सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

अग्निवृष्टि करो

जागो अग्निधर्मा ऋषियों, सोये क्यों हो समाधि लिए,
बहुत फेर चुके मालाएँ, अब जागो परशु हाथ लिए।
बहुत कमाया तेजो

अग्निवृष्टि करो

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