शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

अधखिली धूप

आज अचानक बैठे-बैठे,
यूंही कुछ कहते-कहते,
मुझे शाम घेरे थी,
अंधेरी चाँदनी डाले डेरे थी,
पर मन में थी उजियाली छायी,
लग

अधखिली धूप

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें