बुधवार, 2 मार्च 2016

पहचान जमाने में छोड़ जाऊँगा ....... --:: ग़ज़ल ::-- (डी. के, निवातियां)

चमक ना सका सूरज सा तो क्या, उस जैसी किरणे छोड़ जाऊँगा
लड़कर हालातो से, बनकर जुगनू की चमक रातो में छोड़ जाऊँगा !!

इतना याद रखना जनाब मिटकर भी एक निशानी छोड़ जाऊँगा
जाते-जाते अपनी हसीं यादो का आँचल तेरे चेहरे में छोड़ जाऊँगा !!

हर धड़कन में छुपा है मेरी कश्ती – ऐ -जिंदगी का फलसफा
दिल में छुपाकर हर राज दुनिया की महफ़िल में छोड़ जाऊँगा !!

ठोकरे बहुत खाई कदम – कदम पर जिंदगी के टेढ़े सफर में
समेट कर रखे जो बहुत से अनुभव, पुलिंदे में छोड़ जाऊँगा !!

हमने चोटे बहुत खायी है नजरअंदाजी की अपनों की निगाहो से
अपने बहते अश्को की निशानी, उनकी नजरो में छोड़ जाऊँगा !!

रात होगी तो चाँद दुहाई देगा, ख्वाबों में आपको एक चेहरा दिखाई देगा
खुद की सूरत में देखोगे अक्स मेरा, ऐसा असर आईने में छोड़ जाऊँगा !!

कल उगता सूरज था, आज बुझता दीपक बनकर रह गया हूँ
न करना अफ़सोस “धर्म” की पहचान जमाने में छोड़ जाऊँगा !!

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@……..डी. के, निवातियां………@

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