शुक्रवार, 29 जून 2012

शेर१५- असर लखनवी

(1)
यह महवीयत1 का आलम है, किसी से भी मुखातिब हूँ,
जुबाँ पर बेतहाशा2 आप ही का नाम आता है।

(2)
यह सोचते रहे और बहार खत्म

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