शनिवार, 28 जुलाई 2012

गजलें

(1)

ये कैसा शमाँ है ये कैसा मंजर है।
इंसानियत की पीठ में धंसा खंजर है।
हैवानियत की फसल कटी तब-तब,
सोच इंसान की जब-जब

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