साक़ी…
होश है बाकी साक़ी जाम उठाने दे मुझे,
प्याले से प्याला लगाके मय छलकाने दे मुझे,
वादा है तेरी आँख से भी एक जाम पीऊँगा मोहब्बत का,
महज अभी दो घूट और चढ़ाने दे मुझे।
बहुत पुरानी यारी है, गुजर हुआ है करीब से,
मयकदा से मिलके जरा आने दे मुझे।1।
हाल-चाल बस पूछूँगा, राजे-दिल ना कहूँगा मैं,
सिर्फ आखिरी बार गले लगाने दे मुझे।2।
सोच तो भला वो क्या कहेगा घर आकर भी चले गए,
दोस्त हूँ मैं दोस्ती जरा निभाने दे मुझे।3।
आबोहवा भी यहाँ की थामें बाँह मेरी मदहोशी से,
तनहा उसे जरा प्यार से समझाने दे मुझे।4।
दिल से तो हाथ धो बैठा क्या दोस्तों को भी छोड़ दूँ,
रिश्तों की ये पहेली फिर सुलझाने दे मुझे।5।
भूल गया था मैं, तू ही तो लाया है इन गलियों में,
कर दीदार जिगर की प्यास बुझाने दे मुझे।6।
रूठा हुआ वो य़ार भी होगा कितने दिनों से ऐ साकी,
खुशी के अश्क से आँखों को भीगाने दे मुझे।7।
– सुहानता 'शिकन '
Read Complete Poem/Kavya Here साक़ी...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें