एक सवाल हैं मेरा तुझसे ,
के तु ईतना मज़बूर क्यू हैं ?
एक पल तो गुजरता नही तनहा ,
फिर तनहा जीने का फितूर क्यू हैं ?
सज तो रहा हैं तु गैर के लिये ,
फिर चेहरे पे मेरा ही नूर क्यू हैं ?
बैठ के तो गैरो के जाम पी रहा हैं ,
फिर सर पे मेरा ही सूरूर क्यू हैं ?
औरों की नज़र मे तो गुनहगार हैं तु ,
फिर मेरी नज़र मे ही बेकसूर क्यू हैं ?
-एझाझ अहमद
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