hindi sahitya
मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012
मेरा बचपन . . .
मन की अधूरी राह में,
हर अधूरी चाह में,
हैं जो चिरंतर हाहाकार,
अंतर्मन का करून चीत्कार,
मुझे और जीने नहीं देता,
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