मंगलवार, 31 मार्च 2015

जीवन की कीमत क्या होगी?

जीवन जाने के बाद ये जाना जान की कीमत क्या होगी।
फूलों की चादर ओढ़े हुए सम्मान की कीमत क्या होगी।
माँ गंगा का किनारा है अभिमान की कीमत क्या होगी।
जिसमें मिल सब एक हुए श्मशान की कीमत क्या होगी?

भूख से दम निकल गया घृत दान की कीमत क्या होगी।
घृणित दृष्टि से देखा सबने स्नान की कीमत क्या होगी।
रहने को नहीं दी जमीं आसमान की कीमत क्या होगी।
प्यासा व्याकुल तड़पा जो गौदान की कीमत क्या होगी।

रुदन हॄदय से कर रहे जो अहसान की कीमत क्या होगी।
गर नम हैं मजबूरी में आँखे मुस्कान की कीमत क्या होगी।
लकड़ी की शैया पर सोया हूँ थकान की कीमत क्या होगी।
धू-धू कर के जल जायेगा इस मकान की कीमत क्या होगी।

बहुत लोग घेरे खड़े हैं मुझको पहचान की कीमत क्या होगी।
मुर्दे की महफ़िल में राजनीति अनुमान की कीमत क्या होगी।
पूरा करने चली आत्मा उस अभियान की कीमत क्या होगी।
चिता देखकर जो मिल जाता उस ज्ञान की कीमत क्या होगी।
वैभव”विशेष”

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बस एक भरोसा तेरा है।

सारी दुनिया में मेरी माँ बस एक भरोसा तेरा है।
तेरे स्नेह और आशीष के सिवा और यहां क्या मेरा है।

पूजा है हर एक मूरत को तेरे जैसी सूरत मिली नहीं।
तीरथ कितने भी कर आऊँ तेरे कदमों में ही बसेरा है।

दर्द सहे हैं तूने बहुत पर फिर भी मुझको हंसाया है।
सुबह मिली हैं सूजी आँखे जब कष्ट मुझे कोई आया है।

सागर में मोती के जैसा तेरा मुझसे नाता गहरा है।
सारी दुनिया में मेरी माँ बस एक भरोसा तेरा है।

जब तू हृदय से लगाती है आँखों से अश्रु बह जाते हैं।
जैसे बैठा हूँ मन्दिर में मन में एहसास जगाते हैं।

मैं बहता हूँ लहरों सा तेरा मन साहिल सा ठहरा है।
सारी दुनिया में मेरी माँ बस एक भरोसा तेरा है।

मिल जाती है शक्ति मुझे चट्टानों से टकराने की।
पूरे करने अरमानों की और मंजिल को भी पाने की।

जब हाथ तेरा इस सिर पर है,आँखों के आगे चेहरा है।
सारी दुनिया में मेरी माँ बस एक भरोसा तेरा है।

दे दूँ मैं सारा जीवन फिर भी तुम्हे क्या दे पाउँगा।
दूर हुआ तेरे आँचल से इक पल भी न रह पाउँगा।

तुझसे ही मेरी साँझ ढ़ले तुझसे ही मेरा सबेरा है।
सारी दुनिया में मेरी माँ बस एक भरोसा तेरा है।
वैभव”विशेष”

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सोमवार, 30 मार्च 2015

जीना सिखाया है।

ज़िन्दगी में होके शामिल जीना सिखाया है।
दिल में पाक मुहब्बत का पैगाम लाया है।

मुरझा जो गई कली फिर अश्क़ बहायेगी
लहरों की रवानी पे भी उदासी छायेगी।

बंदिशों में रखा है क्यूँ तुमने जुल्फों को
गालों पे ले आओ,फिर बारिश हो जाएगी।

देख लूँ अक्श खुद का तुम्हें आईना बनाया है।
प्यासे को इक बूँद के लिए कितना सताया है।

परदे में रहकर तुमने मेरा दीदार है किया।
नज़र की चिलमन से कभी इजहार है किया।

कहीं छुपा न लो चेहरा अपने हाथों में
बस यही सोचकर हमने इनकार है किया।

गर्म हवाएँ वक़्त की क्या खाक झुलसायेंगी।
चांदनी से शीतल तेरी जुल्फों की छाया है।

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बचपन

बचपन में जिन्दगी के इतने साज – ओ – साभान ना थे ,
नादान तो थे , मगर इतना परेशान ना थे ।

मच्छरदानी मे तारों की छाओँ मेँ खूब नींद आया करती थी ,
इन दवाइयों के ‘कलमची’ तब गुलाम ना थे ।

कच्ची कैरी का स्वाद आज भी हमे याद है ,
घर पे तब इतने मीठे आम ना थे ।

पडोस की छॅब्बो से आँखों में ही इश्क हुआ करता था ,
फेसबुक पे इश्क के ये किस्से तमाम न थे ।

जमीन और आसमान पर शरेआम हक जताया करते थे,
सर पर इतने किसी के ऐहसान ना थे ।

कच्ची दीवारें खुला आँगन सरकण्डे की छॅत्ते,
इतने पक्के और छोटे तब मकान ना थे ।

हाथ में गुलेल, जेब में कंच्चों की खनक की आवाज़,
इतने शोरगुल को सुनने के आदी यह कान न थे ।।

महीनो रहते थे नानी के घर जाकर,
यूं पल दो पल के तब हम महमान न थे।।
(मान कलमची)

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सिर्फ आप रुक गये

क्या बात करूँ मैं आपसे ये जमाने के
सब आगे निकले सिर्फ आप रुक गये |

बातों बातों में उलझते हर एक आदमी
क्या काम है अपना सब कुछ भूलती |

अपने आप जलती अपनों से भी जलती
कुछ न करती जलती रहती देखती रहती |

वादा,जुजून कब कहाँ खो गयी पत्ता नहीं
अपने ही अंदर भटकती,गुस्से में रहती |

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तेरा कदम डगमगाना सनम

बेशक मोहब्बत थी तुझसे
तसव्वुर में आजमाइश थी
नर्गिस से मिलती थी आँखें
कातिल तेरी आराइश थी

तकदीर में था फ़क़त
तुझे आजमाना सनम
नाचार था नाचीज और
बेरहम जमाना सनम

ताक पर रख कर खुदी
तेरा राहों में आना सनम
बैचेन से चश्मोंचिराग और
वो तेरा मुस्कुराना सनम

वादियां इस कहानी का
गवाह है वो गुलिस्तां भी
पर हमें याद है सिर्फ तेरा
देखकर छूपजाना सनम

नागवार न था मुझे तेरा
घर से ना आना सनम
आजाब की वजह बन गया
तेरा कदम डगमगाना सनम

१ तसव्वुर=विचार २ नर्गिस=प्रिये की आँख
३ आराइश =सजावट ४ नाचार =लाचार
५ खुदी=अभीमान ६ वादियां =उजड़ा
७ आजाब =दर्द

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आब ए तल्ख़

आज लगा आफताब
मुझे तेरे आगोश सा
और चौराहे पर खड़ा
आजिज मैं खामोश सा

उकुबत दे या दे उजाड़
इख्लास से इजहार कर
इन्तिक़ाम ले या तिहाइद
कुछ तो मेरा इन्तिजाम कर

अत्फ़ अब फरमा सितमगर
न अदा का इस्तेमाल कर
बदत्तर से बना मैं अब्बतर
आसिम ना कंगाल कर

असीर है मन मेरा
आजकल इसे लिहाज़ नहीं
आब ए तल्ख़ पीते हैं
कोई और अल्फ़ाज़ नहीं

१ आजिज= मज़बूर २ आफताब=सूरज
३ उकुबत=दण्ड ४ इख्लास =शुध्दता
५ तिहाइद=संधि ६ अत्फ़ =दया ७ आसिम =पापी
८ असीर =कैदी ९ आब ए तल्ख़=कड़वे आशू

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कष्ट परों को सहने दो।

स्वच्छंद उड़ो मुक्त गगन में
पूर्ण करो अभियान।
विश्वास हृदय में हो मगर
तनिक नहीं अभिमान।

दृष्टि लक्ष्य की अनन्य रहे
विचलित,व्यथित न हो पाये।
प्राप्त करो प्रथम परिणाम
धैर्य,हृदय न खो पाये।

अभिलाषाएं हों भले गगन में
पग धूल धूसरित रहने दो।
सामर्थ्य नाप लो उड़ान की
कष्ट परों को सहने दो।

निज नयन नीर के आगे
नतमस्तक न आस करो।
असफलताओं के क्रम से
न मन्दगति से प्रयास करो।

आलोचना के मुख शर्मसार हों
कुछ तो ऐसा प्रबंध करो।
आलौकिक यूँ तेज भरो
कि नेत्र भानु के बन्द करो।

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पाकीजा

नादिर नादिम छोड़ सनम
हम नादानी कर बैठे है
नदीम से नाता नाताकात कर
ऐसी हिमाकत कर बैठे हैं

फ़िराक़ में तेरी मेरे मुहाफिज
ऐसा कदम धर बैठे हैं
न फिर आई वो नौबहार
आजाब अजम कर बैठे है

ख़ानुम तेरे ख्यालों का
पाकीजा है दिल मेरा
एक अदम इज्जत के खातिर
ये जुलुम कर बैठे हैं

1नादिर = चाहने वाला ,२ नादिम= लज्जायुक्त
३ नाताकात =तोड़कर ४ आजाब =दर्द
५ ख़ानुम=राजकुमारी ६ पाकीजा =शुद्ध
७ अदम =शून्य

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रविवार, 29 मार्च 2015

आख़िर खुदकुशी करते हैं क्यों ?

आख़िर खुदकुशी करते हैं क्यों ?
जिंदगी जीने से डरते हैं क्यों ?

फंदे पर लटककर झूले
जीवन है अनमोल ये भूले।
अपनों को देकर तो आंसू,
छोड़ दिए दुनिया में अकेले।

कभी ट्रेन के आगे आना,
कभी ज़हर को लेकर खाना।
कभी मॉल से छलांग लगा दी,
देते हैं वो खुद को आज़ादी।

इस आज़ादी के ख़ातिर वो,
अपनों को देते तकलीफ़
लोग हसंते ऐसी करतूतों पर,
करते नही हैं वो तारीफ़।

पिता के दिल का हाल ना पूछों,
माता पर गुजरी है क्या
इक छोटी सी कठिनाई के ख़ातिर,
क्यों कदम इतना बड़ा लिया उठा।

पुलिस आई है घर पर तेरे,
कर रही सबकों परेशान,
ख़ुद चला गया दुनिया से,
अपनों को किया परेशान।

संतुष्ठि मिल गई है तुमको
अपनी जान तो देकर के,
हाल बुरा है उनका देखो,
बड़ा किया जिसने पाल-पोसकर के।

जिंदगी की सच्चाई में क्यों?
इतना जल्दी हार गए।
आखिर मज़बूरी है क्या?
दुनिया के उस पार गए।

याद नही आई अपनों की,
करते हुए तो ऐसा काम,
क्या बीतेगी सोचते अगर,
नही देते इसकों अंजाम।

दुख का छाया, क्या है अकेले तुम पर
जो हो गए इतना मजबूर
औरों के दुख को भी देखो,
जख्म बन गए हैं नासूर।

हर समस्या का कभी तो,
समाधान भी निकलेगा।
ऊपर बैठा देख रहा जो,
उसका दिल भी पिघलेगा।

बुद्धदिली कहें इसे,
या कायरता कहकर पुकारें,
छोड़ रहे दुनिया को क्यों ?
और भी हैं जीने के सहारे।

कठिनाइयों से डरते हैं क्यों?
आख़िर खुदकुशी करते हैं क्यों ?

रवि श्रीवास्तव
ई मेल- ravi21dec1987@gmail.com

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दोनों में फासला रखना था बहुत देर पहले से,

दोनों में फासला रखना था बहुत देर पहले से,
जीने का हौसला रखना था बहुत देर पहले से,

इक छोटे से गम ने रूह को झकझोर दिया है,
गमों का सिलसिला रखना था बहुत देर पहले से,

सुना है सख्त दिल है वो मिन्नत से पिघलता है,
अश्को का काफिला रखना था बहुत देर पहले से,

लोगों ने दिलजला कहने से तो इन्कार कर दिया,
अपने घर को जला रखना था बहुत देर पहले से।

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कुछ गलतियाँ, गुनाह बनने से पहले संभाली जाये

कुछ गलतियाँ, गुनाह बनने से पहले संभाली जाये,
क्योंकि जेहन का इल्जाम महंगा पडता हैं।

महफ़िलों मे जाओ तो ये बात याद रहे कि
दोस्त का बढ़ाया हुआ हर जाम महंगा पडता हैं।

किसी गैर की अमानत पर नजर नहीं रखो ,
पराई मेहनत का इनाम महंगा पडता हैं।

अपनी आँख के आंसू का इहतियात करो,
ये आंसू हर गुजरती शाम महंगा पडता हैं।

अपनी पहुंच मे न हो जो चीज़ अकसर छोड़ देना,
सहारे का लिया हर नाम महंगा पडता हैं।

मै न जाने किन लोगों की बस्ती में आ गया,
यहाँ चीजों का अहतराम महंगा पडता हैं।

जमीनी हकीकत को हमेशा पास ही रखना,
बुनियाद से उपर किया हर काम महंगा पडता हैं।

शुरूआत के अच्छे सुखन जेहन मे उतर जाते ही है,
इश्क़ का किस्सा अकसर तमाम महंगा पडता हैं।

हकीकत को भूल बड़े काम कर दिये,
आखिर में खुदा का इक पैगाम महंगा पडता हैं।

दिल, जान वफा भरोसा और करम,
खोने के बाद दाम महंगा पडता हैं।

इस दुनिया में मजहबी गलतफमियां इतनी,
कहना कभी रहीम कभी राम महंगा पडता हैं।

महफिल में तमाम लोग जहाँ कद से ऊँचे हो,
सर उठाकर किया सलाम महंगा पडता हैं।

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शनिवार, 28 मार्च 2015

कोई तो अब राम बनो।

सत्कर्म, सदभाव का
कोई तो अब नाम बनो।

कितने हृदय में रावण जन्मा
कोई तो अब राम बनो।

धरा कर रही है विलाप
कोई सत्य का संग्राम बनो।

पाप की लेखनी रोक सके
कोई तो अब पूर्णविराम बनो।

अधर्म और दुष्कर्म मार्ग का
कोई तो अब विश्राम बनो।

जिसमें निश्छल नित प्रीत रहे
कोई तो ऐसा तपो धाम बनो।

कब तक पराजय का शोक रहे
कोई तो सफल परिणाम बनो।

कितने हृदय में रावण जन्मा
कोई तो अब राम बनो।
वैभव”विशेष”

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शायरी

      वो मांझी भला क्या करे जिसकी कश्ती टूटी हो
      मझधार से निकले कैसे जब किनारो से दुरी हो !
      हार जाया करते है अक्सर जंग जिंदगी में लोग
      कहानी जिनकी खुद रब ने ही लिखी अधूरी हो !!

      रफ्ता रफ्ता,तिनका-तिनका उम्र गुजर जाती है
      जिदगी जैसे कोई यादो का पिटारा बन जाती है !
      कभी किसी की यादे ताउम्र का जख्म दे जाती है
      कभी कभी यादो के सहारे जिंदगी कट जाती है !!

      काश खुदा हम पर इतना मेहरबान होते
      करते हम इल्तिज़ा दुआ कबूल फरमाते !
      न होती जरुरत कुछ उनको समझाने की
      अगर दिल की बाते आँखों से समझ पाते !!

      न कर खुद पे जुल्म इतना की दशा बिगड़ जाए
      की छुपाने से बात कही दूरिया और न बढ़ जाए !
      कर किसी को सरीक -ऐ- हालात जिंदगी अपने
      जब घेरे तन्हाईयाँ, कन्धे हाथ उसका मिल जाए !!

      बड़ी नाजुक होती है रिश्तो की डोर
      जरा सी ठेस लगे छन से टूट जाये !
      जिंदगी बीत जाती जिन्हे अपना बनाने में
      वो दिल के अजीज एकपल में गैर हो जाये !!

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।।कविता।। हर इंसान भदैयां में ।।

।। हर इंसान भदैयां में ।।

पाण्डेय जी संतोष विधायक
लम्भुआ का प्रयास
जनता ने बिस्वास किया तो
रच डाला इतिहास
बहुत दिनों के बाद आ सकी
फिर से जान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इंसान भदैयां में ।।1।।

गया प्रसाद महाविद्यालय
लम्भुआ सुलतापुर के बीच
बगहा बाबा के दक्षिण में
मंदिर के बिलकुल नजदीक
दूर दूर तक बहु चर्चित है
लाल निसान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इंसान भदैयां में ।।2।।

बगहा बाबा के मंदिर से
विद्यालय के परिसर तक
दिव्य महल वह भरा हुआ था
भक्तगणों से बेसक
आस्था चैनल पर प्रसारण
हुआ आसान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इंसान भदैयां में ।।3।।

बच्चे बूढे युवा महाशय
औरत बाल गोपाल
भक्ति भावना की वर्षा में
भींग गये हरहाल
पुलिस महकमा जागरूक था
हर नौजवान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इंसान भदैयां में ।।4।।

बापू चिन्मयानन्द दास की
वाणी का प्रवाह
केंद्र बना था आकर्षण का
भक्ति भाव की चाह
अमृत रूपी कथा भागवत
गूंजा गान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इंसान भदैयां में ।।5।।

दिन में कथा भागवत पावन
और रात में झांकी
रासलीला का दिव्य प्रकरण
होता कृष्ण लला की
भक्ति ज्ञान का किया सभी ने
अमृत पान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इंसान भदैयां में ।। 6।।

योगगुरु खुद रामदेव जी
किये योग का जब अभ्यास
लगा था ताँता चौतरफा तब
भीड़ हुई थी खासमखास
‘कपालभाजी’ के भंजन का
मिला है ज्ञान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इंसान भदैयां में ।।7।।

अंगवस्त्र धन दान किये
थे आस पास के ब्राम्हण
अति सुंदर विवाह महोत्सव
का सफल हुआ उनका प्रण
खुद गरीब कन्याओ का किये
कन्यादान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इन्सान भदैयां में ।।8।।

गुप्तदान का अंगदान का
एक अनूठा दर्पण
स्वामी सहित भक्तगणों ने
किया है नेत्र समर्पण
स्वम् बिधायक जी नयनो का
किये है दान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इन्सान भदैयां में ।।9।।

हर प्रकार से प्रसंसनीय था
अंतिम दिन भंडारा
महाप्रसाद लेकर भक्तो ने
निज जीवन को तारा
असंख्य लोगो की भक्ति की
हुई पहचान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इंसान भदैयां में ।।10।।

हर प्रजाति हर मंदिर मस्जिद
हर धर्मो के लोग
महाप्रसाद से तृप्त हो गये
कर करके उपभोग
पहली बार हुआ था ऐसा
खुला एलान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इंसान भदैयां में ।।11।।

धन्य हो गये श्री विधायक
धन्य रही सज्जनता
धन्य हो गाँव हमारा
धन्य हो गयी जनता
जैसे स्यमं उतरकर आये
हो भगवान भदैयां में ।।
अमर कथा से धन्य हो गया
हर इंसान भदैयां में ।।12 ।।

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जब जाता है कोइ अपना छोड़ कर...

माना मैने एक दुनीया बनाया था लम्हो को जो कर
एक आशियाना बनाया था तीनका तीनका जोड कर
कमबख्त तुफान भी निकला कमाल का दुश्मन
उडा ले गया अशियाना मेरा सारा शहर छोड़ कर

हो चुका जो होना था ए दिल उसको ना अब याद कर
उसे पाने के लिये खुदा से अब और फरीयाद ना कर
ठोकरे तो है उमर लम्बी है और फासला भी है बडा
उसकी चाहत मे अपनी जिन्दगी को यु बर्बाद ना कर

चली गया वो भी मुझसे गैरो कि तरह मुह मोड कर
बसाया है उसने एक दुनीया तेरी दुनीया को छोड़ कर
जाना था तो वो चली गयी जीने अपनी जीन्दगी
लेकिन खुदा…..
उसे वो ना छोड़ जाये जीसके लीये गयी वो मुझे छोड़ कर

भरोसा अब तक नही वो गयी है मुझसे से मुह मोड कर
दर्द होता है जब कोइ सपनो को जाता है यु तोड कर
कैसे गुजरता है दिन और कैसे कटती है राते
उनसे पुछो जीनका जाता है कोइ अपना छोड़ कर…

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शुक्रवार, 27 मार्च 2015

तुम और मैं

तुम सुन्दर रूप धरा का
मै उस पर कही दूर गगन !
ये दुनिया तब तक अधूरी
जब तक न हो दोनों का मिलन !!

तुम ठहरी शांत झील सी !
मै उस कीचड़ का खिलता कमल
शोभा होती कमल से झील की
बिना झील नहीं खिलता कमल !!

तुम ओस की गिरती बून्द
मै बंजर भूमि की सुखी घास !
टपक गिरे तो मोती सी चमके
तिनके को मिलती जीने की आस !!

मै बहती पवन का वेग
तुम पुष्प-लता सुगन्धित !
दोनों जब मिल जाए संग
जग में जीवन हो जाए आनंदित !!

तुम अथाह प्रेम का सागर
मै बहता उसका मीठा नीर !
हम जीवन का बने पर्याय
एक आत्मा अपनी, भले दो शरीर !!

!
!
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डी. के निवातियाँ ___________@@@

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उनकी तमन्ना

उन्होने तमन्नाओं को पूरा कर लिया,
मुझे नही है उनसे कोई भी शिकवा।
किसी के वादों से बधां मजबूर हूं,
उन्हें लगता है शायद कमजोर हूं।

बड़ो का आदर, छोटों का सम्मान सिखाया है,
मेरे परिवार ने मुझे, ये सब बताया है।
हर क्रिया की प्रतिक्रिया, हम भी दे सकते हैं,
जान हथेली पर हमेशा हम भी रखते हैं।

उम्र का लिहाज करके, इस बार सह गया,
चेहरे पर मुस्कान लाकर, क्रोध पी गया।
लगता है मंजिल से, ज्यादा नही दूर हूं।
किसी के वादों से बधां मजबूर हूं,
उन्हें लगता है शायद कमजोर हूं।

दुआ खुदा से है, गलती न दोहराए,
रोष में आकर कही, हम अपना आपा न खो जाएं
तोड़ दूंगा इस बार, वादों की वो जंजीर,
खुद लिख दूंगा, अपनी सोई हुई तकदीर।

परवाह नही है जमाने की, न जीने की है चाहत,
चल देगें उस रास्ते पर, जिसमें दो पल की है राहत।
दिल पर लगे जख्मों का, मै तो नासूर हूं,
उन्हें लगता है मैं शायद कमजोर हूं।

किसी के वादों से बधां मै तो मजबूर हूं,
रवि श्रीवास्तव
Email –ravi21dec1987@gmail.com

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गुरुवार, 26 मार्च 2015

एक बार तो मिल ले।गजल।।

मैं मुन्तजिर हूँ तेरा एक बार तो मिल ले।
बस राहे गुजर है तू मेरा एक बार तो मिल ले।

मुद्दत हुई मैं तेरी राह में ही रुक हूँ।
तुमसे ही है करार मेरा एक बार तो मिल ले।

मैं अब हवा में लौ सा डगमगाने लगा हूँ।
कब बुझ जाये ये दिया एक बार तो मिल ले।

कोई भी कर के बहाना दीदार करा दो।
फिर मंजूर है इंकार तेरा एक बार तो मिल ले।

लहरों पर बना बैठा हूँ चाहत का आशियाँ।
और तू बन गया साहिल एक बार तो मिल ले।

अब तलक करता रहा मैं प्यार का इजहार।
खामोश हो रहा संसार मेरा एक बार तो मिल ले।

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जन्मदिवस पर

दिल से ये पयाम लिख रहा हूँ
हाले दिल तमाम लिख रहा हूँ
सोचा तुम्हारे जन्मदिवस पर क्या करूं
इसलिए दिल से खुबसुरत सलाम लिख रहा हूँ|
फूलों का मुस्कान लिख रहा हूँ
चंदन का महक लिख रहा हूँ
सोचा तुम्हारे जन्मदिवस पर क्या दूं
इसलिए दिल से खुबसुरत कलाम लिख रहा हूँ|
सुबह की ताजगी लिख रहा हूँ
नदियों की रवानगी लिख रहा हूँ
चाँद तारों सी सौहरत मिले
ऐसा ये सौगात लिख रहा हूँ
सोचा तुम्हारे जन्मदिवस पर क्या दूं
इसलिए राहे जीवन आसान लिख रहा हूँ|

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बुधवार, 25 मार्च 2015

ममता भी हो रही है अख़बार में शुमार।

सुबह एक हाथ में था समाचार पत्र
और एक हाथ में थी चाय की प्याली।
पीते-पीते चाय मैंने जब नज़र
ख़बरों पर है डाली।

मुख्य पृष्ठ पर सबसे बड़ी खबर
नेता जी का विदेशी दौरा था।
और पत्र के कोने में कहीं एक
किसान गरीबी के लिए रो रहा था

और जब कोई नहीं आया उसे
सहारा देकर ढांढस बंधाने।
तो आज वो ओढ़कर कफ़न
बड़े सुकून से सो रहा था।

और जाते-जाते वो एक सवाल
छोड़ गया कि क्या एक गरीब
की रोटी इतनी महंगी है जितना
विदेशी दौरों में खर्चा हो रहा था।

गरीब,गरीब न रहकर
डायनासोर हो गया।
जो धीरे-धीरे अपना
आस्तित्व ही खो रहा था।

पलटते हुए पन्नों को अचानक
एक खबर पर ठहर गई मेरी नज़र
एक छोटी सी मासूम परी पर
टूटा था हैवानियत का कहर।

और समाज के इन ठेकेदारों
के न्याय को देख लो उस हवस
के पुजारी के साथ ही कर रही है
वो मासूम अपनी ज़िन्दगी बसर।

आओ क्रूर कायरों समाज
से कुछ ऐसी सजा लो।
जिसको पाना चाहो पहले
हवस का शिकार बना लो।

और आगे पढ़ते हुए कहीं पर
बेबसी तो कहीं बेरोजगारी देखी।
ठण्ड से मर रहा कोई इंसान कहीं
कहीं सत्ता की खुमारी देखी।

इक आह भरी मैंने लगा
ज़िन्दगी कुछ कम हो गई।
सहसा ही मेरी आँखें
गम से नम हो गईं।

बालकनी से देखा तो एक माँ अपने
बच्चे को सीने से लगाये जा रही थी वो गालों को नोचता,बालों को खींचता
फिर भी ये माँ है जो मुस्कुरा रही थी।

सुकून की एक लहर सी दौड़ गई
ये हकीकत है कोई किस्सा नहीं है।
बस इक माँ ही है जो इन गन्दे
समाचारों का हिस्सा नहीं है।

रख दिया एक कोने में बड़ी
हिकारत से मैंने अख़बार।
खुली हवा में साँस लेने को
हो गया था तैयार।

पहुंचा एक चौराहे पर जहाँ बहुत
भीड़ लगी थी।
एक कागज में लिपटे नवजात पर
कुत्ते कर रहे थे वार।

तभी उन तमाशबीनों में से कुछ
लोग उसे बचाने को हुए तैयार।
मगर तब तक ज़िन्दगी की जंग
वो नवजात गया था हार।

बस इसी रिश्ते पर भरोसा था
जो टूट रहा है।
लगा की सांसो का साथ
अब छूट रहा है।

माँ के आँचल में तो मिलता है
जन्नत सा करार।
मगर आज ममता भी हो रही
हैं अख़बार में शुमार।

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Read Complete Poem/Kavya Here ममता भी हो रही है अख़बार में शुमार।

इंतज़ार

पहाड़ की घुमावदार सड़कें ,
जो खुद को ही तलाशती हैं .
और –
दूर गांव की एक ड्योढ़ी ,
जिसे किसी की आमद का है इंतज़ार .

सड़कें भी अजीब सी –
एक बड़ा सा पहाड़ ,
और उस पर तीन
परत दर परत सड़कें !

शाम हो चली है ,
अब तक तो आ जाना चाहिए था .
यही सोचती है वो ,
पर उसकी आँखों से आस नहीं जाती .

वह आयी ड्योढ़ी पे ,
एक नज़र भर टटोला उन पहाड़ी सड़कों को,
जिन पैर अब बस की हेडलाइट की रोशनियाँ टिम-टिमाती हैं ,
और खेलती हैं लूका-छिपी .
फिर वह चली गयी वापस , शायद तवे पे रखी रोटी जल रही थी .

पर कह गयी पड़ोस के बच्चे से ,
अगर वो आ जाये , तो खबर करना ,
सामान भी तो बहुत लाता हैi – भारी सा .
किताबें बस किताबें ,
जो कुढतीं हैं खुद पर
हवा खाती हैं ,
बस की , रेल और टैक्सी की .

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संवरने लगे।

शृंगार करके स्वयं दर्पण भी संवरने लगे।
चाँद जब देखे उन्हें तो आह भरने लगे।

जर्रा-जर्रा नूर की बारिश में सराबोर है।
भीग कर भी कई दिल प्यासे ही मरने लगे।

मासूमियत से लबरेज आँखों की कशिश
उस पे शोख अदाओं से कत्ल करने लगे।

जब लेने आया रब जमीं पे टूटे दिलों को
एक झलक में वो भी जन्नत की सैर करने लगे।

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Read Complete Poem/Kavya Here संवरने लगे।

बेगाना कह गए......... (ग़ज़ल)

    1. वैसे तो मुसाफिर हमदोनों एक पथ के थे
      मगर मजिलो से अपनी कुछ इस कदर दूर रह गए !
      बात बस चार कदम के फासले की थी
      हम दो कदम आगे निकले, वो दो कदम पीछे रह गए !!

      मिल जाएंगे एक दिन वो हकीकत में शायद
      इस आरजू में उनकी हम आजतक तन्हा रह गए !
      इल्जाम -ऐ-अंदाज उनका बड़ा निराला था
      वफ़ा कभी जाहिर नही की, हमको बेवफा कह गए !!

      हर राज को छुपाना उनकी फितरत में था
      पर खामोश रहकर भी नजरो से बहुत कुछ कह गए !
      हमने किया अपने हर राज में शामिल उनको
      वो जानकर भी हमारी हर खबर से बेखबर रह गए !!

      कसूर उनका कहे या अपनी किस्मत का
      खुशी किसे मिली नामालूम, गम अपने हिस्से रह गए !
      बहुत खेला उन्होंने हमारे जज्बातों के साथ
      बात हमदम की थी ये समझकर हम बेजुबान रह गए !!

      सर झुकता है सजदे में उनके आज भी
      भले अपने अरमान आंसुओ की बारिश में बह गए !
      गिल शिकवा क्या करना "धर्म" जमाने से
      जब अपने ही हमे सरेआम दिल से बेगाना कह गए !!
      !
      !
      !
      डी. के. निवातियाँ _________@@@

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आकिबत है तेरे आँचल में

आकर तो देख खुमार में तेरे
खियामा भी सजा दिया
खाम समझा था तूने जिसको
सजदे तेरे खुर्शीद उसने बुझा दिया

थोड़ा सा बद हूँ मैं पर
यूं मुझे बदनाम न कर
ख्वाइशों को सस्ता कर के
सरेआम नीलाम न कर

अ, ख्वार इल्तिजा है तुझसे
ये जुल्म नादान ना कर
अब्द ने बांधा दिल अमलन
चिलमन ये बर्बाद ना कर

आज़र्दाह है आज असद
असफाक पर इनाम ना धर
आकिबत है तेरे आँचल में
अश्किया परेशान ना कर

शब्द -१ खियामा=फूलो कि क्यारी २ खाम=नौसिखिया
३ खुर्शीद =सूरज ४ ख्वार =मित्रहीन ५ अब्द =दास
६ अमलन=सिद्दत से ७ आज़र्दाह=मजबूर ८ असद-शेर
९ असफाक=सहारा ९ आकिबत=अन्जाम १० अश्किया=क्रूर

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मंगलवार, 24 मार्च 2015

माँ की आह प्रलय है लाती।।

क्या कोई पुत्र देख सकेगा माँ
को चौराहे पर आस लगाये हुए।

चन्द रोटी के टुकड़ों की खातिर
सबके आगे हाथ फैलाये हुए।

गाय भी तो हमारी माता है
फिर क्यों दर-दर है भटक रही।

लाखों सपूतों ने दूध पिया,
फर्ज के बदले वो ही पराये हुए।

क्यों रक्त बहाते हो गौ माँ का
क्या रक्त हो गया पानी है।

माँ की आह प्रलय है लाती
छोड़ दो ये नादानी है।

हिंसा,अपराध,स्वार्थ
और मानवता का चीर हरण।

बेमौसम बरसात,आंधिया,
बंज़र धरती इसकी निशानी है।

गौ रक्षा के लिए ही जग में
प्रभु श्री कृष्ण बने थे ग्वाला।

आज वही माँ ढूंढ रही है
बचे भोजन में अपना निवाला।

गुरु वशिष्ठ अन्य ऋषि मुनियों
ने कामधेनु के तेज को माना।

स्नेहमयी रसपान करा के
गौ माँ ने कितने युगों को पाला।

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पाश से गुजरी तो

वक़्त की इक़्तिज़ा थी
अंजुमन भी निराली थी
अब्र से चमके अब्सार
अदा आगोश सम्भाली थी

अक्स बना अख्ज़ मेरा
जैसे कोई दिवाली थी
अजनबी सी अन्धेरे में
वो गेशु लंम्बे डाली थी

झलक रहा था शबाब
पर्दे के पार जाली थी
अदीब भी अदा करे
वो ऐसी मतवाली थी

झाँक कर देखूं चिलमन में
शान उसकी निराली थी
पाश से गुजरी तो देखा
वो मेरी घरवाली थी

शब्द – १ अब्र =बादल २ अब्सार =आँखे
३ अख्ज़ =लूटेरा ४ अदीब =विद्वान

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बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है

    1. किसी बंजर में उगता पौधे का फूल
      या कहो रेगिस्तान में तड़पती मछली
      नैन बरसे बिन मौसम बरसात की तरह
      जिसमे सरबोर भीगती मेरी जिंदगानी है
      ………………………………… बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है !!

      मैं दुनिया से या दुनिया मुझसे बेखबर
      ये अनजानी अनसुलझी एक पहेली है
      किसी उपवन में उड़ती तितली की तरह
      थोड़ी से चंचल और थोड़ी दीवानी है
      ………………………………… बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है !!

      असलियत से मेरी हर कोई अनजान
      हमारी भी कुछ अपनी परेशानिया है
      बिखर रहा अपना सब कुछ इस तरह
      जिस तरह बुढ़ापे में ढलती जवानी है
      ………………………………… बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है !!

      इतना नजर अंदाज किया मुझ को
      जिंदगी अब अपनी उलझन लगती है
      न पूछो हाल मेरी इस जिंदगानी का
      जैसे किसी सुने खंडहर की वीरानी है
      ………………………………… बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है !!

      कैसे करू किसी से अपनी बयानगी
      मुझे मेरे उसूलो के खिलाफ लगती है
      मै रहू खफा खुद से या कोई मुझ से रहे
      जिक्र करना भी अब तो जैसे बेमानी है
      ………………………………… बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है !!

      अनजाने में शायद बन गए अफ़साने कुछ
      जो आज हम गुनहगारो की फेहरिस्त में है
      इस क़द्र हुए बेआबरू अपनों की नजर में जैसे
      अब नैनो से छलकते आंसू भी सिर्फ पानी है
      ………………………………… बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है !!

      कभी हँसती थी कभी खिलखिलाती थी
      फूलो सी महकती,तारो सी जगमगाती थी
      जाने कहाँ गुम गयी मेरी वो अठखेलिया
      न जाने किसने हम पर बुरी नजर डाली है
      ………………………………… बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है !!

      आज पूछती है मेरी तन्हाईयाँ मुझ से
      कुछ तो बता है कौन जो बिछड़ा तुझ से
      अब कैसे समझाऊ मेरा कोई साथी नही
      शायद आज मैंने खुद ही से जुदाई की ठानी है
      ………………………………… बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है !!

      मेरी आदते ही शायद कुछ ऐसी थी
      दुनिया से सुर ताल मिला न सकी
      बहुत चाहा सरगम में घुल मिल जाना
      मगर क्या करते अपनी लय ही बेजुबानी है
      ………………………………… बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है !!

      रद्दी कागज के कुछ पन्नो में लिपटी हुई
      कहे – अनकहे अल्फाजो में सिमटी हुई
      सूखे रेत की तरह हाथ से फिसलती हुई
      हवा और पानी सी बहती अपनी जिंदगानी है
      बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है !! … बस कुछ ऐसी मेरी कहानी है !!

      डी. के. निवातियाँ__________________@@@

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दिल का बोझ हल्का हो जाए

मुद्दत बाद गुजरा हूँ तेरी गली से
इल्म है की तुम्हें न देख पाउँगा।
फिर भी एक उम्मीद है कि
शायद मेरे कदमों की आहट सुन लो।

वर्षों बीत गए और आँखों की
रौशनी भी कम हो गई।
पर तुम आज भी मन की आँखों
में सौंदर्य की सलोनी प्रतिमा हो।

दरीचे,दरख्त,खिड़कियां वही
बस तुम्हारा शोख चेहरा नहीं।
झिझक थी दिल में,कुछ न कह सका
मगर नज़र से तेरी कुछ न छुप सका।

कुछ नहीं ये मजहब की दीवार थी
मैं इस पार था तू उस पार थी।
हौंसला न था,शामिल तेरा नाम करूँ
कैसे माँ के यकीन को नीलाम करूँ।

ठिठक कर रह गई ज़िन्दगी
हसरतें भी अश्क़ में बह गईं।
ये चन्द साँसों का तिलिस्म था।
जिसमें राह ढूंढता मेरा जिस्म था।

फिर एक और सांस सिमट गई
यादें रह गईं,तस्वीरें मिट गईं।
झूठी शान-ओ-शौकत बचाने में
मेरे इश्क़ की आबरू ही लुट गई।

सुना था कि घर से जाते वक़्त
तेरी आँखों में सैलाब उमड़ा था।
जख्मों से ताल्लुकात सुधरे
मेरा भी हर ख्वाब उजड़ा था।

तेरी अदालत में बेगुनाह होकर
बतौर मुजरिम खड़ा हूँ ।
सजा कोई तो मुकर्रर कर दो
दिल का बोझ हल्का हो जाए।

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मुझे बरसात कह दो तुम।

तेरे दिल में जो बस जाऊं मुझे जज्बात कह दो तुम।
जो आँखों से छलक जाऊं मुझे बरसात कह दो तुम।
यूँ तो जागा हूँ मैं हर लम्हा तेरे इक दीदार की खातिर
सुकूँ से जो तुमको सुलाऊँ मुझे वो रात कह दो तुम।

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सोमवार, 23 मार्च 2015

थे देश के अमर सपूत।।।

स्वाभिमान,सम्मान की खातिर
न्यौछावर निज प्राण किये।
थे देश के अमर सपूत वो
बिन स्वार्थ ये अनुदान किये।

काँटों पर चलकर कर दिए
पुष्प समर्पित माँ के चरणों में।
धन्य हो गई धनवान धरा
वो तनिक नहीं अभिमान किये।

होंठो से जब चूमा फंदे को
फंदा विलाप करने लगा।
हंसकर बोले चुप हो जा तू
क्रांति से पैदा कितने जवान किये।

जन-जन में हम जीवित हैं
फंदा डाल गले में झूल गए।
इंक़लाब जिंदाबाद रहे जुबाँ पर
जाते-जाते यही आह्वान किये।

भगत,देव और राजगुरु के
सम देशभक्त अविस्मरणीय हैं।
स्वप्न सलोने,बचपन की यादें
प्रेम,जवानी भी कुर्बान किये।

स्वाभिमान,सम्मान की खातिर
न्यौछावर निज प्राण किये।
थे देश के अमर सपूत वो
बिन स्वार्थ ये अनुदान किये।

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खंजर दिल उतरता है

तिजोरियां भी आजकल
बहुत छोटी होने लगी
छुपाने के लिए बैचैन
क्या क्या भरता फिरता है

नियत और तृषणंगी है
की पूरी होती नहीं
बड़ा भूखा है हैवान
बिन चबाये ही निगलता है

हैरान हूँ बहुत इतनी
मासूमियत देख कर
जाने एक इंशान कैसे
इतने रंग बदलता है

अब तक काबिज हूँ
खुदा का रहमों करम
सामने से वरना सीधे
खंजर दिल उतरता है

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मगरूर

जुल्म अ मुद्दा कोई
तलवार सा लगता है
जिंदगिया निगल लेगा
व्यापार सा लगता है

चुप कर जाऊं
जुल्म ये देखकर
तब गिरेबां भी अपना
गुनेहगार सा लगता है

गुमनाम लिखी जाएँ
गुस्ताखियाँ मेरी
दर्द नजरे शागिर्द
डूबने से पता चलता है

वो दामन अपना
इतना पाक रखते हैं
खुदा की राहों पर जैसे
पैगम्बर गुजरता है

नादान हैं जो छुपाते है
अश्क उसके दरबार में
दुहाई का हर आँशू
उसके पैर पर गिरता है

मगरूर ना बन इतना
सुन ले तू ‘राकेश’
शाहों का वक़्त भी कभी
राख़ पर गुजरता है

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आज तो बहुत ख़ुश हूँ मैं

ख़ुशी कभी मैं अपनी दिखाती नहीं ,
और दुःख किसी से जताती नहीं।
हैं चीज़ें बहुत सी बताने के लिए,
पर ये बात और है की मैं किसी को बताती नहीं||

जिंदगी भी एक हसीं खेल की तरह है,
और आँसू भी ताश के पत्तों की तरह है |
जीत गई तो आँखों में रह जायेंगे,
और हार गई तो बेबसी बन के बह जायेंगे||

सब सोचते हैं मुघे किसी का गम नहीं ,
और परेशानियाँ बयां करने वालों में से हम नहीं|
अग़र हुई कभी किसी मज़बूरी की शिकार,
फिर भी कोई समघ ले हमें इतना किसी में दम नहीं||

हूँ ख़ुद में उलघी हुई पर औरों के लिए सुलघ गई,
इतना नज़रअंदाज़ किया ख़ुद को की खुद से उलघ गई|
अच्छा लगता है जब कोई हसता है और वज़ह मैं बनती हूँ,
तकलीफ़ें अपनी भुला के सुकून से सोतीं हूँ||

नहीं पता मुघे मेरे हालात क्या हैं,
उलघ्नो में उल्घे मेरे जज़्बात क्या हैं|
है अगर ख़बर किसी को मेरे तकलीफों की,
तो बता दे मुघे तकलीफ़ों से ये मुलाक़ात क्या है||

मुश्किलें इतनी हैं की वो ख़ुद में उलघ गईं हैं ,
इतनी खुद में उलघी की मुघसे सुलघ गईं हैं|
है तक़दीर में यही तो बस यही सही है,
दुखी हूँ मैं अब इस बात का भी मुघे गम नहीं है||

अपनी आदत नहीं औरों से बयां करना,
हूँ ख़फ़ा ख़ुद से और तकलीफ़ों से मैं|
पर अब भी लोगों को कहते सुनती हूँ की,
आज तो बहुत ख़ुश हूँ मैं||

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रविवार, 22 मार्च 2015

चुनावी डंका

गली-गली मौहल्ले
नुक्कड़ और चौराहे पर
बज रहा है डंका
भारतीय चुनाव का
संघर्ष और ईमान का
कौन हारे
कौन जीते
सोच रहा है इंसान अब
हिसाब लगाकर वोटों का I
लेकर आशाएँ,भावनाएँ
शायद कोई नेता
बन जाये भगवान
बचाले देश को,
जनता को
मँहगाई की मार से
भ्रष्टाचार से I
निगाहें टिकी है सबकी,
जमी है
कई सालों से
उस पुरुष के लिए
जिसे चुनकर जनता
खड़ी कर रही है आगे
कई वोट देकर I
पुकार रही है
आओ,आओ अब पूरा करो
अपने वादे
जो सुनाये थे
चुनाव से पहले
छाती पीट-पीटकर सबको
जनता को भाग्य मानकर
परिवार मानकर I

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तलाश

सारे जहा का प्यार

राह चलते, ठोकर खाते,
हुआ मै हताश , फिर भी है तलाश,
राह पर बिखरे थे कांटे ,
दर्द भूलाकर हम चल दिये ,
किसी ने पुछा हमे, ये क्या है,
हमने हंसकर फुल कह दिये,
तेज कडी धूप हो या पानी की बौच्छार,
हम तो ऐसे चल रहे थे, जैसे दो धारि तलवार ,
बस थोडी और दुरी पर है मंजिल हमारी
फिर होगी मन कि मुरादे पुरी,

जिसकी थी तलाश हमे, हमने उसको पा लिये,
ये सारे दर्द सहे हमने सिर्फ, दुनिया के खुशी के लिये ,
और जिसकी हम तलाश कर रहे थे, वह है सारे जहा का प्यार…..

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जल बिन जग जीवित नहीं।

जल से ही जग जीवित है।
जल हर श्वांस में नीहित है।
मनुष्य नहीं देवों को ज्ञान
शिव जटा में गंगजल शोभित है।

पंचतत्व में है सर्वश्रेष्ठ जल
प्रकृति की ममता का आँचल।
उपहार स्वरुप जो प्राप्त हुआ
एक बूँद का संचय,भविष्य उज्वल।

हरियाली का स्वागत करते
बंज़र धरती होने से डरते।
भयावह है दृश्य जल बिन
फिर क्यूं न जल संचय करते?

जीव-जन्तु निर्भर हैं जल पर
जल नहीं तो किसके बल पर।
अभी आलस्य में व्यर्थ गंवाते
फिर पश्चाताप करोगे कल पर।

उठो जागो जग जागरूक करो
जल से जलकर न आह भरो।
सृष्टि की है आधार शिला जल
जल का दोहन सीमित करो।

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शनिवार, 21 मार्च 2015

डॉ.शम्भुनाथ तिवारी

(1)
ग़ज़ल
सोचकर मुझको ये हैरानी बहुत है
दुश्मनी अपनों ने ही ठानी बहुत है

जानकर मैं अबतलक अनजान-सा हूँ
हाँ,उसी ने मुट्ठियाँ तानी बहुत है

दे गया है ग़म ज़माने भर का लेकिन
अब उसे क्योंकर पशेमानी बहुत है

चाहता है दिल से पर कहता नहीं क्यों
ये अदा जो भी हो लासानी बहुत है

दोस्ती का भी शिला मुझको मिला ये
ख़ाक़ मैंने उम्र भर छानी बहुत है

ज़िंदगी में फूल भी काँटे भी बेशक़
चंद ख़ुशियाँ तो परीशानी बहुत है

किसलिए ख़ुद पर गुमाँ कोई करेगा
जब यकीनन ज़िदगी फ़ानी बहुत है

रह सकूँ खामोश सबकुछ जानकर भी
गर मिले मुझको ये नादानी बहुत है

आ सके आँखों में गर दो बूँद पानी
ज़िंदगी के बस यही मानी बहुत है

(2)
ग़ज़ल
बेमतलब आँखों के कोर भिगोना क्या
अपनी नाकामी का रोना-रोना क्या

बेहतर है कि समझें नब्ज़ ज़माने की
वक़्त गया फिर पछताने से होना क्या

भाईचारा-प्यार-मुहब्बत नहीं अगर
तब रिश्ते-नातों को लेकर ढ़ोना क्या

जिसने जान लिया की दुनिया फ़ानी है
उसे फूल या काटों भरा बिछौना क्या

क़ातिल को भी क़ातिल लोग नहीं कहते
ऐसे लोगों का भी होना-होना क्या

मज़हब ही जिसकी दरवेश फक़ीरी है
उसकी नज़रों में क्या मिट्टी-सोना क्या

जहाँ नहीं कोई अपना हमदर्द मिले
उस नगरी में रोकर आँखें खोना क्या

मुफ़लिस जिसे बनाकर छोड़ा गर्दिश ने
उस बेचारे का जगना भी सोना क्या

फिक्र जिसे लग जाती उसकी मत पूछो
उसको जंतर-मंतर-जादू-टोना क्या

(3)
ग़ज़ल
नहीं कुछ भी बताना चाहता है
भला वह क्या छुपाना चाहता है

तिज़ारत की है जिसने आँसुओं की
वही ख़ुद मुस्कुराना चाहता है

किया है ख़ाक़ जिसने चमन को वो
मुक़म्मल आशियाना चाहता है

हथेली पर सजाकर एक क़तरा
समंदर वह बनाना चाहता है

ज़माना काश,हो उसके सरीखा
यही दिल से दीवाना चाहता है

ज़रा सी बात है बस रौशनी की
मगर वह घर जलाना चाहता है

ज़ुबाँ से कुछ न बोलूँ जुल्म सहकर
यही मुझसे ज़माना चाहता है

लगीं कहने यहाँ खामोशियाँ भी
ज़ुबाँ तक कुछ तो आना चाहता है

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नवरात्रे।।

तुम सरिता का शीतल जल हो
तुम तरुवर की छाया माँ।
प्यास बुझाकर हृदय से लगाया
जो भी शरण में आया माँ।

आदिशक्ति हे सिंहवाहिनी तुमने
इस जग का निर्माण किया।
महिषासुर का मर्दन करके,माँ
देवों का कल्याण किया।

शैलपुत्री समस्त कष्टों को हर लें
ब्रह्मचारिणी हैं मंगलकारिणी।
चंद्रघंटा माँ घर में वैभव बरसायें
कुष्मांडा हैं संकट हरिणी।

स्कंदमाता भवसागर से पार करें
कात्यायनी आशा की ज्योति।
माँ कालरात्रि देवी हैं शस्त्रधारिणी
महागौरी निर्मल हॄदय की गति।

सिद्धिदात्री माँ सिद्ध करे सब कार्य
निश्छल,परोपकारी हो जीवन।
माँ दुर्गा में समाहित नौ देवी के रूप
अर्पण चरणों में तन,मन व धन।

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अंजाम ज़िन्दगी है।

आगाज ज़िन्दगी है,अंजाम ज़िन्दगी है।
आज गम है कल ख़ुशी पैगाम ज़िन्दगी है।

कब किसकी हमसफ़र ये कब किससे ये खफा है।
कब है वफ़ा की मूरत,कब किससे बेवफा है।

इस नाम की वजह से बदनाम ज़िन्दगी है।
आज गम है कल ख़ुशी पैगाम ज़िन्दगी है।

कोई भी न बचा है हर एक से वास्ता है।
फूलों की है ये मन्ज़िल कभी काँटों का रास्ता है।

प्यास है कभी तो कभी जाम ज़िन्दगी है।
आज गम है कल ख़ुशी पैगाम ज़िन्दगी है।

आये हैं इस जहाँ में न यूँ ही चले जाना
हर किसी के दिल में अपनी जगह बनाना।

कुछ करके दिखाने का ही नाम ज़िन्दगी है।
आज गम है कल ख़ुशी पैगाम ज़िन्दगी है।

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गुज़ारिश

मेरे हाथों की मेहंदी की गुज़ारिश है ,imagesr
तुम अपनी चौखट फूंलों से सजा लेना
दरों दीवारों को स्याह रंगवा देना,
मैंने आँचल में सितारे जड़ा रखे हैं ,
नमी वाली रात- रानी की खुशबू में
यूँ महसूस कर सकूँ मैं अपने चाँद को ,
छू लेने को बेताब नरम हथेलियों से,
….जिसे अब तलक बस दूर से देखा है …….

अनिल कुमार सिंह

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फिक्र

      हर कोई शख्स परेशान इस जहान में
      सबको फिक्र किसी न किसी काम से

      कोई डरे भगवान से, कोई डरे बलवान से
      बनी रहती यहाँ हर पल सबकी जान पे

      समुद्र में चलता नाविक डरता तूफान से
      घर में बैठा कंजूस सदा डरता मेहमान से

      अमीर को रहती चिंता हमेशा झूठी शान की
      गरीब को फ़िक्र वही रहती सदा सम्मान की

      सीमा पर जवान को चिंता अपनी आन की
      कही रणभूमि में फ़िक्र करे कायर जान की

      पायलट को चिंता रहती सदैव उड़ान की
      मुसाफिर फ़िक्र करे, अपने सामान की

      दुनिया में संत करते चिंता जहान की
      घर में फ़िक्र लगी बड़ो को सम्मान की

      विद्यार्थी को चिंता रहती अपने इंम्तिहान की
      कही फ़िक्र लगी रहती व्यापारी को नुक्सान की
      !
      !
      !
      डी. के, निवातियाँ ________@@@

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अहसास

ढूँढ़ती हुई
उसकी आँखें
एक बूंद पसीने मे
अपनी परछाईं के
जीवित होने का
और
उन्ही लम्हों की
इच्छाएं
बंधन मुक्त हो कर
गर्म शिलालेख पर
जुदाई की तडप मे
जलती लौ की
भावनाओं का
अहसास……………गोविंद ओझा

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Matlabi duniya

Chote si jindagi hain usme dard bahut h. jeena sirf mere liye khne wale log bHut hain.
mje achi ni lagi bhagwan teri bnayi y shrishti isme dhoka dena wale log bahut hain. tere liye m apni jaan dedunga khkr jaan ko bechne wale bahut h.
koi kisi ka ni hain apna matlab nikalne wale log bahut hain. tere raaz me kya kya krte hain log. tje bhi mannat ke nam pr bech dete hain log.
khte h jise lakshmi usi k ansh ko garb m maar dete hain log. taras ni aata un darindo 3 sal ki ldki ki chikho pr jise rape kr maar dete hain log.
kya bnaa kr bhul gya hain tu is duniya ko ya tere bhi hath bandh chuke hain log. Rona aata hain dekh kr jb paida hue bache k nam pr bheekh mangne lag jate hain log.
gussa aata hain jab pyar ka naam kehkar istemaal krne lag jate hain log. kisi garib ki mehnat ki kamayi cheen kr kha jate hain log.
bada dukh hota hain jb paiso ke liye bik jate hain log. kya hoga un maasum jano ka jinhe badle ke naam pr bumb se udaa dete hain log.
mujhe achi ni lagi teri yeh duniya jaha matlab nikalne ke baad maa baap ko chod jate hain log….|||

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मलाल-ए-दिल

दिल है मेरा क़ायल इश्क का क़ीमत इसकी बताइये,
हाल है मेरा बेहाल ख़ुश्क सा आफ़त इसकी बताइये ।

जिस्म मेरा घायल अश्क़ का उक़ूबत इसकी बताइये,
जख्म मेरा ज़लाल लक़ का जराहत इसकी बताइये ।

गुज़र मेरा वस्ल फ़िराक सा फ़ितरत इसकी बताइये,
क़ुसूर मेरा आंचल अश्फ़ाक का सीरत इसकी बताइये ।

अक्स मेरा अस्ल तारीक सा इल्लत इसकी बताइये,
क़फ़स मेरा क़त्ल ताक का नज़ाकत इसकी बताइये ।

लफ्ज़ मेरा मलाल आशिक़ का क़ुरबत इसकी बताइये,
कागज़ मेरा जमाल नाजुक सा औकात इसकी बताइये ।

आशिक़ ❧

Meaning

  • क़ायल – Convinced
  • ख़ुश्क – Withered
  • उक़ूबत – Dire suffering
  • ज़लाल – Mistake
  • जराहत – surgery
  • वस्ल – meeting
  • फ़िराक – separation
  • अश्फ़ाक – support
  • सीरत – character
  • तारीक – dark
  • इल्लत – cause
  • ताक – glance
  • क़फ़स – body
  • जमाल – elegance
  • मलाल – regret
  • क़ुरबत – relation
  • लक़ – wobbly
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शुक्रवार, 20 मार्च 2015

मेरे आने के बाद

      मेरे आने के बाद

      कैसे भुला सकता हूँ उनकी मेहरबानी
      जिनके रहमो करम से आज मेरा वजूद
      अनमोल रत्न समझा था मुझे उन्होंने
      पाया खुद को दुनिया में सबसे अमीर,
      जैसे हो गयी थी उनकी हर दुआ कबूल, मेरे आने के बाद !!

      कैसे कर सकता हु नजर अंदाज उसको
      जिसके लिए बेरंग था हर नूर मेरे बिन
      बैठे रहते थे उदास अकेले तन्हाइयो में
      मुझे याद है उसकी वो अदा आज भी
      नजरे झुकाकर चुपके से मुस्काना, मेरे आने के बाद !!

      कैसे मिटा दूँ उनकी यादो को दिल से
      जिनके लिए अमूल्य मेरा हर एक क्षण
      खिल उठते नयन पुष्प कमल से उनके
      महक उठता खुशियो से चमन जिनका,
      महफूज समझते खुद को जन्नत में, मेरे आने के बाद !!

      क्या भुला सकता हूँ मैं उन चौबारों को
      यारो संग जहाँ बीता था अपना बचपन
      कभी खेलते, लड़ते-झगड़ते थे हम कल
      जहाँ गुजरे थे अपने बेख़ौफ़ मस्ती के पल
      सुनसान पड़ा आज वो गलियारा, मेरे आने के बाद !!

      आज जीना चाहता हूँ हर सूरत-ऐ-हाल
      कर जाऊ न्योछावर सब कुछ यहाँ अपना
      अहसास दिलाया मुझको मेरे होने का
      जरुरत में ताकत बन मेरे साथ चले
      हो जाता जिनका दिल बाग़-बाग़, मेरे आने के बाद !!

      बात रिश्तो की असलियत की हो
      या चेहरे पर बिखरती मुस्कान की
      भला कोई क्या समझेगा हकीकत
      दिल, जिगर उठते उनके अरमान की
      सबकुछ गवा दिया जिन्होंने, मेरे आने के बाद !!

      !
      !
      डी. के. निवातियाँ_______@@@

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गुरुवार, 19 मार्च 2015

भालू

भालू

आलू भोंड़ा, चाट मसाला,
इडली, डोसा, गरम समोसा,
दही बड़ा औ तीखा भजिया,
पोहा, चिवड़ा, मस्त मंगोड़ा,

दही, पकौड़ी, सौंठ कचौड़ी,
आलू टिक्की, गुड की चिक्की.
छोले आलू और कचालू,
सब कुछ खाकर सोया भालू।
—- भूपेन्द्र कुमार दवे

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फरेब की दल-दल

  • न कर गिला शिकवा है सब तेरी रजा का फल !
    करोगे अहसास तो होगा, आज नही तो कल !!

    सफर लम्बा तो क्या मंजिल दूर ही सही !
    राहे मुश्किल अगर जरा सा संभल के चल !!

    देख कर अनदेखा किया आज उसने इसलिए !!
    शायद उठी हो उसके जहन सवालो की हलचल !!

    लोग उठाते लुफ्त जमाने में भले दुःख देकर !
    अपनी खुशियो से बढ़कर हमे दुसरो का गम !!

    किस पर करोगे भरोसा “धर्म” इस जमाने में !
    चारो और तो पसरी है छल फरेब की दल-दल !!

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    डी. के निवातियाँ ______@@@

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मौन

मौन
मुझसे बना अपरिचित
जब आँखे तुम्हारी होगी नम ।।
खो जाएँगे हवाओं में
फासलों को समेट कर
जब वक्त हो जाएगा नम ।।
अजनबी आवाजों की
मृगतृष्णा मे
जब मन हो जाएगा नम ।।

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