शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

शायद मैं?

कौन चुका पाया रिश्तों की कीमत को,
अच्छे बुरे को कौन पहचान पाया,
इंसान तो बस काठ की नौका में खुद
को तैरता पाया।

देखो

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