शनिवार, 23 जून 2012

भीतर

भीतर


देख रे प्राणी, अंदर देख
अंधेर है भीतर , फिरसे देख
क्यूँ कोस रहा है देश परदेश
तुने ही तो लिखा अपना लेख

जहाँ

पूरा पढ़े ...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें