घूमते फिरते हैं बनके नबाव| उम्मीदवारों को प्रधानी का बुखार है| गली-गली में पंचायत लगी है| प्रत्याशी पिला रहे हैं वोट के बदले शराब| सभी बखान कर रहे हैं अपनी ईमानदारी| प्रत्याशी दिखा रहे अपनी-अपनी दम| बनके सभी आते हैं वरदाता| परस्पर विचार कर रहे हैं मतदाता|
गाँव में चुनावी माहौल है|
दबंगो के हाथों में पिस्तौल है||
वोटरों पर बनाते हैं अपना दबाव||
लगता है जैसे गाँव में त्यौहार है||
हर दीवार विज्ञापनों से सजी है||
लोगों की कर दी है आदत खराब||
मगर वोटरों से नहीं छुपी है उनकी भ्रष्टाचारी||
नहीं पड़ रहा कोई किसी से कम||
वादा अपना कोई न निभाता||
प्रत्याशियों की किस्मत के वही हैं विधाता|| योगेश कुमार 'पवित्रम'
सोमवार, 29 फ़रवरी 2016
प्रधानी
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