hindi sahitya
गुरुवार, 29 नवंबर 2012
जलता रहा - हरिहर झा
खून उबला क्रोध में जलता रहा
भींच मुठ्ठी हाथ को मलता रहा
मैं गगनचुम्बी इमारत हो रहा
नभ के साये में सरकता जा रहा
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