सोमवार, 7 जनवरी 2013

उसी चार- दीवारी में, अब भी कैद मैं रहती हूँ !

कहने को तो बहुत आगे बढ़ चुकी हूँ,

फिर भी जाने क्यों,
उसी चार- दीवारी में, अब भी कैद मैं रहती हूँ !

एक अरसा बीत गया,
उन

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