लाेग हंसते हैै हमपर हमारा आशियाना ना देखकर
आशियाना तो मै भी बना लेता गर दीवारें बेवफा ना होती
लोग हसँते हैै हमपर हमें मझधार में देखकर
साहिल तो मै भी पा लेता गर लहरें बेवफा ना होती
लोग हसँते हैं हमपर हमें भटकता देखकर
मजिंल तो मै भी पा लेता गर राहें बेवफा ना होती
लोग हसँते हैं हममपर हमें तनहा देखकर
साथी तो मै भी पा लेता गर निगाहें बेवफा नही होती
कवि – भोला शकँर सिँह
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