मंगलवार, 1 जनवरी 2013

तेरी दिदार

तेरी दिदार
ढली शाम से ही
तेरे शहर का रास्ता ढुढ रहा था
ढुढते ढुढते शहर हो गई अब
जमी मे न मिलि तो
आशामा देख रहा

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