hindi sahitya
सोमवार, 7 जनवरी 2013
उसी चार- दीवारी में, अब भी कैद मैं रहती हूँ !
कहने को तो बहुत आगे बढ़ चुकी हूँ,
फिर भी जाने क्यों,
उसी चार- दीवारी में, अब भी कैद मैं रहती हूँ !
एक अरसा बीत गया,
उन
पूरा पढ़े ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें