मंगलवार, 17 जुलाई 2012

मुझे यह कहना है...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद

अलविदा !
कहने से पहले
मुझे यह कहना है
जो देखा है, पाया है
अहा ! कितना अनोखा है
ज्योतिसागर में देखा
शतदलकमल खिला

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