गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

Kavi Deepak Sharma ki Kavita kitab Falakdipti se

"जाती है दृष्टि जहाँ तक बादल धुएँ के देखता हूँ
अर्चना के दीप से ही मन्दिर जलते देखता हूँ ।
देखता हूँ रात्रि से भी

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