बचपन
यह कैसा था बचपन
बस खेलना और खाना
कभी पेड़ पर चढ़ना
तो कभी नदी में कूद जाना
कभी यह न सोचना
कि माँ को कभी न सताना
कितनी आज़ादी कितनी मस्ती
कितनी जोश भरी ज़िंदगी
अब बुढ़ापा क्या आया है
बचपन की याद सताने लगी है
अब बचपन की हरकते करना
अपने को मूर्ख कहलाना है
पता ही नहीं चला
बचपन आया और चला गया
मैं कब और कैसे बड़ा हो गया
अगर पता होता
कि बचपन लौट कर नहीं आता
तो थोड़ी मस्ती ओर कर लेता
बचपन का मज़ा जाने ही नहीं देता
मुझे तब पता चला
कि मैं बड़ा हो गया हूँ
जब पिताजी ने एक दिन कहा
सलीके से बात करना सीखो
क्योंकि बचपन बीत गया है
और मैं अब बड़ा हो गया हूँ ।
संतोष गुलाटी——–
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