रविवार, 31 मई 2015

चमचागीरी-70

कभी ढूंढना नहीं पड़ता ,हर जगह मिलते हैं, हर जगह चमचों का समूह है;
कब तक लड़ेगा अकेला अभिमन्यु, जब हर जगह चमचागीरी का चक्रव्यूह है.

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चमचागीरी-69

दुनिया में मात्र हिंदुस्तान एक ऐसा मुल्क है;
जहाँ सभी के लिए चमचागीरी निशुल्क है.

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चमचागीरी-68

जो बॉस चमचों से घिरे होते हैं;
वह लोग पूरे सिरफिरे होते हैं.

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चमचागीरी-67

हर जगह चमचों की एक ही पुकार है;
चमचागीरी मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है.

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चमचागीरी-66

ये अपने साथिओं का कर दे बुरा हाल रे;
चमचागीरी की गोली मारे चमचा कमाल रे.

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चमचागीरी-65

हे भगवान हिंदुस्तान में कब ऐसा समय आएगा;
जब चमचागीरी करने वालों को मृत्यु दंड दिया जायेगा.

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चमचागीरी-63

अगर चमचों को चेचक और हैज़ा न हो पाये तो,
भगवान करे चमचों को डेंगू और मलेरिआ हो जाये.

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चमचागीरी-63

चमचा ऐसा चाहिए जो गुपचुप आग लगाए:
खुद को ले बचाय और औरों को देय फँसाय.

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शनिवार, 30 मई 2015

आज़ादी

इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,
हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।

कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं।
मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं।

असीराने-क़फ़स से काश, यह सैयाद कह देता,
रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं।

रहा करता है अहले-ग़म को क्या-क्या इंतज़ार इसका,
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं।

यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कै़दे-उल्फ़त मंे,
वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं।

सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी,
वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।

यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते,
हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?

कोई बिस्मिल बनाता है, जो मक़तल में हमंे 'बिस्मिल',
तो हम डरकर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं।

-राम प्रसाद बिस्मिल

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अच्छा लगता है

    1. कुछ तो बात थी जो हुआ रब मेहरबान,
      और बना तुमसे नाता, सच्चा लगता है !
      जब से मिला सहारा तेरी वफाओ का ,
      करके दो बाते तुमसे अच्छा लगता है !!

      डी. के. निवातियाँ ________!!!

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भाग दो : शायद वो सिर्फ एक सपना ही होगा

भाग दो : शायद वो सिर्फ एक सपना ही होगा
Wo unchi imarat mai karyalay ki chah, वो ऊँची ईमारत में कार्यालय की चाह
Wo bhatakti chamakti shahro ki rah. वो भटकती , चमकती शहरो की राह
Nayee disha mili jeewan ko mere, नयी दिशा मिली जीवन को मेरी,
Ek dost ka yu haath thaam lene se wah. एक दोस्त का यु थाम लेने से वाह!

Nayee umeedo ka daur yu aaya नयी उम्मीदो का दौर यु आया
Wo dost mera kuch eisa kar paaya वो दोस्त मेरा कुछ ऐसा कर पाया
Meri khud garji ne mara hai usko मेरी खुदगर्जी ने मारा है उसको
Kyo usko rulaya kyo usko sataya. क्यों उसको रुलाया क्यों उसको सताया

Saswat prem ki akansha thi lekin सास्वत प्रेम की आकांशा थी लेकिन
Wo unchi imarat ki mahtwakansha thi lekin वो ऊँची ईमारत की महत्वकांशा थी लेकिन
Wo bakt bhi chhoota wo dost bhi rootha वो बक्त भी छूटा, वो दोस्त भी रूठा
Eisi kabhi na meri mansha thi lekin ऐसी कभी न मेरी मंशा थी लेकिन

Kuch sahte gaye aur kuch kahte gaye कुछ सहते गए और कुछ कहते गए
Hum to bas khamoshi mai hi rahte gaye.. हम तो बस ख़ामोशी मे रहते गए
Kuch socha na samjha bas u hi कुछ सोचा न समझा बस यु ही
Ek matra sparsh mai hi bahte rahe एक मात्र स्पर्श मे ही बहते रहे

Tha bandhan ka vish, gyan ka bardan था बंधन का विष, ज्ञान का वरदान
Sansaar mai fir bhi sabko dekha samaan संसार मे फिर भी सबको देखा समान
Wo jyot tere prem ki alag thi sabse वो ज्योति तेरे प्रेम की अलग थी सबसे
Tujh mei hi sirf dekha mera bhagwan. तुझ मे ही सिर्फ देखा मेरा भगवान

Tum saath mere har kadam pe hoge, तुम साथ मेरे हर कदम पर होगे
Bhatkoo kabhi mai to margdarshan karoge. भटकू कभी मैं तो मार्गदर्शन करोगे
Meri rooh mai saanso ka sanchar karke मेरी रूह मई साँसों का संचार करके
Khushiyo ke ashru se, chakshuo ko bharoge. खुशियो के अश्रुओ से चक्षुओ को भरोगे

WO DOST KYA AAJ BHI MUJHKO PAAKAR वो दोस्त क्या आज भी मुझको पाकर
SNEH SE APNE GALE SE LAGAKAR स्नेह से अपने गले से लगाकर
KAHEGA KI EK SANSAAR APNA BHI HOGA कहेगा कि एक संसार अपना भी होगा
SAAYAD WO SIRF EK SAPNA HI HOGA!!! शायद वो सिर्फ एक सपना ही होगा

hindifriendshipscrap20up8

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शुक्रवार, 29 मई 2015

सत्ताधारी शासक

दुनिया के अलग अलग हिस्सों में
जनता शासको के अत्याचार से परेशान है
सीरिया पर भी संकट के बादल है
ज़िन्दगी बदहवाश है
मासूम माँ और बच्चे हिंसा से त्रस्त है
सडको और रेल की पटरी पर
सरकारों ने डाला आरक्षण का जाल है
भूखे पेट सोती जनता है और शासक मस्त है
सता का तमाशा चलता है
अपनी अपनी बीन बजाते शासक है
सत्ता के दरबार में जनता का बना तमाशा है
अच्छे शासक अच्छे दिन के दावे करते है
पर किसानों के बच्चे भूखे है
सडको पर सोता बचपन है
आशा भरी निगाहे अपनी जिंदगी
के अर्थ तलाशती है
आज भी 19.4 करोड़ लोग
भारत में भूखे सोते है
मार्क्सवाद आज सच सा लगता है
सतासीन शासक सब्सिडी वाला
ससंद में खाना खाकर
सेल्फी क्लिक करते है
सूट बूट की खबरे अखबारो
में छपती है

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ग़ज़ल (माँ का एक सा चेहरा)

ग़ज़ल (माँ का एक सा चेहरा)

बदलते बक्त में मुझको दिखे बदले हुए चेहरे
माँ का एक सा चेहरा , मेरे मन में पसर जाता

नहीं देखा खुदा को है ना ईश्वर से मिला मैं हुँ
मुझे माँ के ही चेहरे मेँ खुदा यारों नजर आता

मुश्किल से निकल आता, करता याद जब माँ को
माँ कितनी दूर हो फ़िर भी दुआओं में असर आता

उम्र गुजरी ,जहाँ देखा, लिया है स्वाद बहुतेरा
माँ के हाथ का खाना ही मेरे मन में उतर पाता

खुदा तो आ नहीं सकता ,हर एक के तो बचपन में
माँ की पूज ममता से अपना जीबन , ये संभर जाता

जो माँ की कद्र ना करते ,नहीं अहसास उनको है
क्या खोया है जीबन में, समय उनका ठहर जाता

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

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अनुभूति

तुम आती हो,
नव अंगों का
शाश्वत मधु-विभव लुटाती हो।

बजते नि:स्वर नूपुर छम-छम,
सांसों में थमता स्पंदन-क्रम,
तुम आती हो,
अंतस्थल में
शोभा ज्वाला लिपटाती हो।

अपलक रह जाते मनोनयन
कह पाते मर्म-कथा न वचन,
तुम आती हो,
तंद्रिल मन में
स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो।

अभिमान अश्रु बनता झर-झर,
अवसाद मुखर रस का निर्झर,
तुम आती हो,
आनंद-शिखर
प्राणों में ज्वार उठाती हो।

स्वर्णिम प्रकाश में गलता तम,
स्वर्गिक प्रतीति में ढलता श्रम
तुम आती हो,
जीवन-पथ पर
सौंदर्य-रहस बरसाती हो।

जगता छाया-वन में मर्मर,
कंप उठती रुध्द स्पृहा थर-थर,
तुम आती हो,
उर तंत्री में
स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो।

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वे आखें

अंधकार की गुहा सरीखी
उन आंखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारूण
दैन्य दुःख का नीरव रोदन!

वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा आंखों में इसका
छोड़ उसे मंझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका!

लहराते वे खेत दृगों में
हुआ बेदखल वह अब जिनसे,
हंसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके तृन-तृन से!

आंखों ही में घूमा करता
वह उसकी आंखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा!

बिका दिया घर द्वार
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आंखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!

उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आंखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती!

बिना दवा दर्पन के घरनी
स्वरग चली-आंखें आतीं भर,
देख-रेख के बिना दुध मुंही
बिटिया दो दिन बाद गई मर!

घर में विधवा रही पतोहू
लछमी थी, यधपी पति घातिन,
पकड़ मंगाया कोतवाल ने,
डूब कुएं में मरी एक दिन!

खैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
सांप लोटते, फटती छाती।

पिछले सुख की स्मृति आंखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती।

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मजहब

मजहब कभी हिन्दू या मुसलमान नही होता,
मजहब किसी इन्सान की पह्चान नही होता,
बाँट दिया हम इंसानों ने भगवान को भी…,
पर इन्सानियत से बड़ा कोई भगवान नहीं होता ।

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मिर्ज़ा ग़ालिब के मशहूर शेर

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक…

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना…

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है…

क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन…

कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले…

काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब
शर्म तुम को मगर नहीं आती…

कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता…

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ…

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है…

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता
तो ख़ुदा होता डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता…

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना…

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले…

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता…

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है…

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले…

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है…

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और…

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गुरुवार, 28 मई 2015

अल्फाजो में... ( ग़ज़ल )

    1. चलो उतार देते है ख्वाहिश तेरी कोरे कागजो में !
      मुझे मालुम, तू खोजे खुद को मेरे अल्फाजो में !!

      तमन्ना हाल-ऐ-दिल जो छुपाये बैठे हो कब से !
      अश्को से लिख देंगे जो बयान न हो लफ्जो में !!

      माना के पसंद नही तुमको अपना हमराज कोई
      फिर क्यों ढूंढे, ये तेरी नजर उनको रहगुजारो में

      एक हरफ से कर दे तेरे ख्यालातों को बे नकाब !
      संजो के रक्खा है जिन्हे तुमने दिल में नाजो से !!

      करने से इंकार भला हकीकत कहाँ छुप पाती है !
      वो कौन शै है जो दौड़े लहू के नाम से नब्जो में !!
      !
      !
      !
      ( डी. के. निवातियाँ )

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शहीद

सर्दी गर्मी भूख प्यास
मुस्कुराकर झेल जाते हैं
जो तुम देते हो देश के नारे
वो उस नारे पर मिट जाते हैं

मांश और खून आज भी
जमा हैं उन पहाड़ियों पर
दो ईंटे गुमनाम लगी हैं
इन मौत के खिलाडियों पर

पीतल के तमगों से मान
हम उनका बढ़ा रहे है
जो काटकर गर्दन अपनी
माँ भारती को चढ़ा रहे है

रक्तभरा बदन जब किसी
माँ के सीने लगता है
दर्द नहीं सह सकता सीना
मौत सा दिल तड़पता है

उसकी लिखी चिट्ठी
बक्से में धरी रह गई
बतलाऊंगा जब लौटूंगा
बन्ध वो जुबान हो गई

तहस नहस हो गई जिंदगी
उसके बच्चे मासूम की
कौन कमी पूरी करेगा
बिछुड़े बाप मरहूम की

पाल पोसकर जिस बाप ने
एक नौजवान को कुर्बान किया
शहीद को परिभाषित न करके
उस विश्वाश का अपमान किया

दुखी हूँ मै और हैरत भी
इन संसद में सोने वालों पर
कुर्बानियों का हिसाब करके
शहीद तय करने वालों पर

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शहीद

सर्दी गर्मी भूख प्यास
मुस्कुराकर झेल जाते हैं
जो तुम देते हो देश के नारे
वो उस नारे पर मिट जाते हैं

मांश और खून आज भी
जमा हैं उन पहाड़ियों पर
दो ईंटे गुमनाम लगी हैं
इन मौत के खिलाडियों पर

पीतल के तमगों से मान
हम उनका बढ़ा रहे है
जो काटकर गर्दन अपनी
माँ भर्ती को चढ़ा रहे है

रक्तभरा बदन जब किसी
माँ के सीने लगता है
दर्द नहीं सह सकता सीना
मौत सा दिल तड़पता है

उसकी लिखी चिट्ठी
बक्से में धरी रह गई
बतलाऊंगा जब लौटूंगा
बन्ध वो जुबान हो गई

तहस नहस हो गई जिंदगी
उसके बच्चे मासूम की
कौन कमी पूरी करेगा
बिछुड़े बाप मरहूम की

पाल पोसकर जिस बाप ने
एक नौजवान को कुर्बान किया
शहीद को परिभाषित न करके
उस विश्वाश का अपमान किया

दुखी हूँ मै और हैरत भी
इन संसद में सोने वालों पर
कुर्बानियों का हिसाब करके
शहीद तय करने वालों पर

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उधार की सांसें

साँसों को माँगा है उधार
जिंदगी से हमने
अब तो बस उधारी पर चल रहा हूँ,

हमने तो अपने हिस्से का जीवन
कब का खर्च है कर दिया
इंतिज़ार में तेरे
इंतिज़ार है तेरे वापस आने का,
वादा जो किया था
तुमको मिलने का फिर से,
बोला था इंतज़ार करेंगे हम,
इसी खातिर जीये जा रहा हूँ,
साँसों को माँगा है उधार
जिंदगी से हमने

सांसें उखड़ने लगी हैं अब
शायद कुछ ही दिनों का और मेहमान हूँ,
सावन आएगा तो बहुत सतायेगा
हर बार की तरह
तेरी यादों को बार-बार बारिश के पानी के साथ
मेरे कमरे में लाएगा
मैं आंगन में बैठा भीगता रहूँगा
तेरा एहसास महसूस करता रहूँगा
हवा में तेरी खुशबू होती है
मैं उसी के साथ जीता रहूँगा
पर यकीन मान
इस बार का निमोनिया शायद में झेल ना पाँऊ
सांसें उखड़ने लगी हैं अब
और तेरा इंतज़ार शायद ना कर पाँऊ

उधार पर भला वैसे भी कोई कितना चला है
मुझको पता है अब तू नहीं आयेगा
जिंदगी दर्द देती है अब
मौत लगती एक दवा है
दफ़न हो जाने पर कब्र पर तुम ना आना
मुझको वहां ना रुलाना
कब्र में मुझको आराम से सो जाने देना
नींद कई सालों से पूरी नहीं हुई है

साँसों को माँगा है उधार
जिंदगी से हमने
तेरे इंतिज़ार की खातिर…

#लेखक- चंद्रकांत सारस्वत
copyright

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बुधवार, 27 मई 2015

गुरुदेव ही मेरे भगवान ....

गुरुद्वार मेरा, मंदिर है मेरा, गुरुदेव ही मेरे भगवान
शरणम् गुरु की सार…..
जो भी आया यहाँ सब पाया यहाँ, गुरुदेव हैं करुणानिधान
शरणम् गुरु की सार…..

गुरु विष को अमृत कर देते, गुरु रोग शोक को हर लेते
है सार गुरु आधार गुरु, गुरु ही देते सब ज्ञान
शरणम् गुरु की सार…..

गुरु सैम तो हितैषी कोई नहीं, गुरु बिन उद्धार है होवे नहीं
गुरु सेवा करें, गुरु ध्यान धरें, करते तरहे गुरु गुणगान
शरणम् गुरु की सार…..

गुरु मन की मैल को धोते हैं, गुरु सबके रक्षक होते हैं
हमें तारे यही है सवारे यही, देते भक्ति का दान
शरणम् गुरु की सार…..

जो पाप के बोझ से भारी हैं, उनकी बिगड़ी भी सवारी है
दुर्गुण है हरे मंगल है करे, कभी ना चाहे सम्मान
शरणम् गुरु की सार…..

गोविंदा गोविंदा गोविंदा हरि गोविंदा
नारायण नारायण नारायण हरि नारायण ||

सद्गुरुदेव की जय …..

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कृपा सिन्धु सदगुरु जो समझा रहे हैं ...

कृपा सिन्धु सदगुरु जो समझा रहे हैं
वो वाणी भुलाना महामूढ़ता है
बड़े भाग्य से ऐसा अवसर मिला है
निरर्थक बिताना महामूढ़ता है

जो बड़भागी गुरु में है प्रीति बढ़ाते
इन्ही की ही मूरत को मन में बसाते
वही सच्ची शांति व आनंद पाते
ये भक्ति न पाना महामूढ़ता है

ये संगी ये साथी ये सुख ये नजारे
सदा न रहेंगे ये साथ हमारे
छूटेंगे हमसे जो भी हमको प्यारे
इन्ही को रिझाना महामूढता है

हृदय में है गुरु का जो दीदार करते
कभी न गुरु से है फरियाद करते
वो बिन मांगे अपनी है झोली ये भरते
ये रहमत न पाना महामूढता है

गुरु ज्ञान सत्य सदा है रहेगा
जगत झूठा कल्पित है न ये टिकेगा
जो पाया है नश्वर वो कब तक रूकेगा
इसे अपना कहना महामूढता है

ये अनमोल मानव तन हमको पाया
क्यूँ इसका न भरपूर लाभ उठाया
क्यूँ भक्ति बिना इसको बिरथा गवाँया
यूँ अवसर बिताना महामूढता है

जो दिखता है आँखों से कल्पित है सारा
जो देखे, वो दृष्टा है, साक्षी है प्यारा
क्यूँ हमको न होता है सच ये ग्वारा
ये सत्य भुलाना महामूढता है

जिसने भी गुरुवर की भक्ति है पाई
हृदय में है प्रेम की ज्योति जगाई
उन्ही के ही जीवन में खुशियाँ है छाई
ये आनंद न पाना – – –

गुरु दर्श जैसा तो सुख न कही है
गुरु ज्ञान बिन दुख से मुक्ति नही है
गुरु जो दिखाये वो राह सही है
इसी पे न चलना – – –

तेरे दिल में है गर श्रद्धा वो ऊँची
तू पायेगा गुरुवर से अनमोल पूंजी
तूझे देंगे गुरुवर वो भोग की कुंजी
ये पूँजी न पाना कृपा सिन्धु सदगुरु जो समझा रहे हैं
वो वाणी भुलाना महामूढ़ता है

बड़े भाग्य से ऐसा अवसर मिला है
निरर्थक बिताना महामूढ़ता है
जो बड़भागी गुरु में है प्रीति बढ़ाते
इन्ही की ही मूरत को मन में बसाते
वही सच्ची शांति व आनंद पाते
ये भक्ति न पाना महामूढ़ता है

ये संगी ये साथी ये सुख ये नजारे
सदा न रहेंगे ये साथ हमारे
छूटेंगे हमसे जो भी हमको प्यारे
इन्ही को रिझाना महामूढता है

हृदय में है गुरु का जो दीदार करते
कभी न गुरु से है फरियाद करते
वो बिन मांगे अपनी है झोली ये भरते
ये रहमत न पाना महामूढता है

गुरु ज्ञान सत्य सदा है रहेगा
जगत झूठा कल्पित है न ये टिकेगा
जो पाया है नश्वर वो कब तक रूकेगा
इसे अपना कहना महामूढता है

ये अनमोल मानव तन हमको पाया
क्यूँ इसका न भरपूर लाभ उठाया
क्यूँ भक्ति बिना इसको बिरथा गवाँया
यूँ अवसर बिताना महामूढता है

जो दिखता है आँखों से कल्पित है सारा
जो देखे, वो दृष्टा है, साक्षी है प्यारा
क्यूँ हमको न होता है सच ये ग्वारा
ये सत्य भुलाना महामूढता है

जिसने भी गुरुवर की भक्ति है पाई
हृदय में है प्रेम की ज्योति जगाई
उन्ही के ही जीवन में खुशियाँ है छाई
ये आनंद न पाना – – –

गुरु दर्श जैसा तो सुख न कही है
गुरु ज्ञान बिन दुख से मुक्ति नही है
गुरु जो दिखाये वो राह सही है
इसी पे न चलना – – –

तेरे दिल में है गर श्रद्धा वो ऊँची
तू पायेगा गुरुवर से अनमोल पूंजी
तूझे देंगे गुरुवर वो भोग की कुंजी
ये पूँजी न पाना महा – – –
न इसको कमाना – – –

न पूरी कभी होती, दिल की है चाहत
सदा बढ़ती रहती है मिलती ना राहत
गुरु शांति तृप्ति को देते है दौलत
ये तृप्ति न पाना –
न इसको कमाना – – –

न पूरी कभी होती, दिल की है चाहत
सदा बढ़ती रहती है मिलती ना राहत
गुरु शांति तृप्ति को देते है दौलत
ये तृप्ति न पाना
कृपा सिन्धु सदगुरु जो समझा रहे हैं
वो वाणी भुलाना महामूढ़ता है

बड़े भाग्य से ऐसा अवसर मिला है
निरर्थक बिताना महामूढ़ता है
जो बड़भागी गुरु में है प्रीति बढ़ाते
इन्ही की ही मूरत को मन में बसाते
वही सच्ची शांति व आनंद पाते
ये भक्ति न पाना महामूढ़ता है

ये संगी ये साथी ये सुख ये नजारे
सदा न रहेंगे ये साथ हमारे
छूटेंगे हमसे जो भी हमको प्यारे
इन्ही को रिझाना महामूढता है

हृदय में है गुरु का जो दीदार करते
कभी न गुरु से है फरियाद करते
वो बिन मांगे अपनी है झोली ये भरते
ये रहमत न पाना महामूढता है

गुरु ज्ञान सत्य सदा है रहेगा
जगत झूठा कल्पित है न ये टिकेगा
जो पाया है नश्वर वो कब तक रूकेगा
इसे अपना कहना महामूढता है

ये अनमोल मानव तन हमको पाया
क्यूँ इसका न भरपूर लाभ उठाया
क्यूँ भक्ति बिना इसको बिरथा गवाँया
यूँ अवसर बिताना महामूढता है

जो दिखता है आँखों से कल्पित है सारा
जो देखे, वो दृष्टा है, साक्षी है प्यारा
क्यूँ हमको न होता है सच ये ग्वारा
ये सत्य भुलाना महामूढता है

जिसने भी गुरुवर की भक्ति है पाई
हृदय में है प्रेम की ज्योति जगाई
उन्ही के ही जीवन में खुशियाँ है छाई
ये आनंद न पाना – – –

गुरु दर्श जैसा तो सुख न कही है
गुरु ज्ञान बिन दुख से मुक्ति नही है
गुरु जो दिखाये वो राह सही है
इसी पे न चलना – – –

तेरे दिल में है गर श्रद्धा वो ऊँची
तू पायेगा गुरुवर से अनमोल पूंजी
तूझे देंगे गुरुवर वो भोग की कुंजी
ये पूँजी न पाना महा – – –
न इसको कमाना – – –

न पूरी कभी होती, दिल की है चाहत
सदा बढ़ती रहती है मिलती ना राहत
गुरु शांति तृप्ति को देते है दौलत
ये तृप्ति न पाना – – –

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I AM COMING SOON

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मंगलवार, 26 मई 2015

ओ सदगुरु प्यारे ! अपना हमे बना ले

ओ सदगुरु प्यारे !

अपना हमे बना ले, चरणों में अब लगा ले
ओ सदगुरु प्यारे, अपना हमे बना ले
तुम बिन नही है कोई, सुध बुध जो ले हमारी
है खूब खोज देखा, मतलब की दुनिया सारी
धोखे के जाल से अब, भगवन हमें छुड़ा ले
चरणों में अब लगा ले

कोई नही है संगी, दिन चार के हैं मेले
संबंध इस जगत के सब झूठ के झमेले
तू ही ना बाह पकड़े, तो कौन फिर सम्भाले
चरणों में अब लगा ले

सत् और असत् का भी भगवान ज्ञान दे दे
अभिलाषा अब यही है, भक्ति का दान दे दे
हम प्रेम के हैं प्यासे, दे प्रेम के प्याले
चरणों में अब लगा ले

किरपा से अब मिटा दे, दुःख दर्द गम बखेड़ा
बस एक नजर से तेरी, हो जाये पार बेड़ा
भव सिन्धु है भयानक, दासों को अब तरा ले
चरणों में अब लगा ले

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गुरुदरश करूँ हरदम मुझे आस ये रहती है

गुरुदरश करूँ हरदम मुझे आस ये रहती है
नहीं दरश करूँ जब तक बेचैनी सी लगती है
हर पल गुरु के दीदार का इंतज़ार रहता है
हर पल तुम्हे पाने का अरमान रहता है

जल बिन जैसे मछली कभी जी नहीं सकती है
गुरुवार हमको पानी ऐसी ही भक्ति है
हर पल तुम्हे पाने का अरमान रहता है
हर पल गुरु के दीदार का इंतज़ार रहता है …..

ये तन है माटी का माटी में मिल जाये
धन्य भागी वही होता, हरि नाम जो जप पाये
हर पल स्वयं के कर्म का फल साथ रहता है
हर पल गुरु के दीदार का इंतज़ार रहता है …..

गुरु कि अनुकम्पा से हमें दिखा मिलती है
जीवन को जिए कैसे ये शिक्षा मिलती है
हर प्रभु के नाम का सुमिरन भी रहता है
हर पल गुरु के दीदार का इंतज़ार रहता है …..

जब पाया न तुमको भटके थे भूले थे
शाश्वत की खबर न थी, नश्वर में फूले थे
अब तो हर एक सांस में सुमिरन तेरा होता है
हर पल गुरु के दीदार का इंतज़ार रहता है ….. ||

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गुरुदेव दया कर दो मुझ पर

गुरुदेव दया कर दो मुझ पर, मुझे अपनी शरण में रहने दो
मुझे ज्ञान के सागर में स्वामी, अब निर्मल गागर भरने दो |

तुम्हारी शरण में जो कोई आया, पार हुआ वो एक ही पल में
इस दर पे हम भी आये हैं, इस दर पे गुजारा करने दो |

सर पे छाया घोर अन्धेरा, सूझत नाहीं राह कोई
ये नयन मेरे और ज्योत तेरी, इन नयनों को भी बहने दो |

चाहे डूबा दो चाहे तैरा दो, मर भी गए तो देंगे दुआएं
ये नाव मेरी और हाथ तेरे, मुझे भव सागर से तरने दो ||

गुरुदेव …..गुरुदेव …..गुरुदेव …..गुरुदेव …..गुरुदेव …….

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मेरे गुरुवर, तेरी दया हम भूल न पायें

मेरे गुरुवर, दया तेरी हम भूल न पायें
तेरे बातों को हम गा-गा सबको सुनायें

तेरा वो सत्संग सुनाना,
ज्ञान की बातें हँसना हँसाना
वो प्यारी अदायें, बहुत याद आएं
मेरे गुरुवर दया तेरी हम भूल न पायें
ज्ञान का प्याला तूने पिलाया
सहज में आत्मानंद दिलाया
तुझ सा दयालु जग में कोई और न पायें
मेरे गुरुवर, दया तेरी हम भूल न पायें

ऐसे क्यों हो रूठे हमसे
हम सब तेरे दरस को तरसें
तेरी यादों के सहारे कब तक दिन काटें जायें
मेरे गुरुवर, दया तेरी हम भूल न पायें
तेरी यादें हर पल आयें, नैना नीर बहायें ||

‪#‎सत्यशील‬

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राधा ढूंढ रही जमुना के तीर... ( लोकगीत )

    1. कहा छुप गये
      गिरधर मुरारी
      राधा ढूंढ रही
      जमुना के तीर….!!!

      सखियो से पूछे
      सहेलियों से पूछे
      कही देखे किसी ने
      यशोदा के क्रष्णवीर….!!!

      कहा छुप गये……..!!

      कदम्ब पे ढूंढा
      गलियो में ढूंढा
      खोजत खोजत
      तेरी राधा हुई अधीर….!!!

      कहा छुप गये…!!

      बसंत में कोयल
      अमवा पे कूके
      तू बंसी काहे न फूके
      सुनने को राधा भई अधीर….!!!

      कहा छुप गये
      गिरधर मुरारी
      राधा ढूंढ रही
      जमुना के तीर….!!!

      ( डी. के. निवातियाँ )

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मेरे ख़त का जवाब नहीं आया

मेरे ख़त का जवाब नहीं आया
बाल सफ़ेद हो गये, उम्र खर्च हो गयी
पर मेरे सवालों का जवाब नहीं आया

आज तो तेरी-मेरी मोहब्बत के
निशान भी मिट गये हैं,
समय की आंधी में हमारे सारे
किस्से दफ़न हो गये हैं,
हम भी पूरे खर्च हो गये
पर मेरे सवालों के जवाब नहीं आये

तेरा एक ख़त मिला था मुझको
एक अरसे पहले,
तूने मेरे सारे दोष, मेरी गलतियां, मेरी नाकामियाँ
सब मुझको ख़त में बताई थीं,
तूने लिखा था क्यों इस रिश्ते को खत्म किया तूने,
मैंने फिर ख़त लिखकर बस इतना पूछा था,
क्या तुमको कोई और मुझसा मोहब्बत करने वाला मिल जायेगा?
जब तक रहे, क्या कोई भी अच्छाई नहीं दिखी तुमको?
क्या यादों को मेरी भूला सकते हो तुम?
तेरा शिकायतों का खत तो मुझतक मरते दम तक रहेगा,
एक और जवाब के खत का इंतज़ार रहेगा

लिफाफा बंद करके तुम तक भेजा था
पर ना जवाब आया और ना मेरा भेजा
लिफाफा वापिस आया.

लेखक #चंद्रकांत सारस्वत

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साँझ

तन पे तरुणाई नहीं बचपन की,
मन में है साँझ लड़कपन की,
दर्द उठा है घुटनों में,
ढाल आई उम्र है पचपन की।
आँखों में सपने कई हैं पर,
मोतियाबिंद की झाई है,
पाँवों में हिम्मत खूब मगर,
घुटनों में जम रही काई है।
ये जीवन की संध्या है,
साँझ हठीली घिर आई है,
खुद ही संभालो जीवन को,
शेष बची जो तरुणाई है।

Manoj Charan “Kumar”
Mo. 9414582964

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अतीत का अमृत

अतीत के पन्ने पलटता हूँ,
तो कुछ ख्वाब,
कुछ दर्द,
कुछ सपने,
कुछ गलतियाँ,
अचानक जीवंत हो उठते है।
चहकने लगता है,
बचपन अचानक
अतीत के आँगन में।
मामा का खेत,
लू संग उड़ती गरम रेत,
वो पीपल की छांव,
बिन चप्पलों
रेत में जलते पांव।
गली वाला पिल्ला,
रेत का वो टीला,
कमर में नेकर ढीला।
गुरुजी की वो डांट,
पीपलगट्टे वाली पानी की माट,
खेजड़ी तले पड़ी
दादाजी की खाट।
सब अचानक उभर आते है,
पल जीवन के ठहर जाते है,
आपाधापी में कटता जीवन,
जीवन फिर से जी लूं थोड़ा,
अतीत से अमृत पी लूं थोड़ा,
अतीत से अमृत पी लूं थोड़ा।।

Manoj charan “Kumar”
Mo. 9414582964

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मुक्तक

ख़ुशी तो अमृत जैसी,
एक बूँद जीवन बचा सकती है !
क्षण भर की ख़ुशी,
जन्मो का गम मिटा सकती है !!

नहीं चाहिए मुझे,
दो किनारो सी जिंदगी !
जो साथ रहे,
पर कभी मिल न सके !!

अगर दे सको तो
दो हाथो जैसा संग दे दो
जिनकी भले दो दिशा
मगर जरुरत में मुट्ठी बन सके …!!

प्रेम गंगा में तो सब नहाये,
हर कोई राधा कृष्ण नही होता !
रखने से पत्थर की मूरत,
हर इमारत शिवाला नही होता !!

तू पास रहे या दूर,
क्या फर्क पड़ता है !
मोहब्बत में है वफ़ा,
तो कही से भी सुनाई देगी …!!

जहन में उठता
एक तूफ़ान किसी डर का,
तमाम खुशियों को
संग बहाकर ले जाता है…. !!

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भरम....

    1. कभी कभी लगता,
      जैसे ये मौसम कितना प्यारा है !
      अहसाह होता जैसे,
      ये हवाये भी करती कुछ इशारा है !!

      अब कौन समझेगा
      मतलबी दुनिया में जज्जबातो को
      कितनी शिद्दत से
      किसी ने तुमको दिल से पुकारा है !!

      खामियां मुझमे लाख सही,
      पर मुझमे अभी अक्स दीखता वफ़ा का है !
      न कर अलग मुझे खुद से,
      जब मैंने खुद को तेरे कदमो में वारा है !!

      कदम बढ़ाना क्या,
      तेरी यादो के दहलीज़ की और अब !
      जब हर घडी,
      आँखों में असर रहता नमी का है !!

      क्या करे चाहत किसी की,
      अब खुद पर हसीं के शिवा बचा क्या है !
      कब तक रक्खु भरम,
      की बाद मिलन के उसने मुझे पुकारा है !!
      !
      !
      !
      ( डी. के. निवातियाँ )

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सोमवार, 25 मई 2015

मत कहना कभी बेटा मुहको माँ,

    1. मत कहना कभी बेटा मुहको माँ,
      क्यों मेरी पहचान मिटाती हो !
      मेरा भी अपना असितत्व है,
      दुनिया में उसे क्यों छिपाती हो !!

      मत कहना……………………….!!

      जन्म हुआ होगा मेरा भी किंचित,
      यथासम्भव तुमने की पुत्र प्राप्ति हो !
      कष्ट सहे होंगे मेरे लिए भी उतने ही ,
      फिर क्यों उनका मान घटाती हो !!

      मत कहना……………………….!!

      अगर तुम ही छीनोगी मुझसे मेरा हक़,
      फिर जगत में कैसे मुझे प्राप्त ख्याति हो !
      इस पुरुष प्रधान समाज में बेटी को
      कैसे उसके सम्मान कि हिफ़ाज़त हो !!

      मत कहना……………………….!!

      गदगद होती हूँ “माँ” तेरा प्यार पाकर,
      जितना तुम मुझ पर दुलार लुटाती हो !
      गर नहीं भेद बेटा बेटी का तेरे अंतर्मन में,
      फिर क्यों तुम बेटा कहकर मुहे सताती हो !!

      मत कहना……………………….!!

      कर भरोसा मुझ पर हे मरी जननी माँ,
      पुकार लेना मुझको इर्द गिर्द पाओगी !
      मत कर अफ़सोस एक दिन दिखलादूंगी,
      बेटे सी बढ़कर दुनिया में रोशन तेरी बेटी हो !!

      मत कहना कभी बेटा मुहको माँ,
      क्यों मेरी पहचान मिटाती हो !
      मेरा भी अपना असितत्व है,
      दुनिया में उसे क्यों छिपाती हो !!

      ( डी. के. निवातियाँ )

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कुछ अनसुलझे प्रश्न......... (कविता)

कुछ अनसुलझे प्रश्न……… (कविता)

जब मात्र-सतात्मक है समस्त सृष्टि ,
धरती है माता ,प्रकृति है माता ,
गंगा मईया व् समस्त नदियाँ ,
वोह भी हैं अपनी मातायें, गौ माता ,
निज जननी . और आदि शक्ति
करे अपने विभिन्न रूपों में संचालित समस्त सृष्टि ,
नारी के इन दिव्य व् विस्तृत रूपों में ,
इनके दया ,प्रेम ,करुणा ,
सहनशक्ति ,सहजता ,
और निस्वार्थ सेवा जैसे अलौकिक गुणों में, ,
जब समाहित है सम्पूर्ण विश्व
के सञ्चालन की शक्ति।
यह विश्वसनीय और प्रमाणिक
तथ्य है न की असत्य ,
यदि होता शत-प्रतिशत नारी का
शासन समस्त सृष्टि में ,
तो सारे जगत में होती शांति ,प्रेम ,
भाईचारे , सुख- ऐश्वर्य की वृष्टि।
ईश्वर ने तो प्रकृति व् आदि-शक्ति के सहयोग के लिए ,
किया पुरुष को मनोनीत ,
और उसे भी दी असंख्य शक्तियां ,
गुण – बल से किया सम्मानित।
तत्पश्चात नारी ने भी दिया
उसे अपने हर रूपों में सहयोग ,
आदर ,प्रेम से किया अपने जीवन में समाहित।
परन्तु क्या हुआ ?
पुरुष तो भूल गया अपना स्थान, कर्तव्य व् मर्यादा ,
और स्वामी बन गया नारी का ,
और अधिकार में कर लिया समस्त सृष्टि को .
अधिकार उसने किया तो क्या मगर उसने तो ,
नष्ट कर दिया ,कलंकित कर दिया ,
धरा ,नदियाँ , गौ ,प्रकृति अर्थात समस्त सृष्टि को.
जिसका परिणाम हम युगों से देख रहे हैं ,
और भविष्य में भी देखना हमारी नियति है.
यह कैसा न्याय ?
पुरुष के एकाधिकार ने है जन्म दिया पितृ-सत्तात्मकता को ,
सबला , अत्यधिक गुणवान व् आदि शक्ति का
स्वरूप होकर भी नारी कहलाये,
अबला , निर्गुणी। अशक्त और पुरुष की परिचायिका।
अधर में डाल दिया गया मात्र- सत्तात्मकता को .
कई अनसुलझे प्रश्न है हे प्रभु , तुम्हारे समक्ष।
यह जो परिस्थितियां हैं मेरे समकक्ष ,
क्या कहूँ मैं तुम्हारी न्यायमिति को?

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नारी जहां पूजते है

मै मुस्कुराना चाहती हूँ
पर लोग ताकने लगते है
दबी दबी हशती हूँ तो
लोग टोकने लगते है

आश्मानो से ऊँचा
उड़ना चाहती हूँ
बन्द कमरो मे लोग
खरोचने लगते है

सास बहू के बन्धन
टूटना चाहूँ तो
तो गलियो मे
भेड़िये नौचने लगते है

अब अपने अक्श को
बनाऊँ या बचाऊँ मै
इस दरिन्दगी में
बनूँ या लुट जाऊँ मै

लगता है लोग यहां
कोरी बकवास करते है
नारी जहां पूजते है
वहां देवता निवास करते है

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ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है )

ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है )

मैं रोता भला था , हँसाया मुझे क्यों
शरारत है किसकी , ये किसकी दुआ है

मुझे यार नफ़रत से डर ना लगा है
प्यार की चोट से घायल दिल ये हुआ है

वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है
ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है

भरोसे की बुनियाद कैसी ये जर्जर
जिधर देखिएगा धुँआ ही धुँआ है

मेहनत से बदली “मदन ” देखो किस्मत
बुरे वक्त में ज़माना किसका हुआ है

मदन मोहन सक्सेना

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चमचागीरी-61

मेहनत करने वाले एक जगह रहते हैं इसलिए डेस्क-टॉप होते हैं;
चमचे बॉस के करीब रहते हैं और मोबाइल होते हैं इसीलिये लैप-टॉप होते हैं.

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चमचागीरी-60

चमचागीरी में बाधा उत्पन्न करना अपराध घोषित होता है;
ऐसा करने पर डाँट खाना अथवा नौकरी जाना सुनिश्चित होता है.

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चमचागीरी-59

चमचागीरी की महिमा अनंत है ;
कियूंकि इसका का न कोई प्रारम्भ है और न कोई अंत है.

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चमचागीरी-58

चमचों को देख कर हम दुखी होते हैं;
चमचे वह फसल काट लेते हैं जो हम बोते हैं.

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चमचागीरी-57

चमचों से हमें एलर्जी है कियूंकि चमचों ने दिया बुखार है;
है हमें सख्त नफरत इनसे फिर भी कहते फिरते हैं हमें इनसे प्यार है.

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चमचागीरी-56

ऐ बी सी दी ई ऍफ़ गई, सबसे बड़ी है चमचागीरी;
चमचों की है एक आवाज़, चमचागीरी ज़िंदाबाद.

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चमचागीरी-55

चमचे बहुत शैतान हैं, हम पे चमचों के कितने अहसान हैं;
इनकी वजह से हमारी जिंदगी अंधेरिया मोड़, उनकी जिंदगी प्रगति मैदान है.

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चमचागीरी -54

न चमचागीरी की कमी है न हरामखोरी के टोटे हैं;
जब तक दुनिया में चम्चेरूपी बेपेंदी के लोटे हैं.

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शनिवार, 23 मई 2015

chla gdelv chli brate चला गदेलव चली बराते

<img src=" class="wp-smiley" style="height: 1em; max-height: 1em;" />।।चला गदेलव चली बरातें।। <img src=" class="wp-smiley" style="height: 1em; max-height: 1em;" />

👬मोलउ कपड़स काम चले न
चला निकारा नौका ।।
जुग्गू काकक पकड़ के लावा
मिले फिरू न मौका ।।
बिन न्योता के बन्ने आयेन
फूले नही समाते ।।
चला गदेलव चली बराते।।1।।

✌लेकिन केहू न ढेला मारे
न मारया पइसा गोली ।।
खीश निपोरया जिन मड़ये में
होये बहुत ठिठोली ।।
जिन्ने के समजाइ दिहा
जिन जईहे मकनाते ।।
चला गदेलव चली बराते।।2।।

💖डीजे बजे लुटउव्वल होये
पइसा अउर बतासा ।
चलिके दुअरेक चार लगावा
देखा तनिक तमासा ।।
डांस करइके पउबै करब्या
तोहका केहू न डाटे ।।
चला गदेलव चली बराते ।।3।।

🍨लड्डू अउर मिठाई पउब्या
फुलकी मिले पनीर ।
छोला खाइके करा भगउव्वल
होइ जाये नस ढील ।।
बिन खटिया के सपना देखिब्या
दूर जाइ के नाते ।।
चला गदेलव चली बराते ।।4।।

👪दुल्हा दुल्हिन मौज मनइहे
नात नतेरुआ होइहें तर ।।
भये सबेरवव एनका देखब्या
बनिहे पलिहरवा के बानर ।।
गमछा बान्हे मुँह लुकवइहे
अइहे चला लजाते ।।
चला गदेलव चली बराते ।।5।।

<img src=" class="wp-smiley" style="height: 1em; max-height: 1em;" /> R.K.M<img src=" class="wp-smiley" style="height: 1em; max-height: 1em;" />

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