बुधवार, 14 नवंबर 2012

दोहे

दोहे

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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कुटिया रोई रात भर , ले भूख और प्यास ।

महल बेहया हो गया , करता है परिहास ।

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