चाहे कितना भी भर लो
अपनी सोच से ज्यदा
पहुँच से ऊपर
ढेर लगा लो पैसे का
जाल बिछा लो रिस्तो का
जितना हो सके खरीद लो
छल लो किसी को प्यार के नाम से
खुद को बंद कर लो
खुशी नाम के संदूक में
चाहे कुछ भी कर लो
जीत नहीं पाओगे
भीतर के सूनेपन को
आकाश से कम है तुम्हारे पास
न कोई मुकाबला, न कोई मेल
अनगिनत तारे, सूरज, गृह
आकाश गंगा और हजारो लोग
सब भरा पड़ा है
फिर भी खाली दिखता है
सुना नज़र आता है
गुमसुम हो कर भी सुन्दर दिखता है
आकाश सिर्फ अपने आप को सुनता है
कभी खुद को सुनो
खालीपन के सुन्दरता को देख
सकेगो
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