hindi sahitya
सोमवार, 29 अक्टूबर 2012
बाबूजी का चश्मा
उनमुक्त गगन मे उड़ते हुए पंछी
कल-कल ,छल-छल बहती नदिया की धारा
अक्सर याद आता है मुझे
गरजते हुए मेघों की
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