hindi sahitya
शुक्रवार, 14 सितंबर 2012
हिन्दी की व्यथा
अभी
कल परसों की ही बात है
हिन्दी
दौड़ती-हाँफती दिल्ली पहुंची
अपने आकाओं के पास,
पसीने से तर-बतर होकर
हाथ
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