गुरुवार, 19 जुलाई 2012

कल जो संजोया, खोकर अपना वर्तमान . . .

पढ़ लिखकर काबिल बनने घर छोढ़ चले
उजढ़ा चमन, पर है सपने उनके निराले,
नई उमीदें, नई आशाये, नई मंजिले
खुला आसमा, खुली

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