सोमवार, 5 नवंबर 2012

ग़ज़ल(नजरिया)

वक़्त की साजिश समझ कर, सब्र करना सीखियें
दर्द से ग़मगीन वक़्त यू ही गुजर जाता है

जीने का नजरिया तो, मालूम है उसी को

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