सोमवार, 27 अगस्त 2012

दम तोड़ती रही ज़िंदगी रात-भर

दम तोड़ती रही ज़िंदगी रात-भर

बेपरवाह महफ़िलें सजीं रात-भर

 

दंगों में मरते रहे बच्चे-बूढ़े सभी

इंसानियत शर्मशार

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