मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

जनाजा

जनाजा
कलम लडखडाने लगी है
सच् बोलनेको
लहरें मार रही है
सियाही
पर
लेखक के सामने
यह कटघरा क्यों ?
क्या तुक

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