सोरठा । सज्जन और दुर्जन के प्रति ।
प्रेम वचन निःस्वार्थ, भरे दुःखित पर हृदय जे ।
करें ज्ञान विस्तार, सज्जन रूप प्रतीत ते ।।
द्वेष, द्रोह शुचि बीच, वाणी बरसे घृत गरल ।
ते दुर्जन सम जान, भरे कुटिल व्यंग्योक्ति दुःख ।।
@राम केश मिश्र
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