दो बेजान शख्सियत की दूरी मापने की इकाई है.., पर दिलों के बीच फसलों का क्या,
भाप लेते हैं सागर की दूरियां
पर जेहऩ में दूरी की गहराइयों का क्या??
हौसले भी हैं, नसीब की दरकार भी
लगन की जन्नत है; कामयाबी की फरियाद भी
हर शख्स जाने खुद को कुछ इस तरह…
“खूदा भी खिदमत हो, सूने उनकी गुहार भी!!
इन सभी के दलदल मे, फसें उन आसूओं का क्या??
इनके जिद में छुपे , उस त्याग के जहन्नुम का क्या ??
हौसला किसी का कम नहीं है..
” पर हौसलौं और गूरुर की कम होती दूरियों का क्या??”
करीब हो चुके आखिरी तख्त पर
ख्ळाहिशों के हकीकत की तब्दीली पर…
दूरियाँ अब कम होनी थी ममता से,
पर अब उन ममता के आंचल में बरसते उन अंगारों का क्या???
चले गए बहुत ऊपर .. तारों के आशियानों पर
करीबीयों के कुछ कुर्बानियों पर..
दे दिया तुमने उन्हें अपना नजऱाना
पर उस राह में फसें उन मुसाफिरों का क्या???
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