बुधवार, 30 सितंबर 2015

बिटिया

घर से निकलना बेमानी लगता है
जब तक वो ये ना कह दे –
पापा कब आओगे ?
मेरा मुस्कुराना , उसका पैरों से लिपट जाना |
मेरा सहलाना , उसका दुलराना ||
और बार – बार दुहराना कि –
पापा कब आओगे ?
मेरा यूनिफार्म पहनना ,
आधा – अधूरा लगता है
जब तक आँखें मटका कर ,
हाथ नचाकर और लटों को किनारे लगा कर |
बटनों को छुकर ये न कहें कि –
पापा मुझको तो अच्छा लगता हैं ||
मेरा आइना देखना ,
उसका गले से लटकना |
नन्हे -2 हाथो से मेरे लटों को सजाना ,
मेरी चीजें छुपाना और मुझको सताना ||
जो मांगू रुमाल तो मोज़े भी ले आना ,
और मुरझा कर फिर से कहना –
पापा कब आओगे ?
मेरा हेल्मेट पहनना ,
उसका स्ट्रेप लगाना |
गाड़ी की चाबी मेरी उगलियों में फंसना ,
जाने लंगू तो जोर से चिल्लाना ||
मैं बाय करुगी पापा ,
चले मत जाना |
बाल्कनी में खड़े होकर हाथ हिलाना ,
खिलखिलाती बिटिया का उदास हो जाना ||
जब निकल जाऊ दूर तो जोर से चिल्लाना –

पापा पापा $$$$जल्दी $$ आना $$

पापा जल्दी आना ||

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सुबह की चाय

सुबह की चाय सिर्फ एक चाय तो नही ……..

शुरुआत है एक नये दिन की .
नये सपनो की ,
नई मंजिलों की ….. |

अगर हैं अकेले , तो सपने ज्यादा हसीन होते हैं,
सपनों के हर मोती को आशा के धागे से पिरोते हैं |
बनते हैं , बिगड़ते हैं, टूट कर बिखरते हैं,
बिखरने के बाद फिर – फिर से जुड़ते हैं ||

ये सिलसिला जिंदगी में ,
बार – बार आता है|
पर हर बार ये शुरुआत,
एक प्याला चाय ही करवाता है ||

महबूब के हाथ चाय की ,
बात ही कुछ और है,
वो प्याली की गर्माहट ,
और हाथों की नरमाहट,
इसे घूट-घूट पीना ,
उसे लमहा-लमहा जीना,
क्या कहू हजरात कि,
वो बात ही कुछ और है ||

वो चंद घूट जिंदगी की चाहत बन जाते हैं –
क्योंकि –
सुबह की चाय सिर्फ एक चाय तो नही ………..

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।।ग़ज़ल।।गुनाह के ख़ातिर ।।

।।ग़ज़ल।।गुनाह के ख़ातिर।।

तेरी मुद्दत, तेरी इज्जत तेरी परवाह के ख़ातिर
तन्हा हूँ अकेला ,पर किसी हमराह के ख़ातिर ।।

जा चली जा ,दूर हो जा, न लौट कर आना कभी ।।
खुदी को रोकना मुश्किल तुम्हारी आह के ख़ातिर ।।

ये इश्क़ का दरिया है काँटे यहा चुभते रहेगे ।।
तुम्हे बदनाम क्यों कर दू महज़ आगाह के ख़ातिर ।।

चलो मैं मान लेता हूँ तुम्हे मुझसे मुहब्बत है ।।
मग़र तुम कल भी आये थे किसी की चाह के ख़ातिर ।।

तोड़ आयी हो जिसका दिल उसी को तू मना ले जा ।।
नही हम तोड़ते दिल को किसी गुनाह के ख़ातिर ।।

बहुत ढूढ़ा यहा मैंने कोई बेदाग़ न निकला ।।
तभी तो आज तन्हा हूँ वफ़ा की राह के ख़ातिर ।।

R.K.M

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।।ग़ज़ल।।बता इसकी दवा क्या है ।।

।।ग़ज़ल।।बता इसकी दवा क्या है ।।

मिले जो इश्क़ में ताने बता इसकी दवा क्या है ।।
लगे जब हम भुलाने तो बता इसकी दवा क्या है ।।

चलो मैं मान लेता हूँ कि तुमने भूल ही कर दी ।।
मग़र ये दिल न माने तो बता इसकी दवा क्या है ।।

तेरे नज़दीक आने को तरसती रह गयी आँखे ।।
लगे आंशू बहाने तो बता इसकी दवा क्या है ।।

तुम्हारी जिन अदाओ को बनाया इश्क़ का दर्पण ।।
लगे वह दिल जलाने तो बता इसकी दवा क्या है ।।

यहा कीमत नही होती भरोसा टूट जाने पर ।।
करे कोई बहाने तो बता इसकी दवा क्या है ।।

R.K.M

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हर कोई मांग रहा
देश में एक दूजे से हिसाब !
हम से पूछो, हम बताये
आज देश में हुआ कितना विकास !!

साध्य अपने कम हुए ,
नहीं बढ़ाया साधनो का भण्डार !
भेड़ बकरी से बढ़ते गए,
हम इसपे कभी न किया विचार !!

अशिक्षित से शिक्षित हुए,
पर बुद्धि का अपनी कहाँ विकास हुआ !
तब के अनपढ़ आज ज्ञानी,
आज पढ़ लिखना जैसे बकवास हुआ !!

आज कितने पढ़ गए हम
जब हमने जाना इस बात का ज्ञान हुआ !
आज चपरासी पद के लिए,
डिग्री धारको का आवेदन आम हुआ !!

झूठ फरेब का सिक्का चलता
सत्य आज अपाहिज हुआ !
आज बलवान से हर कोई डरता
शाशन यंहा मजबूर हुआ !!

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किसको ठहराए दोषी .......

"zindgi"

“”ZINDAGI””
zindgi bhut khoobsurat hai,
tu bs jra apna njaria
bdl k to dekh,,,,
aaj tk jia hai tu bs khud k liye,aaj jra ik pl apno k liye jii
k to dekh,,,,
bde hi khusnaseeb hote hai wo jinhe,
hasil hai ye zannat,
Jine ka saleeka jra unse puch
k to dekh,,,,
dusro ki trh kuch mangti nhi hai,
taumr sirf deti ji jaygi,
tu ik bar isse mang
k to dekh,,,,
gr, bhr na de teri jhooli duniya bhr ki khushiyon se toh khna,tu ik bar iski kdr kr
k to dekh,,,,
sirfire hai wo log,
jo kr lete hai khud ko isse juda,sirf kisi or insan k liye,
are ye tujhpe aise croro insan luta degi,
tu ik bar isse pyaar kr
k to dekh,,,,
zindgi bhut hsiin hai,
Tu jra apna njaria bdl
k toh dekh,,,,
le jakr kr khda kr degi ye tujhe,un bulandiyon pe,
tu bs jra isk sath do kdm sath chl
k to dekh,,,,
chor denge sath tera tere ye dost,
lkin ye tera sath nhi choregi mrte dum tk,
tu jra isse dosti kr
k to dekh,,,,
zindgi bhut khoobsurat hai mere dost,
tu bs jra apna njaria bdl.
k to dekh,,,,
ye itni ssti bhi nhi ki bik jaye gli kucho me,
Iski kimat sdk pe trp trp k mrte logo se puch
k to dekh,,,,
samne hai tere ek nyi duniya,
ek nyi rah roshni se bhri,
tu ispe kuch doori tay kr
k to dekh,,,,
khda khda soch kya rha hai ae musafir,
ek mauka fir se jine ka tujhe ye de rhi hai,
Tu bhi ise ek mauka fir se nya de
k to dekh,,,,
zindgi wakyi bhut hi khoobsurat or hsiin hai,
ae mere dost
tu bs jra apna nzaria
bdl k to dekh….!!!!!!!

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क्या कहे - ६

उस पार उतरने की जल्दी में हम अपनों को ही भूल गए
जिस राह में उंगली पकड़ी थी उस राह पर उनको छोड़ गए
वो देख किनारा स्वपन सलोना हठ को फिर मज़बूर किया
लहरो की मौजो में तुमने खुद को नशे में चूर किया
उस साँझ मैं ढलती आशाओ को एक पल में झकझोर दिया
उन बूढी आँखों की परतों को तुमने आज निचोड़ दिया
वो रात अँधेरी थी वर्षा ऋतू कम्पन जब तुम करते थे
वो बैठ किनारे खटिया के तन शाल लपेटा करते थे
उसी किनारे तुमने आज उनकी चिता जलायी है
वो आग देखकर तुमको इक फिर कपकपी सी आयी है

………….फिर कपकपी से आयी है ……………….

…………………………………………………

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ग़ज़ल( जिंदगी)

ग़ज़ल( जिंदगी)

जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।

दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।

किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।

उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।

किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

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बन्दा चाँद पर गया है

बन्दा चाँद पर गया है,
वहाँ काम चल रहा है।
किसी मुमताज का ताजमहल,
बन रहा है।
एक वो है जो दोनों जहाँ संभाले है,
मेरा दम तो,
जमीन पर ही निकल रहा है।

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भौतिक विकास के अस्तर में

एक चीज ही चुन पाओगे गन्ना गुड़ या शक्कर में।
थोड़ा बहुत छोड़ना होगा कुछ पाने के चक्कर में।
चाहे जितनी सेना हो उसके मुस्तैद सिपाही हों।
थोड़ी बहुत हानि निश्चित है भले विजय हो टक्कर में।
शाखें कटीं परिंदे रूठे सूनी है आकाश धरा,
अवगुण बहुत भयानक हैं भौतिक विकास के अस्तर में।

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ये मोहब्बत कहा !

वादा करके मुकर जाने के बाद ,
प्यार करके फिर धोका देने के बाद ,
लोग नये रिश्ते ढूँढ़ते है बस चंद ही दिनो के बाद /

वादा वो सच्चा था या नहीं ,
प्यार वो सच्चा था या नहीं ,
सवाल कुछ ऐसे है ढेर सारा ,
मैं जागता रहता हू रातभर सारा /

सच है की ज़माना अब वो नहीं रहा,
मोहब्बत की राह अब वीरान हो रहा ,
तेज चलती इस दुनिया से मै हारा ,
पर मोहब्बत से रिश्ता रहेगा हमारा/

हम जैसों की दुनिया में भीड़ है काम ,
मोहोब्बत की राह में लोग है काम ,
पलभर यहाँ ,तो पलभर वहा ,
मनोरंजन ये ऐसा , ये मोहब्बत कहा/

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==* बिटिया *==

मुस्कान तेरी ऐ बिटिया
रखु पलको मे छुपाके
तेरे खुशीकी खातीर
ये दुनिया रखु सजाके

तू सपना तुही हकीकत
तुझसेही ये मेरा जहा है
तेरे आनेसे खिला आंगण
तुने बुना खुशीका समा है

ना चाहु चिराग घरका
दिया तो तुही जलायेगी
लडकी होकर तू गुडीया
मेरे सम्मानको बढायेगी

डोली तेरी हसके सजाउंगी
तू ससुरालको महकायेगी
बेटी मुझे यकीन है तुझपर
तू मेरा सर नही झुकायेगी

आंखे नम होगी शादिसे
तेरी बिदाई देखी न जायेगी
बिदा कर तुझे सजन घर
हमेशाही तू याद आयेगी

हमेशाही तू याद आयेगी
——–****———
शशीकांत शांडीले (SD), नागपूर
Mo. ९९७५९९५४५०
दि. २९/०९/२०१५

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भोला दिल (गाना)

यह दिल है कितना भोला,
सभी के सामने है उसने राज़ खोला,
की उसे सहारे की ज़रुरत है,
वह न जाने की यह सब कहना ही एक मुसीबत है।

बच्चों की तरह मासूम,
सपनों के जहान में कहाँ खो गया, उसे नहीं मालूम,
किसी से ज़्यादा देर तक रूठ न पाया,
उसे जब धुप लगती है, तो तुरंत मिलती है छाया ।

इस उम्र में,
वह किसी को भी जान दे दे,
किसी से भी प्यार कर बैठे,
किसी को भी अपने अंदर छुपाकर रखे।

मेरा दिल भी,
कुछ इस तरह है कि,
उसे समझना और समझाना है कठिन,
हम दोनों रह न पाएँगे एक दूसरे के बिन।

कभी चुप है,
कभी बोलते रहता है,
अपना बोझ कम करने हेतु क्या नहीं करता है,
कभी रोता है, तो कभी हक़ के लिए लड़ने जाता है।

बचपन से लेकर आज तक,
अकेला ही है,
क्या करें, मेरे सिवा उसे कोई समझता ही नहीं ,
कभी रो देता है वह खून के आँसूओं की नदी ।

इसे ज़रूर इन्साफ मिलेगा,
और वह ऊपरवाला देगा,
वह ही अब इसे टूटने से बचा सकता है,
वक्त पर न मिले मदद, तो इसके राख हो जाने की संभावना है।

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सपने मेरी //हाइकु//

[1]
सपने मेरी
ज़िन्दगी फुलवारी
तुम बसंत !!

[2]
पिया न आयी
पनघट पुकारे
नैन निहाँरे !!

[3]
सावन घटा
बरसे रिमझिम
पिया भी साथ !!

[4]
हमराही तू
मै बादल आवारा
चलूँगा साथ !!

[5]
तुम दर्पण
देखू सुबह शाम
करू श्रृंगार !!

दुष्यंत पटेल //कृष//

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माफी कर देना

जाने से पहले
सब से माफी मांग लेना चाहता हूं
उन गलतियों के लिए जो हो गए हों अनजाने
बिना सोचे
बिना मन में रखे
किसी को दर्द पहुंचा हो
तो माफ कर देना।
जाने के बाद कुछ भी उठा नहीं रखना चाहता
वरना कहने वाले कहेंगे
उसने मेरे साथ अच्छा नहीं किया
फाइल यूं ही बिना दस्ख़त किए चला गया
बिना पूरा किए अपना काम जा चुका।
कोई यह न कह दे
बिन बताए चला गया
इसलिए बता देना चाहता हूं
किसी दिन बिन ताकीद किए चला गया
तो उदास मत होना
सब अपना काम पूरा करके जाना चाहता हूं
बशर्ते पूरा करने का मौका मिले।
अधूरी रह गई कोई पंक्ति
परेशान करे तो पूरा कर लेना
कोई बात छूट गई हो बीच बहस में
तो उसे भी निपटा देना
बस उलाहने मत देना
वरना जहां भी रहूंगा
मन आप में भी अटका रहेगा।
जाने के बाद पता नहीं मेरा क्या पता हो
कौन सी आई डी से मैं खुल पाउं
यह भी तो मालूम नहीं
किस ग्रह
गहवर में रहूं
संभव है वहां नेटवर्क न मिल
आप ख़ामख़ा परेशान हों।
दोस्तों से भी अभी ही माफी मांग लूं तो बेहतर,
जिनसे दिल न मिला तो क्या,
उनकी बद्दुवाओं मंे तो रहूंगा ही
उन्हें भी चाहता हूं
जिंदा रहते मांफ कर दें
ताकि चैन की नींद सो सकूं।

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वक़्त का प्रश्न

वक़्त ने एक दिन मुझसे पूछा
कि तेरी खुशियों का कमल कब खिलेगा
कैसे तू मेरे साथ चलेगा

इस भाग दौड़ की जिंदगी मे तू कब तक लगातार चलता रहेगा
अपनों की ख़ुशी के लिए तू कब तक पाप कुम्भ भरता रहेगा
इस स्वार्थी दुनिया से तू कैसे बाहर निकलेगा
अब बता , कैसे तू मेरे साथ चलेगा

तेरे अपने ही तेरे अरमानो का गला भींच देंगे
तू कदम बढ़ा के तो देख ,वो पीछे खींच लेंगे
अब तू खुद देख ले कि तू अपनी जगह से कैसे हिलेगा
अब बता , कैसे तू मेरे साथ चलेगा

सुख की लालसा में तू , मेरे को छू नहीं पायेगा
निर्जीव सा पड़ा पथ पर , दुनिया की ठोकर खायेगा
और इन ठोकरों के बीच तू कैसे संभलेगा
अब बता , कैसे तू मेरे साथ चलेगा

जीवन की अंतिम बेला में , कदम साथ नहीं देंगे
संजोये थे जो सपने , वो पल पल बिखरेंगे
करोडो का मालिक ये शरीर , तब बेमोल जलेगा
अब बता , कैसे तू मेरे साथ चलेगा

मायूस दिल और आँखों में आंसू , अब मैं निरुत्तर था
वक़्त के इस प्रश्न का सिर्फ, ये ही मेरा उत्तर था
ये जीवन तो व्यर्थ गया , दूसरा जनम भी तो मिलेगा
रख भरोसा ये वक़्त , ये इंसान फिर कभी तेरे साथ चलेगा

हितेश कुमार शर्मा

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मनुष्य हूँ...

क्षुद्र हूँ
ब्राह्मण, क्षत्रिय वाला नहीं
व्यवहार में
उग्र हूँ

मुर्ख हूँ
ज्ञान, विज्ञान वाला नहीं
अहम् कूप का
मण्डूक हूँ

अयोग्य हूँ
धन, क्षमता वाला नहीं
स्वार्थ प्रेरणा में
दक्ष हूँ

नर्क हूँ
पाप, पुण्य वाला नहीं
कदाचार विचार से
लिप्त हूँ

मनुष्य हूँ
मनुष्यता वाला नहीं
ऊपरी लिबास का ही
दृश्य हूँ

-मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’

Hindi poem on humanity and bad manners

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मंगलवार, 29 सितंबर 2015

चाँद का शबाब....... {ग़ज़ल}


घायल कर गया दिल पूनम चाँद का शबाब
कल रात अधूरा रह गया नींद का ख्वाब !!

चांदनी रात में था उससे मिलन का वादा
पलटकर ना आया फिर दिलबर का जबाब !!

रात कब गुजर गयी महबूब के इन्तजार में
हमने खोल के रखा था दिल का मेहराब !!

मिलन की बेकरारी में तड़पा तो वो भी होगा
उमड़ा तो होगा उसकी भी नयनो में सैलाब !!

मजबूरियों के आलम में “धर्म” वो उलझा होगा
कही गिरा होगा वो पीकर मोहब्बत की शराब !!

[[ _________डी. के. निवातियाँ ______]]

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एक नजर................. !!

    1. एक नजर पलट कर देख लो,
      शायद कुछ भूले से याद आ जाए
      भागदौड़ की चपल जिंदगी में,
      शायद कुछ आनंद के पल मिल जाए !!

      एक नजर………………………..मिल जाए !!

      वक़्त कहाँ अब खुद को पाने का,
      विलासिता में खुद को लिया उलझाये
      खिलखिलाकर हँसते थे निडर जब,
      शायद वो लम्हे फिर कही मिल जाए !!

      एक नजर………………………..मिल जाए !!

      प्रेम भावना आज लुप्त हुई है,
      उत्तेजना में हर कोई बहता जाए,
      त्याग कर निष्काम प्रलोभन का,
      शायद चित्त को कुछ चैन मिल जाए !!

      एक नजर………………………..मिल जाए !!

      कहाँ गए वो पल आमोद प्रमोद के,
      गमो के समुन्द्र में इंसान धँसता जाये
      कर साधना ज़रा शांत मन से,
      शायद आत्मग्लानि से मुक्ति मिल जाये !!

      एक नजर………………………..मिल जाए !!

      रिश्ते-नातो का कोई मूल्य नही अब,
      जग जननी संतान का कत्ल कर जाए
      कद्र करो अपने संस्कारो की,
      शायद मातृत्व की ममता फिर उमड़ जाए !!

      एक नजर………………………..मिल जाए !!

      जाने कहाँ खो रही इंसानियत,
      खुदगर्जी का आलम हर दिन बढ़ता जाए
      करो शर्म कुछ अपने जमीर की,
      शायद खुद की नजरो में गिरने से बच जाए !!

      एक नजर………………………..मिल जाए !!

      एक नजर पलट कर देख लो,
      शायद कुछ भूले से याद आ जाए
      भागदौड़ की चपल जिंदगी में,
      शायद कुछ आनंद के पल मिल जाए !!
      !
      !
      !
      [[__________डी. के निवातियाँ _________]]

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दिल है कि मानता नहीं

टूटे हुए सपनो का दर्द अब और सहा जाता नहीं
बहते हैं आँखों से आँसु कि कुछ और कहा जाता नहीं
कोई समझे न समझे जज्बातों को मेरे
गम ऐ तन्हाई का दर्द मेरा किसी से कहा जाता नहीं
तोडा है इस कदर किसी ने सपनो को मेरे
दिल शीशा है कि पत्थर कुछ कहा जाता नहीं
हमदर्द था वो मेरा या संगदिल कातिल था
दर्द देके हाल पूछता है कि अब कुछ कहा जाता नही
ये जानता हुँ कि जिंदगी लाएगी मौत एक दिन
जीने कि क्या वजह है ये जनता नहीं
शायद दुनिया में मेरा एक दिन नामो निशा न हो
हमदर्द है ये दुनिया मैं मानता नहीं
कैसे भरोसा करे अब किसी के ऐतबार का
जो रास्ते में छोड़ दे कब मैं जानता नहीं
फिर भी उनकी यादो से बचकर पास आया हुँ किसी के
जो ठुकरा दे या अपना ले चाहे क्योकि..
दिल तो आखिर दिल है कि मानता नहीं ……

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रोज़ याद आती है तू - शिशिर "मधुकर"

वैसे तो रोज़ याद आती है तू
दिल में एक दर्द सा दे जाती है तू
लेकिन मैं अपने आप को लेता हूँ संभाल
जब भाग्य में तू नहीं थी तो फिर कैसा मलाल
पर जब से है देखा दो सच्चे प्रेमियों को
नहीं रोक पा रहा हूँ अपनी भावना को
रह रह के मुझको तेरी याद आ रही है
तेरे आगोश की आकांशा मुझे तड़पा रही है
मैं चाह रहा हूँ ये भावना मेरे मन में ना आए
तेरी तड़प अब मुझको और ना तड़पाए
पर शायद नहीं है कुछ भी अब मेरे बस में
सिवाय ग़मों को सहना वो भी हँस हँस के.

शिशिर “मधुकर”

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याद आएगी बेवफाई - शिशिर "मधुकर"

आज फिर किसी नें मेरी सोई याद को छेड़ा
मेरे वर्तमान को अतीत से फिर जोड़ा
मैं भी खो गया फिर उन हंसी वादियों में
दीप जैसे जल गया हो अंधी आँधियों में
ज्यों ज्यों जो पूछता था वो मुझसे कुछ निजी सवाल
मेरे दिल में भावनाओं का आ जाता था उबाल
सच्चाई को तो मैंने उससे यूँ छुपा लिया
वो समझा जैसे मैंने तो सब कुछ ही पा लिया
उसकी नज़रों में तो था मैं सबसे भाग्यवान
पर शायद एक भी वो सच ना पाया जान
जान भी जाता तो वो विश्वास नहीं करता
इसे भी शायद वो एक मजाक ही समझता
लेकिन ये सच है मेरी जिंदगी अब बन गई मजाक
जिसमें कोई भी ख़ुशी और उमंग नहीं आज
उसके बिना मेरी जिंदगी का सफर है अधूरा
वो साथ नहीं है न जाने होगा ये कैसे पूरा
अब इतना जब सहा है तो कुछ और सह लेंगें
तक़दीर के बाकी मजाकों को भी झेलेंगे
लेकिन मेरा मन अब उसे दुआएं नहीं देता
ना चाह कर भी हरदम सिर्फ यही है कहता
एक उसे भी तोड़ डालेगी ये तन्हाई
शायद उसे तब याद आए अपनी बेवफाई .

शिशिर “मधुकर”

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सोमवार, 28 सितंबर 2015

barsaat

nile aasman me yu
achanak Kali ghta
ka cha jana
acha lgta hai,
acha lgta hai, fir
wo thndi thndi
mdhosh kr deni
wali bundon ka tp tp
krke yu jmiin pe girna,
fiza me mhkne wali
wo bheegi hui mitti
ki saundhi saundhi
khusbo ka ehsas krna
acha lgta hai,
acha lgta hai, barsat
me un chote chote
bchcho ko bhigte
hue dekhna,
badlo k bich chmtki
bichli ka yu aankh
micholi khelna
acha lgta hai,
acha lgta hai, is bdra
ka bejan pde pedh
podho pe girkr unhe
nyi jindgi dena,
yu khilkhilakr nachte
hue pkshion ke jodo
ko dekhna
acha lgta hai,
acha lgta hai, fir se
suraj ka yu charo
trf apna tej bikherna
or raj kayam krna,
door un phadhon
k piche hlke hlke
rng birnge rango se
bne indr-dhnush ko
bnte hue dekhna
acha lgta hai,
acha lgta hai, prakrti ko
niharna mano kuch
khna chah rhi ho
trpt ho chuki hu me
dhrti, sayd ye btana
chah rhi ho,
us thndi hwa ka
sharir ko chukr
gujr jana ik ajiib
si kpkpaht hona
acha lgta hai,
acha lgta hai,,,
iam new to this field after 2 dats i started this is my first poem or poetry
plzzz comment and gave me somw guidance about it……
thanks

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ग़ज़ल (ये क्या दुनिया बनाई है)

ग़ज़ल (ये क्या दुनिया बनाई है)

मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास सब कुछ है मगर बह खा नहीं पाये

तेरी दुनियां में कुछ बंदें करते काम क्यों गंदें
कि किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जायें

जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये

ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये

तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये

गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये
ग़ज़ल (ये क्या दुनिया बनाई है)

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

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रविवार, 27 सितंबर 2015

ग़ज़ल

गिर रहें हैं पात देखो , वृक्ष अब रोने लगा है |
जा रही है रात देखो , चाँद अब रोने लगा है ||
था लगाया मैंने मरहम , रात को जिस घाव पर ,
वह पुराना घाव देखो , अब पुन: रिसने लगा है ||
रह रहा था मौज से , और शान से था घूमता ,
फुटपाथ पर है आज देखो , अब पुन चलने लगा है ||
जिस शहर में कल तलक , शांति का बाजार था ,
बदनाम तबका आज देखो , अब वहां रहने लगा है ||
श्वान जिनको कल तलक , हड्डियों से प्यार था ,
आदमी का रक्त देखो , अब वही पीने लगा है ||
मैंने सुना दर्पण सदा ही , ईमान का है साथ देता ,
बिम्ब कैसे आज उसमे , धुंधलका दिखने लगा है ||
रंगीन कपड़े मैं पहनकर , घूमता हूँ जब यहाँ ,
हर व्यक्ति देखो आज पंकज , ताने पुन: कसने लगा है ||
आदेश कुमार पंकज

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मेरा रखवाला सबसे बड़ा(कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय)

मेरा रखवाला सबसे बड़ा
हर पल वो मेरे साथ खड़ा||

मुझको फिर क्या चिंता है
जब उनका हाथ रखा है
उनको तो सब सुलभ है
जिसमे हो मेरी भलाई
करते है प्रभु वो सदा ही
मुझको तो रहना है कृपा की छाया मे …..
मेरा रखवाला…………

जब प्रभु के दर मे जाता
देख के मुझको आता
प्रभुजी यो मुझसे कह रहे है
दुखो से मत घबराना
बस मुझको आवाज़ लगाना
रक्षा करूँगा तेरी तूफ़ानो मे….
मेरा रखवाला…………

बचपन से इनको जाना
इनको ही अपना माना
ये मेरे प्राणो के आधार है
जब मन मे कुछ दुविधा हो
आकर इनको बतलाना
तेरे सब काम होंगे इशारो मे…
मेरा रखवाला………… कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

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शनिवार, 26 सितंबर 2015

।।ग़ज़ल।।इंसान नही मिलते है।।

।।ग़ज़ल।।इंसान नही मिलते है।।

ये इश्क़ है दोस्त यहा पर ईमान नही मिलते है।।
इस इश्क की दुनिया में इंसान नही मिलते है।।

तोड़ देगे दिल हरहाल किसी ‘साहिल’ पर ।।
यहा दर्द के शिवा कुछ इनाम नही मिलते है ।।

नाम तक मिट जाता वफ़ा की कोई बात नही ।।
राहे मुहब्बत पर कुछ निसान नही मिलते है ।।

अदाओ की कशिश की कोई परवाह नही होगी तब ।।
‘साहिल’ पर फ़िसले तो गुमान नही मिलते है ।।

हर शख़्स गम का मारा हर ओर गुमसुदा सब ।।
हर ओर बेखुदी है यहा हैरान नही मिलते है ।।

इस इश्क़ की महफ़िल में हर तऱफ रंजोगम हैं ।।
यहा कारवाँ निकलता अंजान नही मिलते है ।।

..R.K.M

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बच्चो,चलो चलाएं चरखा

बच्चो,चलो चलाएं चरखा
…आनन्द विश्वास

बच्चो, चलो चलाएं चरखा,
बापू जी ने इसको परखा।
चरखा अगर चलेगा घर-घर,
देश बढ़ेगा इसके दम पर।

इसको भाती नहीं गरीबी,
ये बापू का बड़ा करीबी।
चरखा चलता चक्की चलती,
इससे रोटी-रोज़ी मिलती।

ये खादी का मूल-यंत्र है,
आजादी का मूल-मंत्र है।
इस चरखे में स्वाभिमान है,
पूर्ण स्वदेशी का गुमान है।

इसे चलाकर खादी पाओ,
विजली पाकर वल्व जलाओ।
दूर गाँव जब चलता चरखा,
विजली पा सबका मन हरखा।

खादी को घर-घर पहुँचाओ,
बुनकर के कर सबल बनाओ।
घर-घर जब होगी खुशहाली,
तभी मनेगी सही दिवाली।

चलो, चलें खादी अपनाएं,
खादी के प्रति प्रेम जगाएं।
मन में गांधी, तन पर खादी,
तब समझो पाई आजादी।

मेरे *मन की बात* सुनो तुम,
बापू की सौगात सुनो तुम।
बापू को चरखा था प्यारा,
और स्वच्छता उनका नारा।
…आनन्द विश्वास
http://anandvishwas.blogspot.in/2015/09/blog-post_25.html

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साथी जैसे दिया और बाती - शिशिर "मधुकर"

अब मेरे मन ने फिर चाहा मिल जाए कोई सुन्दर साथी
साथी हरदम साथ रहे यूँ जैसे रहे दिया और बाती
रखूँगा मैं उसको मस्तक पर सींचूँगा खून से जिंदगानी
लौं से उसकी चमकूँगा मैं अमर हो जाएगी प्रेम कहानी
अगर न होगी लौं उसकी तो मेरा भी अस्तित्व न होगा
प्यार जो उसका न मिल पाया तो मेरा व्यक्तित्व न होगा
अगर रहेंगे साथ हम दोनों तो ऊँचा स्थान मिलेगा
ईश्वर को पूजे जाने का भी हमको सम्मान मिलेगा
अलग रहेगी वो गर मुझसे तो ज्यादा जल ना पाएगी
बिना वफ़ा के ये दुनिया भी आखिर कब तक चल पाएगी.

शिशिर “मधुकर”

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शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

यहीं सामर्थ्य पैदा करो...

Mithilesh's poem in hindi, extra zeal for Investment in India, Indian flagगणवेश वाले का
निवेश- निवेश चिल्लाना
अब देश को ‘अख़र’ रहा है।

हमारे परिवेश पर
फिरंगी का हंसना बिहसना
सदियों से हर ‘पहर’ रहा है।

व्यवसाय के रास्ते
आना और हुकुम चलाना
हमारे लिए ये ‘ज़हर’ रहा है।

उपवास की राह से
सिक्के जुटा लेंगे फिर
ये मिट्टी हमारा जो ‘घर’ रहा है।

सबक लो गुलामी से
यहीं सामर्थ्य पैदा करो
स्थाई यही एक ‘असर’ रहा है।

– मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’

(more at: www.mithilesh2020.com )

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मल्लाह से नाव मॅंगा रहे

प्रभु खड़े गंगा किनारे केवट को बुलवा रहे
पार होने के लिए मल्लाह से नाव मगा रहे||

तो सुनकर एक मल्लाह चला आया प्रभु के पास मे,
और बोला, सुना है रज चरण से पत्थर उड़े आकाश मे||
जब पत्थर उड़े आकाश मे तो सामर्थ कहा फिर काठ मे
तो करले अपनी दूर सन्सय यो हरी बतला रहे.
पार होने के लिए मल्लाह से नाव मॅंगा रहे…….

फिर सहित सीता नाथ लक्ष्मण जा विराजे नाव मे,
मल्लाह ने बल्ली लगा कर नैया को छोड़ा धार मे,
फिर धीरे-2 जा उतारे पार मे.

तो क्या विदा दे दू इसे, कुछ पास ना सकुचा रहे
तो सीता बोली हरी से मन मे सकुचाओ मति,
है अँगूठी पास मे, इसको दे दीजे पति|
देखकर इस द्श्य कहा मल्लाह ने, कि दर्शन किए सो हो गति

मे नाथ माझी घाट का, संसार सागर के हो तुम
मेने किया है पार तुमको, मुझको लगाना पार तुम
तो देखकर इस द्श्य को देवता हर्षा रहे
पार होने के लिए मल्लाह से नाव मॅंगा रहे……. कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

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बेवफा की चाहत - शिशिर "मधुकर"

ढ़लते सूरज की सही , रोशनी तो मैं भी हूँ
एक बेवफा की ही सही, चाहत तो मैं भी हूँ
तुम न मानो तो क्या, एक दिन मानेगा जहाँ
गिला होता है जिसे , आदमी तो मैं भी हूँ
ख़ुशी से ना सही , गम से तो अपना नाता है
कैसे सहना है इसे, वक्त सब सिखाता है
माना जमीं से दूर, हम निकल आए
तुम हो ऊंचाई अगर, गहराई तो मैं भी हूँ.

शिशिर “मधुकर”

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।।ग़ज़ल।।तेरी आजमाइस पर खरा उतरूंगा।।

।।ग़ज़ल।।आजमाइस पर खरा उतरूंगा।।

मिल न सकी दर्दो से रहाइस पर खरा उतरूंगा ।।
तेरी चाहत’ तेरे सपने’ तेरी ख़्वाइस पर खरा उतरूंगा ।।

यक़ीन न हो तो जायज़ा ले ले मेरे दिल का ।।
मैं तेरे दिल की हर आजमाइस पर खरा उतरूंगा ।।

तुझे भी भुला दूँगा’ तेरी ख़ुशी के लिये ऐ दोस्त ।।
कर के देख ‘तेरी फरमाइस पर खरा उतरूंगा ।।

नसीब में होगा गम तो आयेगा तेरे हिस्से में भी ।।
मेरी मत करना कोई पैमाइस पर खरा उतरूंगा ।।

ये मेरे वादे है तेरी कोई तेरी झूठी सौगात नही ।।
मैं तेरे ‘साहिल’ की हर नुमाइस पर खरा उतरूंगा ।।

..R.K.M

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रोशनी बुझा दो - शिशिर "मधुकर"

रोशनी बुझा दो कि रोशनी में आज दिखता है
अंधेरों से मुझे मिलादो अतीत जिसमे सजता है

तुझसे मांगूंगा अब मैं नहीं कुछ ख़ुदा
मुझे इल्म है तेरी इस दुनियाँ का
सोने की खातिर जहाँ प्यार भी
भर के दिलों में बिकता है .

रोशनी बुझा दो कि रोशनी में आज दिखता है
अंधेरों से मुझे मिलादो अतीत जिसमे सजता है.

सोचा था की एक लम्बा सफर तय करें
इस सफर में कोई हमसफ़र तय करें
जाना अब है की लम्बे सफर में मगर
अक्सर मुसाफिर लुटता है.

रोशनी बुझा दो कि रोशनी में आज दिखता है
अंधेरों से मुझे मिलादो अतीत जिसमे सजता है

अब तो हैरत नहीं कोई दौर पर
आए भी न जलाल अब किसी और पर
कितना सच है की लहरों के आने पर
रेतों पर लिखा हरदम मिटता है.

रोशनी बुझा दो कि रोशनी में आज दिखता है
अंधेरों से मुझे मिलादो अतीत जिसमे सजता है

शिशिर “मधुकर”

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साथ साथ हमें चलना होगा

Aaryansh-son-of-mithileshचलना होगा,
साथ साथ हमें चलना होगा
स्व-अहम को छलना होगा
रूठों के पाँव में पड़ना होगा
ऊँच-नीच, भेद-भाव,
जात-पात को तजना होगा

जगना होगा
सुबह सुबह हमें जगना होगा
सूरज का स्वागत करना होगा
मन की, तन की, जीवन की
प्रकृति समझना होगा
अंधियारा होने से पहले
अपनों के साथ में होना होगा
जीवन की अंधी दौड़ है क्या
परख उसे सजगना होगा
बूढी आँखों के अनुभव को
हमें पास बैठ कर लेना होगा
विकृत होने से बचना होगा
'रहे पास में तेरे धर्म सदा'
इस हेतु 'ससंगत' करना होगा.
– मिथिलेश 'अनभिज्ञ'
(पुत्र 'आर्यांश' के तीसरे जन्मदिवस की सुबह पर आशीष स्वरुप दो पंक्तियाँ)
३१-०८-२०१४, उत्तम नगर, नई दिल्ली

Mithilesh wrote a poem on Art of Life.  The occassion is birthday of my son 'Aaryansh'.

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गुरुवार, 24 सितंबर 2015

मोहब्बत के सवाल - शिशिर "मधुकर"

हर सुबह जागते ही ये ख़याल आता है
क्या वो मुझको चाहती थी ये सवाल आता है .

हर पल सोचता हूँ वो प्यार भरी बातें
कैसे मैं भुला दूँ वो हसीन मुलाकातें
जब उसने मेरे हर लफ़्ज पे एतबार किया था
मैं सब कुछ हूँ उसका ये इकरार किया था
वो झूठ था या सच था ये मलाल आता है.

हर सुबह जागते ही ये ख़याल आता है
क्या वो मुझको चाहती थी ये सवाल आता है .

वो दिन भी क्या दिन थे जब उजला सवेरा था
मेरे दिल के आईने में बस उसका ही चेहरा था
उसने प्यार की नरमी का एहसास कराया था
मेरे बिन ना वो रह पायेगी ये विश्वास दिलाया था
आँखों के सामने वो सब हाल आता है .

हर सुबह जागते ही ये ख़याल आता है
क्या वो मुझको चाहती थी ये सवाल आता है .

उसने क्यों तोड़ डाला इस दिल के आईने को
क्यों दिल्लगी समझा मेरे इस चाहने को
ये दिल्लगी नहीं थी दिल की लगी थी यार्रों
मैंने तो प्यार में थे भुलाए जहाँ चारों
उसकी बेवफाई ना दिल निकाल पाता है

हर सुबह जागते ही ये ख़याल आता है
क्या वो मुझको चाहती थी ये सवाल आता है .

शिशिर “मधुकर”

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ईश की खोज ............

    1. कण कण में है जो बसा
      घट-घट में वो समाहित
      फिर क्यों उसे खोजने चला
      मुर्ख इंसान होकर लालायित

      अग्नि के तेज़ में, वायु प्रबल के प्रवेग में !
      चलता फिरत संग -संग वो वक़्त के फेर में !!

      नित्य आता रवि रूप में
      मिलने किरण बिखराता
      इस छोर से, उस छोर तक
      सर्वत्र निराली छटा दिखाता

      प्रभात के वेश में, और संध्या के भेष में !
      समा जाता नित्य ही समुन्द्र काल घेर में !!

      थक जाए पथिक डगर में
      बन वृक्ष छाया सुख प्रदान करे
      प्यास से त्रस्त हो धरा जब
      बन बदरी वर्षा से निदान करे

      भिन्न -भिन्न रूप में, प्रत्येक परिवेश में !
      चलता फिरत संग -संग वो वक़्त के फेर में !!

      धरा रूप में, अकाशा स्वरुप में
      कही जल प्रपात में हुआ प्रवाहित
      रोम – रोम में आभास जिसका
      मूर्त-अमूर्त सर्वत्र हो आह्लादित

      संध्या मे, निशा में, चन्द्र तारो के भेष में
      चलता फिरत संग -संग वो वक़्त के फेर में !!

      वृक्ष में, लता में, कन्द, में मूल में,
      पौधों में, पुष्प में, फल में फूल में
      इस सृष्टि के प्रत्येक अलंकार में
      जो बसा तेरे घट,क्यों खोजे संसार में

      सुख में भी वो दुःख में भी, प्यार में द्वेष में !
      चलता फिरत संग -संग वो वक़्त के फेर में !!

      !
      !
      !

      [[________डी. के. निवातियाँ _______]]

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दिल की हलचल- शिशिर "मधुकर"

आज फिर देखो दिल में है हलचल मची
उनके दूर होने का फिर ख्याल आ गया
कितना चाहा की हम भूल जाए उन्हें
फिर कसम का उनकी सवाल आ गया.

उनके जैसा नहीं था जमीं पर कोई
चाँद तारों में भी उनके जैसा न था
उनकी साँसों में थी जो दिलकश महक
बागों में चंदनों के भी वैसा न था
हमने चाहा था उनकी इबादत करें
पर ख़ुदा को भी हम पर जलाल आ गया

आज फिर देखो दिल में है हलचल मची
उनके दूर होने का फिर ख्याल आ गया
कितना चाहा की हम भूल जाए उन्हें
फिर कसम का उनकी सवाल आ गया.

उनकी आँखों में था जिंदगी का नशा
उनकी धड़कन में थी मस्तियों की सदा
उनकी बाँहों में जीवन का श्रृंगार था
उनके होठों पे केवल मेरा प्यार था
उसने छुआ जो मेरे रुखसार को
दिल में जज़्बा कोई बेमिसाल आ गया

आज फिर देखो दिल में है हलचल मची
उनके दूर होने का फिर ख्याल आ गया
कितना चाहा की हम भूल जाए उन्हें
फिर कसम का उनकी सवाल आ गया.

उनकी ख़ामोशी सागर की गहराई थी
उनके हसने पे कलियाँ भी मुस्काई थी
उनके आँसूं भी थे गंगाजल की तरह
वक्त बीता वो खुशियों के पल की तरह
हमने प्रेम का दीपक जलाया ही था
एक झोका हवा का विशाल आ गया

आज फिर देखो दिल में है हलचल मची
उनके दूर होने का फिर ख्याल आ गया
कितना चाहा की हम भूल जाए उन्हें
फिर कसम का उनकी सवाल आ गया.

शिशिर “मधुकर”

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तन्हा यादें और तमन्नाए - शिशिर "मधुकर"

जब भी पहुँचता हूँ मैं जीवन में किसी मुकाम पर
मुझे उसकी याद आ जाती है
काश मैं उस वक्त उसको दे पाता ये सब कुछ
यह इच्छा मन को एक एहसास करा जाती है
लेकिन शायद जिंदगी की जद्दोजहद इसी का नाम है
जब इंसान कुछ मौकों पर इतना मजबूर हो जाता है
की प्यार, दोस्त, वक्त, और समाज क्या
अपना साया भी उसका साथ छोड़ जाता है
और जब वक्त की मेहरबानियाँ होती हैं तो
वो नहीं होता जिसके लिए ये सब कुछ चाहा था
होतीं है तो सिर्फ कुछ तन्हा यादें और तमन्नाए
जो किसी के लिए संजोई थी और
जिसके चले जाने पर मेरी आत्मा भी रोई थी.

शिशिर ‘मधुकर”

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==* हो गया सवेरा *==

स्वच्छ हो भारत मेरा दूर हो अंधियारा
जागो भारत जागो देखो हो गया सवेरा

प्रतिदिन एक पेड लगाये
भारतमे हरियाली लाये
गंदगी को कुछ दूर भगाये
इस भारत को स्वच्छ बनाये

स्वच्छ हो भारत मेरा दूर हो गंध सारा
जागो भारत जागो देखो हो गया सवेरा

कुडा कर्कट सही जगह डाले
खुदको स्वच्छता प्रेमी माने
करले निश्चय स्वच्छता का
गंदगी अपने मनसे निकाले

स्वच्छ हो भारत मेरा दूर हो मोहमाया
जागो भारत जागो देखो हो गया सवेरा

क्या लेकरके आये थे तुम क्या लेकर है जाणा
सबको इस काली मिट्टीके गोदमे कल है सोना
—————————–****———————–
शशिकांत शांडीले (SD), नागपूर
Mo. ९९७५९९५४५०

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।।ग़ज़ल।।दिल जलाना तो पड़ेगा ही।।

।।ग़ज़ल।।दिल जलाना तो पड़ेगा ही।।

रहा बरसो से ख़ाली दिल जलाना तो पड़ेगा ही ।।
अग़र शौक़ ऐ मुहब्बत तो बताना तो पड़ेगा ही ।।

तुम्हे है प्यार करना तो जरा फिर सोच लेना तुम ।।
यहा पर गम भरे तन्हे बिताना तो पड़ेगा ही ।।

अभी है वक्त रहने दो बड़ी ज़ालिम ये दुनिया है ।।
बनेंगे क़हक़हे हरपल भुलाना तो पड़ेगा ही ।

हमारी दोस्ती के पल यक़ीनन तुम भुला दोगे ।।
मग़र रश्मे मुहब्बत को निभाना तो पड़ेगा ही ।।

यहा के रहनुमा कातिल सितमगर बन ही जाते है ।।
अग़र है घाव गहरा तो दिखाना तो पड़ेगा ही ।।

ईलाजे दर्द की ख़्वाहिश यहा पूरी न होती है ।।
न होंगे आँख में आँशू बहाना तो पड़ेगा ही ।।

लुटते देख ख़ुद को भी शिकायत कर न पाओगे ।।
दिलो में दर्द होगा पर मुस्कराना तो पड़ेगा ही ।।

R.K.M

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डा श्याम गुप्त की दो गज़लें ....

१. गज़ल -ऐ हसीं …

ऐ हसीं ता ज़िंदगी ओठों पै तेरा नाम हो |
पहलू में कायनात हो उसपे लिखा तेरा नाम हो |

ता उम्र मैं पीता रहूँ यारव वो मय तेरे हुश्न की,
हो हसीं रुखसत का दिन बाहों में तू हो जाम हो |

जाम तेरे वस्ल का और नूर उसके शबाब का,
उम्र भर छलका रहे यूंही ज़िंदगी की शाम हो |

नगमे तुम्हारे प्यार के और सिज़दा रब के नाम का,
पढ़ता रहूँ झुकता रहूँ यही ज़िंदगी का मुकाम हो |

चर्चे तेरे ज़लवों के हों और ज़लवा रब के नाम का,
सदके भी हों सज़दे भी हों यूही ज़िंदगी ये तमाम हो |

या रब तेरी दुनिया में क्या एसा भी कोई तौर है,
पीता रहूँ , ज़न्नत मिले जब रुखसते मुकाम हो |

है इब्तिदा , रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा ‘श्याम’ हो ||

२. ग़ज़ल की ग़ज़ल

शेर मतले का न हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है |
हो काफिया ही जो नहीं,बेचारी ग़ज़ल होती है।

और भी मतले हों, हुश्ने तारी ग़ज़ल होतीं है ।
हर शेर मतला हो हुश्ने-हजारी ग़ज़ल होती है।

हो बहर में सुरताल लय में प्यारी ग़ज़ल होती है।
सब कुछ हो कायदे में वो संवारी ग़ज़ल होती है।

हो दर्दे दिल की बात मनोहारी ग़ज़ल होती है,
मिलने का करें वायदा मुतदारी ग़ज़ल होती है ।

हो रदीफ़ काफिया नहीं नाकारी ग़ज़ल होती है ,
मतला बगैर हो ग़ज़ल वो मारी ग़ज़ल होती है।

मतला भी मकता भी रदीफ़ काफिया भी हो,
सोची समझ के लिखे के सुधारी ग़ज़ल होती है।

जो वार दूर तक करे वो करारी ग़ज़ल होती है ,
छलनी हो दिल आशिक का शिकारी ग़ज़ल होती है।

हर शेर एक भाव हो वो जारी ग़ज़ल होती है,
हर शेर नया अंदाज़ हो वो भारी ग़ज़ल होती है।

मस्ती में कहदें झूम के गुदाज़कारी ग़ज़ल होती है,
उनसे तो जो कुछ भी कहें दिलदारी ग़ज़ल होती है।

तू गाता चल ऐ यार, कोई कायदा न देख,
कुछ अपना ही अंदाज़ हो खुद्दारी ग़ज़ल होती है।

जो उसकी राह में कहो इकरारी ग़ज़ल होती है,
अंदाज़े बयान हो श्याम का वो न्यारी ग़ज़ल होती है॥

प्रस्तुति— डा० श्याम गुप्ता , के-३४८, आशियाना, लखनऊ

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बुधवार, 23 सितंबर 2015

बस गुब्बारा ना बनने देना .......

तू दीन कर,तू हीन कर,तू फकीर नंग धड़ंग कर
दरिद्र कर,दारूण कर,याकि एक मलंग कर
बस गुब्बारा ना बनने देना

तू टिप्पू कर,तू पिट्टू कर
तू गिल्ली डंडा कर,मन करे शतरंज कर
बस गुब्बारा ना बनने देना

तू सूखा कर,तू अकाल कर,
तू शीत कर,भाये तो बसंत कर
बस गुब्बारा ना बनने देना

तू वीणा कर, सितार कर,गिटार कर
तू बांसुरी कर,धड़काए जो मृदंग कर
बस गुब्बारा ना बनने देना

तू आक्रोश कर,आवेश कर,आंसू कर
तू खुशी कर,जी आए आनंद कर
बस गुब्बारा ना बनने देना

तू कीट कर,तू चींटी कर,तू चाहे तो पतंग कर
तू दीमक कर,तू झींगुर कर,चाहे तो भुजंग कर
बस गुब्बारा ना बनने देना

पंछी,दरिया,हवा,पौधा,पत्ती घास कर
बिल्ली,कुत्ता…चाहे जो प्रपंच कर
बस गुब्बारा मत बनने देना

राजदीप…

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ना वक्त बदला ना सोच बदली
ना कोई करिश्मा छाया है
ना दोष घटा ना रोष घटा
ना कोई फरिश्ता आया है
सब चेहरे पर है नकाब लगे
शराफत का चौगा भाया है
खिल उठे है चेहरे सबके
फिर से चुनाव ये आया है
फैलाया है आँचल अपना
समाज के ठेकेदारो ने
जिसने ना दिया कोई टूक कभी
बाँटे है मिठाई हजारो मे
जो ईद का चाँद बना रहता
वो कदम धरा पर लाया है
ईद-उल-फितर नही भाई
फिर से चुनाव ये आया है
सद्भावना प्रकट हुई
सबके मान विचारो मे
पत्थर भी भावुक होने लगे
अब कान लगे दीवारो मे
जिन्हे कदम चौखट पर रखने ना दिया
अब उनको शीश झुकाये है
पानी की एक बूंद ना देई
अब घर पेटी पहुँचाया है
मेल मिलाप अब बढने लगा
भूखे को मिले निवाला है
राजनीति का ज्वर भला
सबके सर चढने वाला है
देश के अच्छे दिन ना सही
गरीबो का दिन आया है
अब भूखा ना सोना पडेगा
फिर से चुनाव ये आया है
अब एक बोतल मे बेचेंगे
वोट के अधिकार को
टुकडो पर जो भागने वाले
क्या समझे इमानो को
नेता को गालिया देना छोडो
सत्ता मे तुमने ही लाया है
अब तो आँख से पट्टी खोलो
फिर से चुनाव ये आया है

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।।ग़ज़ल।।यहा सब गम के मारे है।।

।।ग़ज़ल।।यहा सब गम के मारे है।।

भरे है दर्द तन्हा से यहा जितने किनारे है ।।
यहा मुझको नही रहना यहा सब गम के मारे है ।।

बड़े दिन बाद आया था तुम्हारे साथ साहिल पर ।।
सहारा कौन देगा जब यहा सब बेसहारे है ।।

चलो ऐ दोस्त चलकरके अलग महफ़िल सजाये हम ।।
मुनासिब अब नही रहना यहा तो बस बेचारे है ।।

मुहब्बत में तबाही का मुझे न शौक़ कोई है ।।
हमारी दोस्ती में ही सभी चन्दा सितारे है ।।

अग़र है चाह तुमको तो किसी से प्यार कर देखो ।।
मुझे रुकना नही पल भर यही पर दर्द सारे है ।।

.. R.K.M

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दुनिया की रीत.......

    1. मूर्तिकार पड़े सड़को पर,
      मिटटी के भगवान बेच जिनके पेट पाले जाते हैं !

      जो देते है पत्थर को ईश रूप,
      ऐसे इंसान अक्सर बेचारे बेघर पाये जाते है !

      जो बनाते मंदिर मस्जिद,
      बेबसी में वो लोग उनकी सीढ़ियों पर बैठे पाये जाते है !

      जो सजाते दुसरो के महल,
      अक्सर वो ही लोग टूटी झोपड़ पट्टी में बसे पाये जाते है !

      भक्तो की बात न पूछो मेरे देश में,
      बुजुर्गो को दुत्कार और ढोंगी बाबा घरो में पूजे जाते है !!

      इस दुनिया की रीत निराली,
      ताजमहल बनाने वालो के अक्सर हाथ कटवाए जाते है !
      !
      !
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      [[_________डी. के. निवातियाँ ________]]

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हमारी ख्वाहिशे

हमारी सोच,
हमें अपनी मंज़िल तक पहुँचाती है।
अगर सोच अच्छी हो,
तो मंज़िल मिल जाती है।

हर कोई इस दुनिया को,
अलग नज़रिए से देखता है।
कामयाब हर कोई बनना चाहता है,
हम कभी-कभी अपने आप से ज़्यादा ही उम्मीद करते हैं ।

पैर उतने ही फैलाने चाहिए,
जितनी चादर हो।
यह मुहावरा प्रसिद्ध है,
और हमारी ख्वाहिशों के लिए बराबर है।

हम बहुत ऊँची सोच रखते हैं,
हमारी पहुँच उतनी तो है नहीं ,
फिर भी अपनी सोच को कायम राखते हुए,
हम कुछ ज़्यादा ही माँगते हैं ।

यह ख्वाहिशें हैं ही ऐसी,
चैन से सोने नहीं देती,
हर डैम सताती है,
जब भी सपनों में आती हैं ।

-कृतिका भाटिया

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