शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

जीवनदायी

जग-मंडल में हवा बिचराती
बन के मंद, स्पर्श से सहलाती
बन के सर्द, कैसे कैसे ठिठुराती
बन के तप्त, बदन झुलसाती
बन के

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