सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

ग़जल

जन्नत की किसे ख्वाहिश थी
हम जहन्नुम चले जाते
तेरे हुश्न की अगर आखिरी
लम्होतक जीया होता

शिकवे की नौबत नही

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