नज़्म "मोहब्बत" की गम मिटाने को

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दिल की मौसमी चाल

दिल की मौसमी चाल

सर्द बर्फीली रातों का ठंडा सन्नाटा,
ज़िस्म को भेदता फैला रहा-
शीतलतम लहर अंदर तक;
टटोल कर देखा

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शब्द तो बहुत, पर जुवां खामोश हैं!!

शब्द तो बहुत, पर जुवां खामोश हैं!!

जिंदगी वीरान है!
पर जीने की आरज़ू है;
दिल मे ज़ख्म गहरे है;
पर दर्द चहरे से छुपा

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प्यार के जज्वात !

प्यार के जज्वात !

खुदाई ना कर सके जो,
उन्होंने करके दिखा दिया....
चाहनेवाले को ठुकरा दिया !
रखा हमने पलकों पे,
हमे ही

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कुछ शेर और शायरी

एक-एक जुगनू इकट्ठा किया है तेरे प्यार मे,
तेरे दिल मे रोशनी कर के रहेंगे बता देते है ।

"सजन"

जड़ हुए मील के

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खिलाफ़त

खिलाफ़त


दिल का रोशन चिराग,"ज्लवा", क्या करे मनाने;
दिल परवाना दस्तक दे, ख़ैरियत के ही बहाने |

उनका क्या कसूर

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अनायास सी याद ......!

अनायास सी याद ......!

अनायास ही मन ने चाहा;
शिलालेख पर अंकित शब्दों सी,
पुरातन और धुंधले,
ना समझ आनेवाले हरप,
कौशीश

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मोहब्बत जब जीने का मंजर बन जाए !!

मोहब्बत जब जीने का मंजर बन जाए !!

उनसे क्या मिले, कि खुद से फ़ासले बढ़ गए;
जितना वह क़रीब आये, हम वज़ूद खो गए ;
हर

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आहों से रिसती गज़ल

आहों से रिसती गज़ल,

हमदर्द समझ के एतवार था, उसका किया करे,
हक जतलाकर , सितम वेवाफाई का हम पे करे;
वह जिए ज़िन्दगी,

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शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

28-ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है [ शायर सलीम रज़ा रीवा म-प्र-]

09981728222= ग़ज़ल =
ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है =
मुहब्बत की नज़र से देखने की बस जरुरत है =

यहाँ पर

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30 -ख़्वाब जो आँखों में थे वो सब फ़साने हो गए

ख़्वाब जो आँखों में थे वो सब फ़साने हो गए
मुश्किलें आई तो अपने भी बेगाने हो गए

आज भी उनकी अदायों में वही है

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31-चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है 09981728122

ग़ज़ल
चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है @
मेरे घर के आंगन में सुरमई उजाला है @

जब भी पाव बहके हैं

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32-दर्द देकर न दवा दे मुझको 09981728122

ग़ज़ल
दर्द देकर न दवा दे मुझको @
उम्र भर की न सज़ा दे मुझको @

प्यार का यूँ न सिला दे मुझको @
दोस्त बनकर न

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33-जिंदगी अब रात रानी हो गई

ग़ज़ल
जिंदगी अब रात रानी हो गई ]
जब से उनकी मेहरबानी हो गई ]

इब्तदा - ए -जिंदगी की सुब्ह से

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34- [ग़ज़ल] मय की आगोश में मज़बूर दीवाने आए 9981728122

ग़ज़ल
मय की आगोश में मज़बूर दीवाने आए !!
दर्दे दिल दर्दे जिगर ग़म को सुनाने आए !!

उनकी आमद की ख़बर पहुची

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शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

अधखिली धूप

आज अचानक बैठे-बैठे,
यूंही कुछ कहते-कहते,
मुझे शाम घेरे थी,
अंधेरी चाँदनी डाले डेरे थी,
पर मन में थी उजियाली छायी,
लग

अधखिली धूप

तलाश में सुकून की बेकरार हो गया

तलाश में सुकून की बेकरार हो गया,

एक तिश्नगी है सर पे सवार हो गया,

आवारा बन भटकता हूं

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प्रभु खुद मे है समाए

खोद खोद के ढुंढ रहे हो
मन्दीर मन्दीर तुं जाए
सुबह उठ के मन्त्र तुं जपते
ठंडे पानी नहाये

खोल के पढ ले गीता को

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गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

किया जब प्यार होली में (राजकुमार जयसवाल)

दोस्तों मेरे एक प्रिय मित्र श्री राजकुमार जयसवाल जी, जिनका स्वर्गवास हो चुका है,

एक बहुत ही सीधे-सादे, मृदुल

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19-अज़ीज जान से ज्यादा है शायरी की तरह salim raza rewa mp 9981728122

ग़ज़ल
अज़ीज जान से ज्यादा है शायरी की तरह
तू मेरे साथ है हर लम्हा ज़िन्दगी की तरह

कभी जो साथ रहा

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19-अज़ीज जान से ज्यादा है शायरी की तरह

ग़ज़ल
अज़ीज जान से ज्यादा है शायरी की तरह
तू मेरे साथ है हर लम्हा ज़िन्दगी की तरह

कभी जो साथ रहा

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SHAYARI

तलाश में सुकून की बेकरार हो गया,

एक तिश्नगी है सर पे सवार हो गया,

आवारा बन भटकता हूं

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बंजर सी शाम

एक-एक कर दिन कितने,
ना जाने कैसे बीते, सुबह हुई तो शाम छिपी,
और दुपहरी कैसे बीती।
ना याद रहा अब तो वह पल,
आखिरी बार

बंजर सी शाम

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता

शिवदीन निरंतर ध्यान लगा, गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता
वेद पुराण गुरु छवूँ शास्तर, राम रामायण सत्य है नाता

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गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता / शिवदीन राम जोशी

शिवदीन निरंतर ध्यान लगा, गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता
वेद पुराण गुरु छवूँ शास्तर, राम रामायण सत्य है नाता

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गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता / शिवदीन राम जोशी

शिवदीन निरंतर ध्यान लगा, गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता

वेद पुराण गुरु छवूँ शास्तर, राम रामायण सत्य है नाता

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गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता / शिवदीन राम जोशी

शिवदीन निरंतर ध्यान लगा, गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता

वेद पुराण गुरु छवूँ शास्तर, राम रामायण सत्य है नाता

We can get every thing from

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

हक है मुझे कि दीदार किया करूं

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शक ना कर बेवफाई का

शक ना कर बेवफाई का,

मै तो सौदागर हूं

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हक है मुझे कि दीदार किया करूं

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माँ

सूत्र जीवो की हो तुम देवी
नदी का साहिल हो, या फिर तालाब का हो पानी
जहां तुम खुशियाँ बिखेर देती हो
वह जन्नत बनाती है

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पंछी दुनिया और साहिल

पंछियों की तरह उड़ना सीखो
नीले गगन को चूमना सीखो
मत देखो हमें संसार को
कदम बढाकर चलना सीखो

दुनिया का दस्तूर है,

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दोस्ती

किस्म्त का कीमती फूलो से है मेल
सागर का, सागर की लहेरो से है मेल
इन्सान की गुजारिश क्या है, ये पुचो उनसे
ये तो सब है

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अग्निवृष्टि करो

जागो अग्निधर्मा ऋषियों, सोये क्यों हो समाधि लिए,
बहुत फेर चुके मालाएँ, अब जागो परशु हाथ लिए।
बहुत कमाया तेजो तपोबल,

अग्निवृष्टि करो

खुद से बातें करती हूँ

कभी कभी खुद से बातें करने को जी करता है,

कभी - कभी ख़्वाबों मुझे हाय रहने
को जी करता है
जिंदगी हर लम्हा बदलती है

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खुद से बातें करती हूँ

कभी कभी खुद से बातें करने को जी करता है,

कभी - कभी ख़्वाबों मुझे हाय रहने
को जी करता है
जिंदगी हर लम्हा बदलती है

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अग्निवृष्टि करो

जागो अग्निधर्मा ऋषियों, सोये क्यों हो समाधि लिए,
बहुत फेर चुके मालाएँ, अब जागो परशु हाथ लिए।
बहुत कमाया तेजो

अग्निवृष्टि करो

रंग बरसत ब्रज में होरी का / शिवदीन राम जोशी

<divरंग बरसत ब्रज में होरी का |

बरसाने की मस्त गुजरिया, नखरा वृषभानु किशोरी का ||

गुवाल बाल नन्दलाल अनुठा, वादा

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रंग बरसत ब्रज में होरी का / शिवदीन राम जोशी

<divरंग बरसत ब्रज में होरी का |

बरसाने की मस्त गुजरिया, नखरा वृषभानु किशोरी का ||

गुवाल बाल नन्दलाल अनुठा, वादा

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हाथों की लकीरें ....

माना के तेरे हाथों की लकीरों में मेरा नाम तो नहीं ,

तुने मुझे याद न किया हो,ऐसी भी तो कोई शाम नहीं.

 

 

रविश

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रविवार, 3 फ़रवरी 2013

रावण अजर है अमर है

रावण सदियों से जलता आ रहा है, अभी कुछ रोज पहले भी जला है, लेकिन आप सबने मिलकर उसकी हंसी को बंद कर दिया है, मगर रावण आज

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रावण अजर है अमर है

रावण सदियों से जलता आ रहा है, अभी कुछ रोज पहले भी जला है, लेकिन आप सबने मिलकर उसकी हंसी को बंद कर दिया है, मगर रावण आज

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रावण सदियों से जलता आ रहा है, अभी कुछ रोज पहले भी जला है, लेकिन आप सबने मिलकर उसकी हंसी को बंद कर दिया है, मगर रावण आज

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dosti

किस्म्त का कीमती फूलो से है मेल
सागर का, सागर की लहेरो से है मेल
इन्सान की गुजारिश क्या है, ये पुचो उनसे
ये तो सब है

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dosti

किस्म्त का कीम्ती फूलो से है मेल
सागर का, सागर की लैहेरो से है मेल
इन्सान की गुजारिश क्या है, ये पुच्हो उन्से
ये तो

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