रेत का पानी
सावन न देखूँ, बारिश बा देखूँ
प्यासे नैनों की आस बन जाती हूँ
थके क़दमों की मन्जिल समझो
रेत का पानी सबसे कहलाती हूँ !
कोई राही चला ऊँठ पे सवार
अपने थैली में कुछ टटोले
हाथ आया जल के जैसा कुछ और
फिर चला आगे मुझे निहारे !
शाम ढले एक गडरिया दिखा
भेड़ – बकरियों की गिनती सवारे
मेरे किनारे रुके वह बेज़ुबान
प्यास बुझाकर फिर घर चले सारे !
गाँव में कहीं दूर मातम की गूँज
काले चादर में लिपटा कोई आकार
दो – चार रुडाली मुझे आईना बनाके
करने चली अपने वजूद को साकार !
अमीरों के घर मेरी बोली लगती
दुगने दामों में माथे की शिकन बन जाऊँ
कोई बटवारा करे बेदर्दी से
कहीं मासूम के आस की वजह बन जाऊँ !
मेरा कारवाँ चलता है बेहिसाब
हर दिन कितने ही किस्से जोड़ता है
तपती धूपके झोकों से सुलगकर
चाँद – तारों के साथ अनोखा रिश्ता जुड़ता है !
उम्र का हर तराज़ू मेहमान मेरा
सबकी जिंदगी का अटूट हिस्सा बन जाती हूँ
कभी चंचल, कभी अचल स्वभाव से
रेत का पानी सबसे कहलाती हूँ !!
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