hindi sahitya
बुधवार, 28 नवंबर 2012
ग़ज़ल
ग़ज़ल...
जीवन की रहगुज़र पे कितनी दूर चला आया हूँ
बस्तियां कितनी, शहर , कितने छोड़ आया हूँ,1
ज़मीं से
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