बुधवार, 11 जुलाई 2012

करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे / फ़राज़

करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे

वो ख़ार-ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिन्द

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