गुरुवार, 5 नवंबर 2015

शून्यता

आज मेरे हृदय में शून्यता
पांव पसारे बैठी है
मन मस्तिष्क में भी
विचारों की अठखेलियां थम गई है
मेरे जीवन का रस
तपती गरमी में
फूल पत्तों सा सूख गया है
सूरज की तपिश का एहसास है
लेकिन
धूप का मतलब भूल गया हूं मैं
रात को जो चांद
चांदनी में नहाया करता था
आज उसमें दाग दिखा करता है
सपने जो बचपन में
जीवन में आकांक्षाऐं जगाते थे
आज उनमें जीवन का नाम नहीं है
जीवन ने भी करवट बदली है
धरती फिर से
आग का गोला बनी है
तपिश से उसकी बर्फ पिधल गई
मेरी सारी तमन्नाऐं जल गई
सारी अपेक्षाऐं
कहीं दूर पत्थरों में सिल गई
यह काया आज जिन्दा लाश बन गई।

………………… कमल जोशी

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