शुक्रवार, 31 अगस्त 2012
देश की अखंडता
भीषण हिंसा की आग, जल रहा कोक्राझार।
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी
देश की अखंडता
भीषण हिंसा की आग, जल रहा कोक्राझार।
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी
देश की अखंडता
भीषण हिंसा की आग, जल रहा कोक्राझार।
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी
भूत और ये भूतईया खेल / सुचेता
कुछ लोग भूत बनाते हैं
कुछ लोग इन्सानों में भूत बताते हैं
तो कुछ लोग इन लोग के सहारे ऐसे बन जाते हैं ,
जो भूत भगाते
कुछ लोग इन्सानों में भूत बताते हैं
तो कुछ लोग इन लोग के सहारे ऐसे बन जाते हैं ,
जो भूत भगाते
दिवाना दिल ।(गीत)
दिवाना दिल ।(गीत)
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/blog-post_31.html
दिवाना दिल फिर, मुकम्मल जगह ढूंढता है ।
तुझे भूलाने की, ठोस वजह
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दिवाना दिल फिर, मुकम्मल जगह ढूंढता है ।
तुझे भूलाने की, ठोस वजह
मेरे विश्वास
मैंने माना
कि तुझे अपनों से बहुत प्यार है
कि तुम सवालों में नहीं चाहते उलझना
तुझे डर है कि /सवालों के जाल
आदमी
आदमी /जीता है जिन्दगी
अपने पुरे होश-हवाश में
एक-एक कर /हर ठिकाने पर रुकता है
सम्भलता है ,फिर /बढता है आगे
अपने पुरे होश-हवाश में
एक-एक कर /हर ठिकाने पर रुकता है
सम्भलता है ,फिर /बढता है आगे
जख्म
आवादी के दलदल में /धंसे पैर लेकर
उबरने की कोशिश में
और धंसता जा रहा है /आहत देश |
ह्रदय की कन्दराओं में /स्निग्ध
उबरने की कोशिश में
और धंसता जा रहा है /आहत देश |
ह्रदय की कन्दराओं में /स्निग्ध
तेरे वगैर
बहुत मुश्किल है /तेरे वगैर जीना |
भरमता ही रहा /पहाड़ की तलहटियों में
नदी के किनारों के संग
नदी भी चलती रही /साथ-साथ
भरमता ही रहा /पहाड़ की तलहटियों में
नदी के किनारों के संग
नदी भी चलती रही /साथ-साथ
तेरे वगैर
बहुत मुश्किल है /तेरे वगैर जीना |
भरमता ही रहा /पहाड़ की तलहटियों में
नदी के किनारों के संग
नदी भी चलती रही /साथ-साथ
भरमता ही रहा /पहाड़ की तलहटियों में
नदी के किनारों के संग
नदी भी चलती रही /साथ-साथ
खल नेताजी की कमाई ।
चले न चले संसद पर, कमाई रहती जारी है ।
संसद से सड़क तक देख, लड़ाई होती भारी है ।
१.
इटली कि किटली जब, चूल्हे पे चढ़
संसद से सड़क तक देख, लड़ाई होती भारी है ।
१.
इटली कि किटली जब, चूल्हे पे चढ़
गुरुवार, 30 अगस्त 2012
देश की अखंडता
भीषण हिंसा की आग, जल रहा कोक्राझार।
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी
देश की अखंडता
भीषण हिंसा की आग, जल रहा कोक्राझार।
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी
ruk jaa
ek dafa dekh le, mein bhi ruka hoon teri rahon mein
haan mein tujhse pyaar nahi karta, per tujhe ehsaas karta hoon
kisi din tu bhi tadpegi, mere liye iska vishwaas hai mujhe
aisa na ho mein intezaar karu tera kaabra pe, aur tu kare intezaar mera
ek dafa dekh le, mein bhi ruka hoon teri rahon
haan mein tujhse pyaar nahi karta, per tujhe ehsaas karta hoon
kisi din tu bhi tadpegi, mere liye iska vishwaas hai mujhe
aisa na ho mein intezaar karu tera kaabra pe, aur tu kare intezaar mera
ek dafa dekh le, mein bhi ruka hoon teri rahon
ruk jaa
ek dafa dekh le, mein bhi ruka hoon teri rahon mein
haan mein tujhse pyaar nahi karta, per tujhe ehsaas karta hoon
kisi din tu bhi tadpegi, mere liye iska vishwaas hai mujhe
aisa na ho mein intezaar karu tera kaabra pe, aur tu kare intezaar mera
ek dafa dekh le, mein bhi ruka hoon teri rahon
haan mein tujhse pyaar nahi karta, per tujhe ehsaas karta hoon
kisi din tu bhi tadpegi, mere liye iska vishwaas hai mujhe
aisa na ho mein intezaar karu tera kaabra pe, aur tu kare intezaar mera
ek dafa dekh le, mein bhi ruka hoon teri rahon
खल नेताजी की कमाई । (व्यंग)
खल नेताजी की कमाई । (व्यंग)
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/blog-post_30.html
चले न चले संसद पर, कमाई रहती जारी है ।
संसद से सड़क तक देख,
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/blog-post_30.html
चले न चले संसद पर, कमाई रहती जारी है ।
संसद से सड़क तक देख,
खल नेताजी की कमाई । (व्यंग)
खल नेताजी की कमाई । (व्यंग)
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/blog-post_30.html
चले न चले संसद पर, कमाई रहती जारी है ।
संसद से सड़क तक देख,
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चले न चले संसद पर, कमाई रहती जारी है ।
संसद से सड़क तक देख,
खल नेताजी की कमाई । (व्यंग)
खल नेताजी की कमाई । (व्यंग)
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/blog-post_30.html
चले न चले संसद पर, कमाई रहती भारी है ।
संसद से सड़क तक देख,
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चले न चले संसद पर, कमाई रहती भारी है ।
संसद से सड़क तक देख,
खल नेताजी की कमाई । (व्यंग)
खल नेताजी की कमाई । (व्यंग)
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/blog-post_30.html
चले न चले संसद पर, कमाई जारी रहती है ।
संसद से सड़क तक देख,
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चले न चले संसद पर, कमाई जारी रहती है ।
संसद से सड़क तक देख,
बुधवार, 29 अगस्त 2012
"क" / निष्कर्ष
मिले जो किस्मत और कर्म
तो "क" से बनी कठिनाई |
हिली जो रोजमर्रा की पगडंडी,
तब वीधाता कि याद आई |
बस एक एहसास था
शायद मन
तो "क" से बनी कठिनाई |
हिली जो रोजमर्रा की पगडंडी,
तब वीधाता कि याद आई |
बस एक एहसास था
शायद मन
किसान / निष्कर्ष
डूबा सूरज की आँखें लगी थी बुझने,
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
चुनाव प्रचार / निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश में लगा मेला
नेताओं का,उनके परिवारों का |
पीटते प्रदेश में सुयश का ढोल,
अपने जमीर से हारों का|
झूठे
नेताओं का,उनके परिवारों का |
पीटते प्रदेश में सुयश का ढोल,
अपने जमीर से हारों का|
झूठे
चुनाव प्रचार / निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश में लगा मेला
नेताओं का,उनके परिवारों का |
पीटते प्रदेश में सुयश का ढोल,
अपने जमीर से हारों का|
झूठे
नेताओं का,उनके परिवारों का |
पीटते प्रदेश में सुयश का ढोल,
अपने जमीर से हारों का|
झूठे
रिश्ते / निष्कर्ष
मैनें रिश्तों को बिखरते देखा है,
कुछ फ़ायेदों, कुछ कायेदों के लिये|
सुविधाओं के लिये, बुनियादी आवयश्कताओं के
कुछ फ़ायेदों, कुछ कायेदों के लिये|
सुविधाओं के लिये, बुनियादी आवयश्कताओं के
रिश्ते / निष्कर्ष
मैनें रिश्तों को बिखरते देखा है,
कुछ फ़ायेदों, कुछ कायेदों के लिये|
सुविधाओं के लिये, बुनियादी आवयश्कताओं के
कुछ फ़ायेदों, कुछ कायेदों के लिये|
सुविधाओं के लिये, बुनियादी आवयश्कताओं के
चिथड़ेहाल आसरा - बुढ़ापा । (गीत)
चिथड़ेहाल आसरा - बुढ़ापा । (गीत)
कब से, ढूँढ रहा है आसरा, फ़टा-पुराना मन ।
चिथड़ेहाल हुआ जब से, ये नया-नवेला
कब से, ढूँढ रहा है आसरा, फ़टा-पुराना मन ।
चिथड़ेहाल हुआ जब से, ये नया-नवेला
यह निशानी किसकी है ?
आसमाँ नीले गुब्बारे की तरह उड़ गया
सूरज पतंग की तरह ताड़ पर आ लटका
ज़मीन तांबे की हो गयी
सारा शहर मुर्दा हो गया
कहते
सूरज पतंग की तरह ताड़ पर आ लटका
ज़मीन तांबे की हो गयी
सारा शहर मुर्दा हो गया
कहते
दिल से
दिवार से मेरा नाम मिटा तो दोगे पर, दिल से कैसे..!
याद आऊँगा फिनिक्स बन कर, आये वो जल कर जैसे ।
तहज़ीब का तकाज़ा
याद आऊँगा फिनिक्स बन कर, आये वो जल कर जैसे ।
तहज़ीब का तकाज़ा
मंगलवार, 28 अगस्त 2012
दिल से । (गीत)
दिल से । (गीत)
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/google.html
दिवार से मेरा नाम मिटा तो दोगे पर, दिल से कैसे..!
याद आऊँगा फिनिक्स बन कर,
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/google.html
दिवार से मेरा नाम मिटा तो दोगे पर, दिल से कैसे..!
याद आऊँगा फिनिक्स बन कर,
मैं तुम्हारी हूँ
मेरे प्राणेश-
यह आखिरी शाम,
और वह भी ,बीत गयी.
तुम्हारी वह, खामोशी,
आज फिर से, जीत गयी.
कुछ भी तो मुझे न
यह आखिरी शाम,
और वह भी ,बीत गयी.
तुम्हारी वह, खामोशी,
आज फिर से, जीत गयी.
कुछ भी तो मुझे न
सर्वप्रथम उन वीरोँ को
जिन्होने अपनी मातृभूमि कि, स्वतन्त्रता मेँ किया है काम ।
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ उनको
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ उनको
सर्वप्रथम उन वीरोँ को
जिन्होने अपनी मातृभूमि कि, स्वतन्त्रता मेँ किया है काम ।
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ उनको
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ उनको
अन्जान हूँ मैं
साँसों के भारी कोलाहल से, परेशान हूँ मैं..!
उसकी सहर मिटाने को, बहुत बे-उनमान हूँ मैं ।
अनचाहे ग़मों से भर गया
उसकी सहर मिटाने को, बहुत बे-उनमान हूँ मैं ।
अनचाहे ग़मों से भर गया
सोमवार, 27 अगस्त 2012
इक बार आके मेरा गाँव देखिए !
इक बार आके मेरा गाँव देखिए !
कितने बदल गये है लोग उनका स्वभाव देखिए
माँ कि तरह भाभियाँ भी जहाँ करती थी
कितने बदल गये है लोग उनका स्वभाव देखिए
माँ कि तरह भाभियाँ भी जहाँ करती थी
वन्दे मातरम
जिन्होने अपनी मातृभूमि कि, स्वतन्त्रता मेँ किया है काम ।
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ
वन्दे मातरम
जिन्होने अपनी मातृभूमि कि, स्वतन्त्रता मेँ किया है काम ।
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ
वन्दे मातरम
जिन्होने अपनी मातृभूमि कि, स्वतन्त्रता मेँ किया है काम ।
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ
वन्दे मातरम
जिन्होने अपनी मातृभूमि कि, स्वतन्त्रता मेँ किया है काम ।
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ
सर्वप्रथम उन वीरोँ को, दिल से मै करता हूँ प्रणाम ॥
आओ
''इक्कीसवी सदी का इंसान ''
''इक्कीसवी सदी का इंसान ''
इक्कीसवी सदी का इंसान,
समझ बैठा अपने को भगवान,
कर रहा अपने हाथों के उध्वंस से ,
इस देश का नव
इक्कीसवी सदी का इंसान,
समझ बैठा अपने को भगवान,
कर रहा अपने हाथों के उध्वंस से ,
इस देश का नव
फिर एकबार...
जब-जब उम्मीद बनती है
लोगों का लोगों पर
विश्वास जागता है
सामने से कोई पत्थर आता है
और तमाम
सुरक्षा घेरे को
लोगों का लोगों पर
विश्वास जागता है
सामने से कोई पत्थर आता है
और तमाम
सुरक्षा घेरे को
अन्जान हूँ मैं । (गीत)
(The Show Must Go on.)
अन्जान हूँ मैं । (गीत)
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/blog-post_27.html
साँसों के भारी कोलाहल से, परेशान हूँ मैं..!
उसकी
अन्जान हूँ मैं । (गीत)
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साँसों के भारी कोलाहल से, परेशान हूँ मैं..!
उसकी
दिल का ऐसा भी क्या आना
दिल का ऐसा भी क्या आना
प्यार करना न करा पाना
ऐसी जिंदगी से क्या हासिल
खुशी देना न खुशी पाना
किताबों के
प्यार करना न करा पाना
ऐसी जिंदगी से क्या हासिल
खुशी देना न खुशी पाना
किताबों के
दिल का ऐसा भी क्या आना
दिल का ऐसा भी क्या आना
प्यार करना न करा पाना
ऐसी जिंदगी से क्या हासिल
खुशी देना न खुशी पाना
किताबों के
प्यार करना न करा पाना
ऐसी जिंदगी से क्या हासिल
खुशी देना न खुशी पाना
किताबों के
दम तोड़ती रही ज़िंदगी रात-भर
दम तोड़ती रही ज़िंदगी रात-भर
बेपरवाह महफ़िलें सजीं रात-भर
दंगों में मरते रहे बच्चे-बूढ़े सभी
इंसानियत शर्मशार
बेपरवाह महफ़िलें सजीं रात-भर
दंगों में मरते रहे बच्चे-बूढ़े सभी
इंसानियत शर्मशार
कुछ नियम
कुछ नियम ख़ास-ओ-आम होना चाहिए
दुआ सलाम सुबह-शाम होना चाहिए
नज़र ज़रूरी है सबकी कारगुज़ारी पर
ख़ुद का मगर गिरहबान होना
दुआ सलाम सुबह-शाम होना चाहिए
नज़र ज़रूरी है सबकी कारगुज़ारी पर
ख़ुद का मगर गिरहबान होना
रिश्ते
मैनें रिश्तों को बिखरते देखा है,
कुछ फ़ायेदों, कुछ कायेदों के लिये|
सुविधाओं के लिये, बुनियादी आवयश्कताओं के
कुछ फ़ायेदों, कुछ कायेदों के लिये|
सुविधाओं के लिये, बुनियादी आवयश्कताओं के
रिश्ते
मैनें रिश्तों को बिखरते देखा है,
कुछ फ़ायेदों, कुछ कायेदों के लिये|
सुविधाओं के लिये, बुनियादी आवयश्कताओं के
कुछ फ़ायेदों, कुछ कायेदों के लिये|
सुविधाओं के लिये, बुनियादी आवयश्कताओं के
किसान
डूबा सूरज की आँखें लगी थी बुझने,
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
रविवार, 26 अगस्त 2012
किसान
डूबा सूरज की आँखें लगी थी बुझने,
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
किसान
डूबा सूरज की आँखें लगी थी बुझने,
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
किसान
डूबा सूरज की आँखें लगी थी बुझने,
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
किसान
डूबा सूरज की आँखें लगी थी बुझने,
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
उसकी चाल में थी लडखडाहट
उसका मन चला मचलने |
उसकी हालत देख एक सैलाब उठा,
उस अधेड को
रिश्ते
मैनें रिश्तों को बिखरते देखा है,
कुछ फ़ायेदों, कुछ कायेदों के लिये|
सुविधाओं के लिये, बुनियादी
कुछ फ़ायेदों, कुछ कायेदों के लिये|
सुविधाओं के लिये, बुनियादी
नेत्रदान
नेत्रदान
जिंदगी के लम्हें हैं कम,
हर लम्हों में जी लो जीवन,
मौत कभी भी है अनजान,
अमर रहना है, तो कर दो
जिंदगी के लम्हें हैं कम,
हर लम्हों में जी लो जीवन,
मौत कभी भी है अनजान,
अमर रहना है, तो कर दो
एक शाम को मेरे मन को धुती हुई
एक शाम को मेरे मन को धुती हुई
एक आवाज आई वो किसी कि पायल
कि आवाज थी जिसकी आवाज के लिए
सभी कान बिचये बैटा है लेकिन
एक आवाज आई वो किसी कि पायल
कि आवाज थी जिसकी आवाज के लिए
सभी कान बिचये बैटा है लेकिन
शनिवार, 25 अगस्त 2012
kavita
एक शाम को मेरे मन को धुती हुई
एक आवाज आई वो किसी कि पायल
कि आवाज थी जिसकी आवाज के लिए
सभी कान बिचये बैटा है लेकिन
एक आवाज आई वो किसी कि पायल
कि आवाज थी जिसकी आवाज के लिए
सभी कान बिचये बैटा है लेकिन
नेत्रदान
नेत्रदान
जिंदगी के लम्हें हैं कम,
हर लम्हों में जी लो जीवन,
मौत कभी भी है अनजान,
अमर रहना है, तो कर दो
जिंदगी के लम्हें हैं कम,
हर लम्हों में जी लो जीवन,
मौत कभी भी है अनजान,
अमर रहना है, तो कर दो
कभी सोचा ना था
कभी सोचा ना था की रुकना पङेगा !
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन
कभी सोचा ना था
कभी सोचा ना था की रुकना पङेगा !
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन
कभी सोचा ना था
कभी सोचा ना था की रुकना पङेगा !
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन
कभी सोचा ना था
कभी सोचा ना था की रुकना पङेगा !
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन
कभी सोचा ना था
कभी सोचा ना था की रुकना पङेगा !
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन
इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!
लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !
मै सहता रह गया लेकिन
औरत
वो कहती है
जलती रही हूँ वर्षों से
आगे भी जलती रहूँगी
तब तक
जब तक की खाक ना हो जाऊँ
ताकि उसके बाद भी
काम आ
जलती रही हूँ वर्षों से
आगे भी जलती रहूँगी
तब तक
जब तक की खाक ना हो जाऊँ
ताकि उसके बाद भी
काम आ
औरत
वो कहती है
जलती रही हूँ वर्षों से
आगे भी जलती रहूँगी
तब तक
जब तक की खाक ना हो जाऊँ
ताकि उसके बाद भी
काम आ
जलती रही हूँ वर्षों से
आगे भी जलती रहूँगी
तब तक
जब तक की खाक ना हो जाऊँ
ताकि उसके बाद भी
काम आ
असमय ही बन पड़ती है कविताएँ ..
कभी -कभी
असमय ही बन पड़ती हैं कविताएँ
शब्दों के बाढ़ उमड़ पड़ते हैं जेहन में
काफी तीव्र हो जाती है
सोचने की
असमय ही बन पड़ती हैं कविताएँ
शब्दों के बाढ़ उमड़ पड़ते हैं जेहन में
काफी तीव्र हो जाती है
सोचने की
मिट्टी की हाँडी
अपने वतन की मिट्टी से बनी हाँडी
हाँडी में बनी चाय
चाय की सोंधी सोंधी खुशबू
खुशबू अपने वतन की मिट्टी की
अलग अलग
हाँडी में बनी चाय
चाय की सोंधी सोंधी खुशबू
खुशबू अपने वतन की मिट्टी की
अलग अलग
मिट्टी की हाँडी
अपने वतन की मिट्टी से बनी हाँडी
हाँडी में बनी चाय
चाय की सोंधी सोंधी खुशबू
खुशबू अपने वतन की मिट्टी की
अलग अलग
हाँडी में बनी चाय
चाय की सोंधी सोंधी खुशबू
खुशबू अपने वतन की मिट्टी की
अलग अलग
पुराने रास्ते
मंजर भी वही था रास्ते अलग थे
मंजिल वही थी पर हमसफ़र अलग थे
कहानी वही थी पर सपने अलग थे
आवाज़ वही थी पर कदम अलग
मंजिल वही थी पर हमसफ़र अलग थे
कहानी वही थी पर सपने अलग थे
आवाज़ वही थी पर कदम अलग
पुराने रास्ते
मंजर भी वही था रास्ते अलग थे
मंजिल वही थी पर हमसफ़र अलग थे
कहानी वही थी पर सपने अलग थे
आवाज़ वही थी पर कदम अलग
मंजिल वही थी पर हमसफ़र अलग थे
कहानी वही थी पर सपने अलग थे
आवाज़ वही थी पर कदम अलग
नेताजी,मानता हूँ ।
नेताजी,मानता हूँ ।
मेरे आख़री निवाले पर भी, हक़ है आप का, मानता हूँ ।
नेताजी, फिर भी आप रह जायेंगें भूखे, मैं जानता
मेरे आख़री निवाले पर भी, हक़ है आप का, मानता हूँ ।
नेताजी, फिर भी आप रह जायेंगें भूखे, मैं जानता
शुक्रवार, 24 अगस्त 2012
ग़ज़ल
वह तेरी हंसी थी , वह कैसा समां था
मुअत्तर तेरी ज़ुल्फ़ से गुलसितां था ,
हिनाई सफ़र था , चमन नग़मा ज़न था
मेरी
मुअत्तर तेरी ज़ुल्फ़ से गुलसितां था ,
हिनाई सफ़र था , चमन नग़मा ज़न था
मेरी
शकुन्तला
दुर्वाशा के वचनो का ना था उन्हे ज्ञान !
वह सुन रही थी पक्षियो का सुरीला गान !!
दुर्वाशा ने क्रोधित होकर कहा
वह सुन रही थी पक्षियो का सुरीला गान !!
दुर्वाशा ने क्रोधित होकर कहा
ग़ज़ल
क्यों समझ नहीं पाते पापा मेरे
आशियाँ में तुम हो अब बे बाल ओ पर ;
इन फिज़ाओं पर तुम्हारा हक नहीं
जाते हो सेहन ए चमन
आशियाँ में तुम हो अब बे बाल ओ पर ;
इन फिज़ाओं पर तुम्हारा हक नहीं
जाते हो सेहन ए चमन
रेत घरौंदा
वह सुनहरी सी थी
सुनहरी आज भी है
वह तपती थी
तपती आज भी है
समुंदर की इक प्यास लिए भटकती थी
भटकती आज भी है
कभी
सुनहरी आज भी है
वह तपती थी
तपती आज भी है
समुंदर की इक प्यास लिए भटकती थी
भटकती आज भी है
कभी
रेत घरौंदा
वह सुनहरी सी थी
सुनहरी आज भी है
वह तपती थी
तपती आज भी है
समुंदर की इक प्यास लिए भटकती थी
भटकती आज भी है
कभी
सुनहरी आज भी है
वह तपती थी
तपती आज भी है
समुंदर की इक प्यास लिए भटकती थी
भटकती आज भी है
कभी
रेत घरौंदा
वह सुनहरी सी थी
सुनहरी आज भी है
वह तपती थी
तपती आज भी है
समुंदर की इक प्यास लिए भटकती थी
भटकती आज भी है
कभी
सुनहरी आज भी है
वह तपती थी
तपती आज भी है
समुंदर की इक प्यास लिए भटकती थी
भटकती आज भी है
कभी
नेताजी,मानता हूँ ।
नेताजी,मानता हूँ ।
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/blog-post_24.html
मेरे आख़री निवाले पर भी, हक़ है आप का, मानता हूँ ।
नेताजी, फिर भी आप
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मेरे आख़री निवाले पर भी, हक़ है आप का, मानता हूँ ।
नेताजी, फिर भी आप
कुछ नियम
कुछ नियम ख़ास-ओ-आम होना चाहिए
दुआ सलाम सुबह-शाम होना चाहिए
नज़र ज़रूरी है सबकी कारगुज़ारी पर
ख़ुद का मगर गिरहबान होना
दुआ सलाम सुबह-शाम होना चाहिए
नज़र ज़रूरी है सबकी कारगुज़ारी पर
ख़ुद का मगर गिरहबान होना
बेक़रार दिल । (गीत)
बेक़रार दिल । (गीत)
दर - दर की ठोकरें खाने को, दिल बेक़रार है ।
किसीने कह दिया उसे, उनको हम से प्यार है
दिल की दरार
दिल की दरार । (गीत)
दिल की दरार से, दर्द का लावा बह रहा है ।
दोस्त, राख बन कर अब वो, पछतावा कर रहा है
दिल की दरार से, दर्द का लावा बह रहा है ।
दोस्त, राख बन कर अब वो, पछतावा कर रहा है
मैं एक बेरोजगार हूँ
मैं एक बेरोजगार हूँ
मैं इसी देश में बसने बाला, सच्चाई से जीने बाला
मगर अब भार हूँ ,क्योंकि मैं एक
मैं इसी देश में बसने बाला, सच्चाई से जीने बाला
मगर अब भार हूँ ,क्योंकि मैं एक
कह क्यों नहीं देती...?
तुम्हे तो हर रोज भीगना होता है
हर रोज सहना होता है
अनचाहे स्पर्श को,
हर रोज सामना होता है
दैत्यों से,
मैं पूछता
हर रोज सहना होता है
अनचाहे स्पर्श को,
हर रोज सामना होता है
दैत्यों से,
मैं पूछता
माँ को मालूम नहीं है...
माँ को मालूम नहीं है
की लिख चुका हूँ
कितनी ही कविताएँ उसके नाम से,
उसे तो यह भी मालूम नहीं
की वो
मेरी कविताओं
की लिख चुका हूँ
कितनी ही कविताएँ उसके नाम से,
उसे तो यह भी मालूम नहीं
की वो
मेरी कविताओं
समुंदर
समुंदर में मैं हूं
मुझ में समुंदर !
बारिश की बूँदें समुंदर में
और समुंदर बारिश की बूँदों में
मुझे करीब से
मुझ में समुंदर !
बारिश की बूँदें समुंदर में
और समुंदर बारिश की बूँदों में
मुझे करीब से
कुछ नियम
कुछ नियम ख़ास-ओ-आम होना चाहिए
दुआ सलाम सुबह-शाम होना चाहिए
नज़र ज़रूरी है सबकी कारगुज़ारी पर
ख़ुद का मगर गिरहबान
दुआ सलाम सुबह-शाम होना चाहिए
नज़र ज़रूरी है सबकी कारगुज़ारी पर
ख़ुद का मगर गिरहबान
दिल की दरार
दिल की दरार । (गीत)
दिल की दरार से, दर्द का लावा बह रहा है ।
दोस्त, राख बन कर अब वो, पछतावा कर रहा है
दिल की दरार से, दर्द का लावा बह रहा है ।
दोस्त, राख बन कर अब वो, पछतावा कर रहा है
बेक़रार दिल । (गीत)
बेक़रार दिल । (गीत)
दर - दर की ठोकरें खाने को, दिल बेक़रार है ।
किसीने कह दिया उसे, उनको हम से प्यार है
दिल की दरार
दिल की दरार । (गीत)
दिल की दरार से, दर्द का लावा बह रहा है ।
दोस्त, राख बन कर अब वो, पछतावा कर रहा है
दिल की दरार से, दर्द का लावा बह रहा है ।
दोस्त, राख बन कर अब वो, पछतावा कर रहा है
गुरुवार, 23 अगस्त 2012
ashaman ka kehar
ak din shubha hi ashman se
tuta asha kehar barsha bankar
barsha bhi ashe vashe nhe
lekar aai shetej par ashman ka kehar
nab se utare ase ke gav,gale sher
har jagah ase pale ke log ho gay
apane garo ke ander ak bhi na
dekha bhar shdko par
raj asha keya bharsha ne jashe ke
tuta pada
tuta asha kehar barsha bankar
barsha bhi ashe vashe nhe
lekar aai shetej par ashman ka kehar
nab se utare ase ke gav,gale sher
har jagah ase pale ke log ho gay
apane garo ke ander ak bhi na
dekha bhar shdko par
raj asha keya bharsha ne jashe ke
tuta pada
दिल की दरार । (गीत)
दिल की दरार । (गीत)
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/blog-post_23.html
दिल की दरार से, दर्द का लावा बह रहा है ।
दोस्त, राख बन कर अब वो,
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/blog-post_23.html
दिल की दरार से, दर्द का लावा बह रहा है ।
दोस्त, राख बन कर अब वो,
शकुन्तला
दुर्वाशा के वचनो का ना था उन्हे ज्ञान !
वह सुन रही थी पक्षियो का सुरीला गान !!
दुर्वाशा ने क्रोधित होकर कहा
वह सुन रही थी पक्षियो का सुरीला गान !!
दुर्वाशा ने क्रोधित होकर कहा
शकुन्तला
दुर्वाशा के वचनो का ना था उन्हे ज्ञान !
वह सुन रही थी पक्षियो का सुरीला गान !!
दुर्वाशा ने क्रोधित होकर कहा
वह सुन रही थी पक्षियो का सुरीला गान !!
दुर्वाशा ने क्रोधित होकर कहा
बुधवार, 22 अगस्त 2012
बेक़रार दिल । (गीत)
बेक़रार दिल । (गीत)
दर - दर की ठोकरें खाने को, दिल बेक़रार है ।
किसीने कह दिया उसे, उनको हम से प्यार है
दर - दर की ठोकरें खाने को, दिल बेक़रार है ।
किसीने कह दिया उसे, उनको हम से प्यार है
दम तोड़ती रही ज़िंदगी रात-भर
दम तोड़ती रही ज़िंदगी रात-भर
बेपरवाह महफ़िलें सजीं रात-भर
दंगों में मरते रहे बच्चे - बूढ़े
इंसानियत शर्मशार रही
बेपरवाह महफ़िलें सजीं रात-भर
दंगों में मरते रहे बच्चे - बूढ़े
इंसानियत शर्मशार रही
मंगलवार, 21 अगस्त 2012
बरसत बरषा परम सुहावन / शिवदीन राम जोशी
बरसत बरषा परम सुहावन ।
रिमझिम रिमझिम बरस रहा है,ये आया सखि सावन ॥
बादर उमड़ी घुमड़ी सखि छाये, दादुर कोयल गीत
रिमझिम रिमझिम बरस रहा है,ये आया सखि सावन ॥
बादर उमड़ी घुमड़ी सखि छाये, दादुर कोयल गीत
रविवार, 19 अगस्त 2012
ललन की बधाई है / शिवदीन राम जोशी
लता पता वृक्षन पे लहर लहर झूम रहे,
हरा सघन वृन्दावन बेल अमर छाई है |
नन्दलाल जनम लियो अष्टमी
हरा सघन वृन्दावन बेल अमर छाई है |
नन्दलाल जनम लियो अष्टमी
भगवान का निवास
भगवान का निवास
वेद-पुराण के परिभाष
कण-कण में इश्वर का वास
जीव-निर्जीव सब में निवास
फिर स्वर्ग में, या वेकुंठ में
वेद-पुराण के परिभाष
कण-कण में इश्वर का वास
जीव-निर्जीव सब में निवास
फिर स्वर्ग में, या वेकुंठ में
दर्दे-ऐ-दिल बताना है
दर्दे-ऐ-दिल बताना है
खुद की बेरुखी पर
वह अगर एक बूंद आंसू बहाते
कसम खुदा की
हम गम का सागर पी जाते
खुद की वेवफाई
खुद की बेरुखी पर
वह अगर एक बूंद आंसू बहाते
कसम खुदा की
हम गम का सागर पी जाते
खुद की वेवफाई
मेरा सच
मेरा सच
मैं बिसमताओं से चिन्तित
आवाज़ करता हूँ बुलन्द
सोच से हैरान-परेशान
वातानुकूलित कमरे में बन्द
सवाल
मैं बिसमताओं से चिन्तित
आवाज़ करता हूँ बुलन्द
सोच से हैरान-परेशान
वातानुकूलित कमरे में बन्द
सवाल
ऐसी भी होती एक आत्म-व्यथा
ऐसी भी होती एक आत्म-व्यथा
उन्मुक्त,आनन्दित, उच्छ्वास सह अभिमान
पुत्र-जन्म घोषित-अघोषित परिणाम- सन्मान
अम्बर
उन्मुक्त,आनन्दित, उच्छ्वास सह अभिमान
पुत्र-जन्म घोषित-अघोषित परिणाम- सन्मान
अम्बर
मुक्ती -उपचार,
भाव अदृश्य
क्रिया सदृश्य
तल्लीन अगाध
आद्यन्त निर्बाध
क्रूर’ अन्त पास
दूर फिर भी प्रयास’
समक्ष
क्रिया सदृश्य
तल्लीन अगाध
आद्यन्त निर्बाध
क्रूर’ अन्त पास
दूर फिर भी प्रयास’
समक्ष
"चिंतन" और "चिंता"
"चिंतन" से होती "चेतना" जाग्रत
बिन चेतना से शरीर है मृत
"चिंतन" "चेतना" का रूप करे सिद्ध
"चेतना" आत्मा की शक्ति में
बिन चेतना से शरीर है मृत
"चिंतन" "चेतना" का रूप करे सिद्ध
"चेतना" आत्मा की शक्ति में
शायद यह ही है कविता
शायद यह ही है कविता
मेरे अंतकरण कोई सूक्ष्म अनुभूति
या नये सुख की उपस्थिति
या अनजाना दर्द की पीड़ा
लगा
मेरे अंतकरण कोई सूक्ष्म अनुभूति
या नये सुख की उपस्थिति
या अनजाना दर्द की पीड़ा
लगा
लफ्ज की क्या कहें
हर लफ्ज.....
सदीयों से
कभी आग
कभी धुआँ
कभी पानी
कभी बरफ
का अहसास ........!
हर लफ्ज.....
सदीयों से
जलती आग-सा
फैले हुवे धुआँ
सदीयों से
कभी आग
कभी धुआँ
कभी पानी
कभी बरफ
का अहसास ........!
हर लफ्ज.....
सदीयों से
जलती आग-सा
फैले हुवे धुआँ
कृष्ण-जन्म
कृष्ण-जन्म
जन्मदिन की देने मुबारकवाद,
लेकर आया साथ एक फरियाद,
धर्म की स्थापना को आये, और चले गये
अधर्मीयों
जन्मदिन की देने मुबारकवाद,
लेकर आया साथ एक फरियाद,
धर्म की स्थापना को आये, और चले गये
अधर्मीयों
नाम की महिमा
नाम की महिमा
भजो प्रभु का नाम
बिगढ़े, बने तेरे काम
देख हाल प्रभु चकराये
नाम की महिमा से शरमाये
किस तरह लें प्रभु
भजो प्रभु का नाम
बिगढ़े, बने तेरे काम
देख हाल प्रभु चकराये
नाम की महिमा से शरमाये
किस तरह लें प्रभु
नव अरुणोदय
नव अरुणोदय
भोर तले नभ में शोभीत अरुणोदय
दूर कंही मंदिर में स्वर गूंजे मंगलमय
अम्बर में रक्तिम उजाला
भोर तले नभ में शोभीत अरुणोदय
दूर कंही मंदिर में स्वर गूंजे मंगलमय
अम्बर में रक्तिम उजाला
आया रे सावन
आया रे सावन
खिल उठा मन, चहका चित्तवन, झूमे आंगन आंगन ,
सखीयाँ नाचो-गाओं, धूम मचाओ,बड़ गई धड़कन
बहका-बहका मोसम, भीगी
खिल उठा मन, चहका चित्तवन, झूमे आंगन आंगन ,
सखीयाँ नाचो-गाओं, धूम मचाओ,बड़ गई धड़कन
बहका-बहका मोसम, भीगी
आनंदमय अनुभव
आनंदमय अनुभव
अवसाद-ग्रस्त एकांत के क्षण ;
बिन आहट मन में करे गुंजन
विषाद या बैराग का है आह्वान
पाप या पुण्य का
अवसाद-ग्रस्त एकांत के क्षण ;
बिन आहट मन में करे गुंजन
विषाद या बैराग का है आह्वान
पाप या पुण्य का
तुम्हारा चहेरा
तुम्हारा चहेरा
कभी कभी मन की आँखे खोल
देखता हूँ तुम्हारा जब चहेरा
तढपाते बीते जो पल अनमोल
दिखता है सब
कभी कभी मन की आँखे खोल
देखता हूँ तुम्हारा जब चहेरा
तढपाते बीते जो पल अनमोल
दिखता है सब
मंजूरी पाना हैं
मिट्टी का काम मूरत बनाना भी होता
अभी हम गीली मिट्टी के बने जरा कच्चे खिलौने हैं
आग में पिघल-कर ही सोना खरा होता
अभी
अभी हम गीली मिट्टी के बने जरा कच्चे खिलौने हैं
आग में पिघल-कर ही सोना खरा होता
अभी
सच का अनुसंधान !!
क्यों कोई होत बुरा, बात मन को सताय !
जन्मे जब एक से, बुरा कैसे वह बन जाय !!
बुरा जब आदमी नहीं, उस में कैसे आता शैतान
जन्मे जब एक से, बुरा कैसे वह बन जाय !!
बुरा जब आदमी नहीं, उस में कैसे आता शैतान
सवक जिन्दगी का
सब जन्मे इक बीज से
सबकी मिट्टी एक
मन मे दुविधा पड़ गयी
हो गये रूप अनेक
जो तू सच्चा मन से
सब से बोल एक
उंच नीच की
सबकी मिट्टी एक
मन मे दुविधा पड़ गयी
हो गये रूप अनेक
जो तू सच्चा मन से
सब से बोल एक
उंच नीच की
विनाश की आहट
सुन्दर नैसर्गिक झलकियाँ
हवा,फिजा और बादियाँ
पर्वत,झरने, और नदियाँ
पेड़, पौधे, और बगियाँ
जंगल, मैदान,और
हवा,फिजा और बादियाँ
पर्वत,झरने, और नदियाँ
पेड़, पौधे, और बगियाँ
जंगल, मैदान,और
मिलन की परिभाष
भोर की लाली छाई,स्वर्णिम आभा का प्रकाश,
ली तुमने अब अंगड़ाई,अधखुली नींद का आभास,
यह उलझे बालों की
ली तुमने अब अंगड़ाई,अधखुली नींद का आभास,
यह उलझे बालों की
बदलाव सोच में
बदलते समय के चाहत के घोड़े
सदीयों से सदीयों के अन्तराल में
नित्य नये आयाम की होड़ से
बदलते जा रहें हैं बेहिसाब
सदीयों से सदीयों के अन्तराल में
नित्य नये आयाम की होड़ से
बदलते जा रहें हैं बेहिसाब
गीत कोई नया
मन मेरे गीत कोई नया गुनगुना दो।
स्वर सारे सरगम के सुर सजा दो
छंद मेरे उमढ पढ़ो, गीत प्यारा सा बना दो
मन मेरे गीत कोई
स्वर सारे सरगम के सुर सजा दो
छंद मेरे उमढ पढ़ो, गीत प्यारा सा बना दो
मन मेरे गीत कोई
भगवान बनाम इंसान
इंसानों के भगवान
दिखते हैं उनकी कल्पनायों से
जीते हैं उनकी श्रद्धा-बिश्वास से
इंसानों के भगवान
सर्वांग
दिखते हैं उनकी कल्पनायों से
जीते हैं उनकी श्रद्धा-बिश्वास से
इंसानों के भगवान
सर्वांग
तेरा अहसास
रह गया मेरे पास...
तेरा प्यार, तेरी तकरार
बदन की खुशबु,
बालों की महक
अनबोले लम्बे कथन
रसीले अधरों का मिलन
अनचाही
तेरा प्यार, तेरी तकरार
बदन की खुशबु,
बालों की महक
अनबोले लम्बे कथन
रसीले अधरों का मिलन
अनचाही
“पीकर डगमगाना
“पीकर डगमगाना जरूरी था जीने के लिए,
अब डगमगाता रहता पीने के लिए”.
इसलिए पीने की आदत बुरी जीने के लिए
डगमगाओ मत,ना
अब डगमगाता रहता पीने के लिए”.
इसलिए पीने की आदत बुरी जीने के लिए
डगमगाओ मत,ना
हुस्न
हुस्न से बढकर नशे का न कोई मयखाना,
उड़ गए होश, पर चाहत का नहीं भरा पैमाना
होश-में हुवे मदहोश पर नशे से भरा नहीं
उड़ गए होश, पर चाहत का नहीं भरा पैमाना
होश-में हुवे मदहोश पर नशे से भरा नहीं
स्पर्श
यह स्पर्श न अब वो स्पर्श रहा,
यह स्पर्श न अब कुछ स्पर्श रहा …
सच है कवी आपने सच कहा
जीवन की आपाधापी का यह सच
यह स्पर्श न अब कुछ स्पर्श रहा …
सच है कवी आपने सच कहा
जीवन की आपाधापी का यह सच
शनिवार, 18 अगस्त 2012
मैं उस चमन का माली हूँ
मैं उस चमन का माली हूँ
जिसके फूलो पे मेरा आधिकार नहीं
हर फूल नफरत करता है मुझसे
काँटों को भी मुझसे प्यार नहीं
एक
जिसके फूलो पे मेरा आधिकार नहीं
हर फूल नफरत करता है मुझसे
काँटों को भी मुझसे प्यार नहीं
एक
रात ढलती नहीं
रात ढलती नहीं वक्त कटते नहीं
आंसुओं से ये पत्थर पिघलते नहीं
हमसफर भी हमें कुछ ऐसा मिला
साथ में दो कदम साथ चलते
आंसुओं से ये पत्थर पिघलते नहीं
हमसफर भी हमें कुछ ऐसा मिला
साथ में दो कदम साथ चलते
यह दिल भी क्या चीज है
यह दिल भी क्या चीज है
जो हर पल ही तडपता है
शाम सुबेरे जब भी देखो
याद तुम्हारी दे जाता है
हर वक्त तुम्हारे पास
जो हर पल ही तडपता है
शाम सुबेरे जब भी देखो
याद तुम्हारी दे जाता है
हर वक्त तुम्हारे पास
आजादी आजादी चिल्लाते हो
क्या हुआ क्यों इतना शोर मचाते हो
आजादी आजादी चिल्लाते हो
भूख से मरते बच्चे , आनाज फेका जाता है
फिर भी मेरा भारत
आजादी आजादी चिल्लाते हो
भूख से मरते बच्चे , आनाज फेका जाता है
फिर भी मेरा भारत
बहुत रात हो गई है
मुस्कुराना आब क़यामत की बात हो गई है
कोई कहता है मुझे सो जाओ ,बहुत रात हो गई है
कभी चूमा करता था जिन होठो को मै
उन्ही
कोई कहता है मुझे सो जाओ ,बहुत रात हो गई है
कभी चूमा करता था जिन होठो को मै
उन्ही
मेरे मरने पर आंसू न बहाना
मेरे मरने पर आंसू न बहाना
वफाये भूल जाना तुम
आपने हाथों में मेहंदी सजाना
वफाये भूल जाना तुम
गिला शिकवा हो जो
वफाये भूल जाना तुम
आपने हाथों में मेहंदी सजाना
वफाये भूल जाना तुम
गिला शिकवा हो जो
तुम्हारी नजर झुके तो शाम हो जाये
तुम्हारी नजर झुके तो शाम हो जाये
मयखाने में भीड़ जाम पे जाम हो जाये
तुम चाहो तो कुछ भी कर दो
अगर पानी छु दो तो शराब
मयखाने में भीड़ जाम पे जाम हो जाये
तुम चाहो तो कुछ भी कर दो
अगर पानी छु दो तो शराब
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !देशभक्ति गीत!
देशभक्ति गीत
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !देशभक्ति गीत!
देशभक्ति गीत
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
एक बार देखो
इन प्यारी प्यारी नजरो से एक बार देखो
दिल कह रहा है मेरे यार देखो
देखो जवाँ फिजाये कुछ गुनगुना रही है
आओं
दिल कह रहा है मेरे यार देखो
देखो जवाँ फिजाये कुछ गुनगुना रही है
आओं
शाम होती है
शाम होती है एक दर्द की रात लिए
रुलाती है बहुत दिल की बात लिए
वफा करके बहुत ही दोस्तों
दिल रोता है आँखों में आंसू
रुलाती है बहुत दिल की बात लिए
वफा करके बहुत ही दोस्तों
दिल रोता है आँखों में आंसू
बेवफा
जिसे अपने दिल के सबसे करीब पाया
मौत का पैगाम उसी की ओर से आया
हम तो मुस्कुराये तुम मेरी जान लोगे
तो उसने हस कर कहा
मौत का पैगाम उसी की ओर से आया
हम तो मुस्कुराये तुम मेरी जान लोगे
तो उसने हस कर कहा
बेवफा
जिसे अपने दिल के सबसे करीब पाया
मौत का पैगाम उसी की ओर से आया
हम तो मुस्कुराये तुम मेरी जान लोगे
तो उसने हस कर कहा
मौत का पैगाम उसी की ओर से आया
हम तो मुस्कुराये तुम मेरी जान लोगे
तो उसने हस कर कहा
शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
अक्सर हमारे हाथ यही रह जाता है
अक्सर हमारे हाथ यही रह जाता है
डर और पैसे में इंसाफ़ बिक जाता है
है झूठ तो फाँसी पे चढ़ा दो मुझको
इंसाफ के इंतज़ार
डर और पैसे में इंसाफ़ बिक जाता है
है झूठ तो फाँसी पे चढ़ा दो मुझको
इंसाफ के इंतज़ार
गुरुवार, 16 अगस्त 2012
बात इतनी सी थी
बात इतनी सी थी, फ़साना बना दिया,
तोडकर मेरे दिल को, अफसाना बना दिया..
टूटे दिल के टुकडो को, देखकर जी रहे
तोडकर मेरे दिल को, अफसाना बना दिया..
टूटे दिल के टुकडो को, देखकर जी रहे
यादें
दिन सुहाना था, शाम हसीं है,
फिर भी कुछ कमी सी महसूस होती है,
कोई गर पास है तो फिर क्यों
नयन भरे प्यार
फिर भी कुछ कमी सी महसूस होती है,
कोई गर पास है तो फिर क्यों
नयन भरे प्यार
यादें
दिन सुहाना था, शाम हसीं है,
फिर भी कुछ कमी सी महसूस होती है,
कोई गर पास है तो फिर क्यों
नयन भरे प्यार
फिर भी कुछ कमी सी महसूस होती है,
कोई गर पास है तो फिर क्यों
नयन भरे प्यार
सपनो के संसार में
तन्हा है दुनिया की भीड़ में हम,
ना ठिकाना, हैं मंजिल की तलाश में गुम,
मिलेगा कभी तो खोया संसार,
अभी भी
ना ठिकाना, हैं मंजिल की तलाश में गुम,
मिलेगा कभी तो खोया संसार,
अभी भी
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !देशभक्ति गीत!
देशभक्ति गीत
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !देशभक्ति गीत!
देशभक्ति गीत
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !देशभक्ति गीत!
देशभक्ति गीत
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
________________________________________
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा !
उजड़ने न पाए चमन ये हमारा !
ज़मीनों फलक ये जंहा के
हम शर्मिंदा हैं
मै भी तुझसे तू भी मुझसे,कुछ बात से हम शर्मिंदा हैं
न तू भूला न मै भूला, प्यार तो अब भी जिंदा है
न कुछ तेरा सब-कुछ
न तू भूला न मै भूला, प्यार तो अब भी जिंदा है
न कुछ तेरा सब-कुछ
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े !
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े,
कही भोज में नित रसगुल्ले, कही सूखे टुकड़े,
कही राम-भरत सा प्रेम, कही विभीषण
खोजूं "सत्यमेव जयते" वाला आमीर
मै तो हूँ आप जैसा एक बंदा
जब झेलू कसता पेट्रोल का फंदा
साफ़-सुथरा जामना लागे गंदा
मन करे है बन जावूँ स्कन्दा !
जब झेलू कसता पेट्रोल का फंदा
साफ़-सुथरा जामना लागे गंदा
मन करे है बन जावूँ स्कन्दा !
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े !
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े,
कही भोज में नित रसगुल्ले, कही सूखे टुकड़े,
कही राम-भरत सा प्रेम, कही विभीषण
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े !
मै एक भारत और मेरे कई मुखड़े,
कही भोज में नित रसगुल्ले, कही सूखे टुकड़े,
कही राम-भरत सा प्रेम, कही विभीषण
सपनो के संसार में
तनहा है दुनिया की भीड़ में हम,
ना ठिकाना, हैं मंजिल की तलाश में गुम,
मिलेगा कभी तो खोया संसार,
अभी भी
ना ठिकाना, हैं मंजिल की तलाश में गुम,
मिलेगा कभी तो खोया संसार,
अभी भी
सपनो के संसार में
तनहा है दुनिया की भीड़ में हम,
ना ठिकाना, हैं मंजिल की तलाश में गुम,
मिलेगा कभी तो खोया संसार,
अभी भी
ना ठिकाना, हैं मंजिल की तलाश में गुम,
मिलेगा कभी तो खोया संसार,
अभी भी
सपनो के संसार में
तनहा है दुनिया की भीड़ में हम,
ना ठिकाना, हैं मंजिल की तलाश में गुम,
मिलेगा कभी तो खोया संसार,
अभी भी
ना ठिकाना, हैं मंजिल की तलाश में गुम,
मिलेगा कभी तो खोया संसार,
अभी भी
बुधवार, 15 अगस्त 2012
गाँधी ने अद्वैत को देखा था...
एक विशाल
अँधेरे बंद कमरे में
लोग एक-एक कर के
अपने-अपने हाथ में
चिराग लेकर प्रवेश करते रहे...
जो गये...लौटकर नहीं
अँधेरे बंद कमरे में
लोग एक-एक कर के
अपने-अपने हाथ में
चिराग लेकर प्रवेश करते रहे...
जो गये...लौटकर नहीं
मंगलवार, 14 अगस्त 2012
हम शर्मिंदा हैं
मै भी तुझसे तू भी मुझसे,कुछ बात से हम शर्मिंदा हैं
न तू भुला न मै भुला, प्यार तो अब भी जिंदा है
न कुछ तेरा सब-कुछ
न तू भुला न मै भुला, प्यार तो अब भी जिंदा है
न कुछ तेरा सब-कुछ
वजह
रेगिस्तान में
रेत की चादर की तरह
मेरी ज़िंदगी भटकती रही
कभी यहाँ, कभी वहाँ
मैं ढूँढता रहा अपना ठिकाना
हवा बहा
रेत की चादर की तरह
मेरी ज़िंदगी भटकती रही
कभी यहाँ, कभी वहाँ
मैं ढूँढता रहा अपना ठिकाना
हवा बहा
बात इतनी सी थी
बात इतनी सी थी, फ़साना बना दिया,
तोडकर मेरे दिल को, अफसाना बना दिया..
टूटे दिल के टुकडो को, देखकर जी रहे
तोडकर मेरे दिल को, अफसाना बना दिया..
टूटे दिल के टुकडो को, देखकर जी रहे
बात इतनी सी थी
बात इतनी सी थी, फ़साना बना दिया,
तोडकर मेरे दिल को, अफसाना बना दिया..
टूटे दिल के टुकडो को, देखकर जी रहे
तोडकर मेरे दिल को, अफसाना बना दिया..
टूटे दिल के टुकडो को, देखकर जी रहे
सोमवार, 13 अगस्त 2012
बता मैं सड़क की तरफ क्यों देखती हूं
बता मैं सड़क की तरफ क्यों देखती ह वह कली और फूल के बीच में कहीं रहती थी। उसका चेहरा फूलों और कलियों के बीच की सुंदरता
बता मैं सड़क की तरफ क्यों देखती हूं
बता मैं सड़क की तरफ क्यों देखती ह वह कली और फूल के बीच में कहीं रहती थी। उसका चेहरा फूलों और कलियों के बीच की सुंदरता
बता मैं सड़क की तरफ क्यों देखती हूं
वह कली और फूल के बीच में कहीं रहती थी। उसका चेहरा फूलों और कलियों के बीच की सुंदरता में कहीं महकता था। जैसे ईश्वर ने
कविताएँ
कामना
कितनी गहरी रही ये खाई
मन काँपता डर से
अतल गहराइयाँ मन की
झाँकने का साहस कहाँ
दूर विजन एकांत में
सरिता कूल
कितनी गहरी रही ये खाई
मन काँपता डर से
अतल गहराइयाँ मन की
झाँकने का साहस कहाँ
दूर विजन एकांत में
सरिता कूल
कविताएँ
कामना
कितनी गहरी रही ये खाई
मन काँपता डर से
अतल गहराइयाँ मन की
झाँकने का साहस कहाँ
दूर विजन एकांत में
सरिता कूल
कितनी गहरी रही ये खाई
मन काँपता डर से
अतल गहराइयाँ मन की
झाँकने का साहस कहाँ
दूर विजन एकांत में
सरिता कूल
प्यार की लाश
दर्द ही दर्द है, मेरे दिल में सनम
हो गए दूर तुम और कितने, बेबस है हम ..
क्या यही है वफ़ा, होके मुझसे
हो गए दूर तुम और कितने, बेबस है हम ..
क्या यही है वफ़ा, होके मुझसे
प्यार की लाश
दर्द ही दर्द है, मेरे दिल में सनम
हो गए दूर तुम और कितने, बेबस है हम ..
क्या यही है वफ़ा, होके मुझसे
हो गए दूर तुम और कितने, बेबस है हम ..
क्या यही है वफ़ा, होके मुझसे
सारे रिश्ते सारे नाते
सारे रिश्ते सारे नाते, पल में एक तोड़ चले,
मेरे भग्वन, मेरे अरमां मेरा भरम तोड़ चले,
दिल के अरमानो की जलती चिता को
मेरे भग्वन, मेरे अरमां मेरा भरम तोड़ चले,
दिल के अरमानो की जलती चिता को
सारे रिश्ते सारे नाते
सारे रिश्ते सारे नाते, पल में एक तोड़ चले,
मेरे भग्वन, मेरे अरमां मेरा भरम तोड़ चले,
दिल के अरमानो की जलती चिता को
मेरे भग्वन, मेरे अरमां मेरा भरम तोड़ चले,
दिल के अरमानो की जलती चिता को
युग तेरा है...
उठो वत्स !
सारी रात जागकर तेरी माँ ने
सम्पूर्ण कथा सुनी है तेरे तात से ।
ओ अभिमन्यु !
उठ...चक्रव्यूह तोड़ दे
युग को
सारी रात जागकर तेरी माँ ने
सम्पूर्ण कथा सुनी है तेरे तात से ।
ओ अभिमन्यु !
उठ...चक्रव्यूह तोड़ दे
युग को
रविवार, 12 अगस्त 2012
दान की बकरी
प्रस्तावना
एक -सुनने आये है l
दुसरा - बताने आये है l
सभी -हम पंचतन्त्र की सुन्दर एक कहानी लाये है
एक -सुनने आये है l
दुसरा - बताने आये है l
सभी -हम पंचतन्त्र की सुन्दर एक कहानी लाये है
प्रवीण 'फकीर' इक नई शायरी
मुफलिसी, लाचारगी , बेचारगी |ऐसी होती है भला क्या जिंदगी ||
काफ़िये बेदम नज़र आते जहां ,कर रही मातम वहां पर शायरी
काफ़िये बेदम नज़र आते जहां ,कर रही मातम वहां पर शायरी
बाल मुकुन्दं !!
करारविन्देन पदारविन्दं, मुखारविन्दे विनिवेशयानम !
बटस्य पत्रस्य पुटे शयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि
बटस्य पत्रस्य पुटे शयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि
दान की बकरी
प्रस्तावना
एक -सुनने आये है l
दुसरा - बताने आये है l
सभी -हम पंचतन्त्र की सुन्दर एक कहानी लाये है
एक -सुनने आये है l
दुसरा - बताने आये है l
सभी -हम पंचतन्त्र की सुन्दर एक कहानी लाये है
Prajatankra
प्रजातंत्र में ,
वाणी की स्वतंत्रता के नाम पार ,
कीचड़ उछालते है l
परनिंदा में प्रवीण ब्यक्ति ,
कुशल
वाणी की स्वतंत्रता के नाम पार ,
कीचड़ उछालते है l
परनिंदा में प्रवीण ब्यक्ति ,
कुशल
Shabd
शब्द मधुर औ स्नेहयुक्त हो ,
ग्लानि , भय ,छल , कपट
ईर्ष्या , निंदा का न ओदे पट ,
दम्भ ,द्वेष , अभिमान रहित हो l
ग्लानि , भय ,छल , कपट
ईर्ष्या , निंदा का न ओदे पट ,
दम्भ ,द्वेष , अभिमान रहित हो l
Hindi Pakhwada
हिंदी है अपनी भाषा , इसकी शान बढाएंगे ,
सब भाषाए बहने इसकी ,
इसका मl न बदयेंगे l
तन में हिंदी , मन में
सब भाषाए बहने इसकी ,
इसका मl न बदयेंगे l
तन में हिंदी , मन में
Dan Ki Bakri
प्रस्तावना
एक -सुनने आये है l
दुसरा - बताने आये है l
सभी -हम पंचतन्त्र की सुन्दर एक कहानी लाये है
एक -सुनने आये है l
दुसरा - बताने आये है l
सभी -हम पंचतन्त्र की सुन्दर एक कहानी लाये है
शुक्रवार, 10 अगस्त 2012
श्री आदित्याय नमः : सुमंत मिस्र
उषा के गाल पर
लाज की लाली बिखराते
स्वर्णाभ किरणों से
कर देते
प्रकृति को अनावृत्त
निखर पड़ता
अप्रतिम
लाज की लाली बिखराते
स्वर्णाभ किरणों से
कर देते
प्रकृति को अनावृत्त
निखर पड़ता
अप्रतिम
गुरुवार, 9 अगस्त 2012
भोले नाथ भगवान् शिव : डॉ आशुतोष वाजपेयी लखनऊ
भोले नाथ भगवान् शिव को एक घनाक्षरी छंद निवेदित है
जान्हवी को धारण है किया जटा मध्य
प्रभु कन्ठ सर्प माल ने भी
जान्हवी को धारण है किया जटा मध्य
प्रभु कन्ठ सर्प माल ने भी
श्री आदित्याय नमः : सुमंत मिस्र
उषा के गाल पर
लाज की लाली बिखराते
स्वर्णाभ किरणों से
कर देते
प्रकृति को अनावृत्त
निखर पड़ता
अप्रतिम
लाज की लाली बिखराते
स्वर्णाभ किरणों से
कर देते
प्रकृति को अनावृत्त
निखर पड़ता
अप्रतिम
वेदान्त के प्रकाण्ड विद्वान " श्रीहर्ष " - by Swami Mrigendra Saraswati
वेदान्त के प्रकाण्ड विद्वान " श्रीहर्ष " - by Swami Mrigendra Saraswati
- वेदान्त के प्रकाण्ड विद्वान " श्रीहर्ष " { खण्डनखण्डखाद्य
- वेदान्त के प्रकाण्ड विद्वान " श्रीहर्ष " { खण्डनखण्डखाद्य
माँ गंगा : श्री आशुतोष बाजपाई लखनऊ
सवैयाविष्णुपदी शिवशीश सुशोभित आर्यधरा
शुचि पोषक गंगा रोग निवारक साधक के हित
पुण्य पवित्र सुयोजक गंगा निर्मल
शुचि पोषक गंगा रोग निवारक साधक के हित
पुण्य पवित्र सुयोजक गंगा निर्मल
प्रवीण 'फकीर' इक नई शायरी
मुफलिसी, लाचारगी , बेचारगी |ऐसी होती है भला क्या जिंदगी ||
काफ़िये बेदम नज़र आते जहां ,कर रही मातम वहां पर शायरी
काफ़िये बेदम नज़र आते जहां ,कर रही मातम वहां पर शायरी
परशुराम स्तुतिः ॥ Shri Kaviraj Sharma
परशुराम स्तुतिः ॥
कुलाचला यस्य महीं द्विजेभ्यः प्रयच्छतः सोमदृषत्त्वमापुः बभूवुरुत्सर्गजलं समुद्राः स
कुलाचला यस्य महीं द्विजेभ्यः प्रयच्छतः सोमदृषत्त्वमापुः बभूवुरुत्सर्गजलं समुद्राः स
सच माँ ---- By Smt Renuka Madan Ji
सच माँ ----
माँ कभी तो बतिया जाओ -----------
आओ थोडा वक़्त निकालो
मुझसे यूँ ही बस बतियालो
कुछ मेरे दिल का गुब्बार सह
माँ कभी तो बतिया जाओ -----------
आओ थोडा वक़्त निकालो
मुझसे यूँ ही बस बतियालो
कुछ मेरे दिल का गुब्बार सह
माँ !!श्री प्रदीप शुक्ल की अमर पंक्तियाँ जो हर माँ के लाल की आवाज हो !
श्री प्रदीप शुक्ल की अमर पंक्तियाँ जो हर माँ के लाल की आवाज हो !
घुटनों से रेंगते रेंगते मै कब पैरों पर खड़ा
घुटनों से रेंगते रेंगते मै कब पैरों पर खड़ा
बाल मुकुन्दं !!
करारविन्देन पदारविन्दं, मुखारविन्दे विनिवेशयानम !
बटस्य पत्रस्य पुटे शयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि
बटस्य पत्रस्य पुटे शयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि
बालं मुकुन्दं
करारविन्देन पदारविन्दं, मुखारविन्दे विनिवेशयानम !
बटस्य पत्रस्य पुटे शयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि
बटस्य पत्रस्य पुटे शयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि
यादें
मैं महाजन नहीं
हिसाब किताब रखूँ
प्यार में
क्या पाया
क्या खोया
जब कभी ख़ुदको
बेबस-असहाय
महसूस किया
ख़ुद पर
हिसाब किताब रखूँ
प्यार में
क्या पाया
क्या खोया
जब कभी ख़ुदको
बेबस-असहाय
महसूस किया
ख़ुद पर
गोपाल गोपाल गोपाल :
गोपाल गोपाल गोपाल
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम ।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम ।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम
गोपाल गोपाल गोपाल :
गोपाल गोपाल गोपाल
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम ।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम ।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम
सर जी
तुमने सोचा तो बहुत था
हमें बेड़ियों में बाँध
अपने इशारों पर नचाओगे
चाबुक दिखाकर डराओगे
तुम आगे चलोगे
हम
हमें बेड़ियों में बाँध
अपने इशारों पर नचाओगे
चाबुक दिखाकर डराओगे
तुम आगे चलोगे
हम
मंगलवार, 7 अगस्त 2012
सोमवार, 6 अगस्त 2012
आदिवासी अँधेरे में
आदिवासी तुम भी हो
वो भी हैं,
उनके यहाँ घूमते हैं
ब्रांडेड पंखे और
तुम घुमाते हो ताड़ के पंखे,
उनके यहाँ
बिजली
वो भी हैं,
उनके यहाँ घूमते हैं
ब्रांडेड पंखे और
तुम घुमाते हो ताड़ के पंखे,
उनके यहाँ
बिजली
माँ... क्या हो तुम ?
माँ
क्या हो तुम..?
जेठ की चिलचिलाती धूप हो या
सावन की रिमझिम फुहार,
अनवरत बहने वाली गंगा हो या
किसी झील का शांत
क्या हो तुम..?
जेठ की चिलचिलाती धूप हो या
सावन की रिमझिम फुहार,
अनवरत बहने वाली गंगा हो या
किसी झील का शांत
रविवार, 5 अगस्त 2012
दीया अंतिम आस का [एक सिपाही की शहादत के अंतिम क्षण ]
दीया अंतिम आस का, प्याला अंतिम प्यास का
वक्त नहीं अब, हास परिहास उपहास का
कदम बढाकर मंजिल छू लूँ, हाथ उठाकर
वक्त नहीं अब, हास परिहास उपहास का
कदम बढाकर मंजिल छू लूँ, हाथ उठाकर
तेरी फितरत:-
तेरी फितरत:-
------------------
क्या होती है इबादत ये जानती हूँ मैं !
इस दुनियां के सारे रंग पहचानती हूँ मैं !!
मैं रुसवा हो गयी
------------------
क्या होती है इबादत ये जानती हूँ मैं !
इस दुनियां के सारे रंग पहचानती हूँ मैं !!
मैं रुसवा हो गयी
मेरी कविताएँ
सोचा था मैंने
अब नहीं लिखूँगा कविताएँ
टूटन की ,घुटन की /लावारिस आँखों के सपनों की
सामाजिक विवशताओं की /जलती हुई
अब नहीं लिखूँगा कविताएँ
टूटन की ,घुटन की /लावारिस आँखों के सपनों की
सामाजिक विवशताओं की /जलती हुई
शनिवार, 4 अगस्त 2012
तेरी फितरत:-
तेरी फितरत:-
------------------
क्या होती है इबादत ये जानती हूँ मैं !
इस दुनियां के सारे रंग पहचानती हूँ मैं !!
मैं रुसवा हो गयी
------------------
क्या होती है इबादत ये जानती हूँ मैं !
इस दुनियां के सारे रंग पहचानती हूँ मैं !!
मैं रुसवा हो गयी
तेरी फितरत:-
तेरी फितरत:-
------------------
क्या होती है इबादत ये जानती हूँ मैं !
इस दुनियां के सारे रंग पहचानती हूँ मैं !!
मैं रुसवा
------------------
क्या होती है इबादत ये जानती हूँ मैं !
इस दुनियां के सारे रंग पहचानती हूँ मैं !!
मैं रुसवा
मेरी कविता बोली .....
एक दिन
मैं कविता लिखने बैठा
की अचानक कहीं से
कविता आ धमकी, बोली-
क्या कर रहे हो..?
मैंने कहा
तुम्हारी रचना कर
मैं कविता लिखने बैठा
की अचानक कहीं से
कविता आ धमकी, बोली-
क्या कर रहे हो..?
मैंने कहा
तुम्हारी रचना कर
मेरी कविताएँ
सोचा था मैंने
अब नहीं लिखूँगा कविताएँ
टूटन की ,घुटन की /लावारिस आँखों के सपनों की
सामाजिक विवशताओं की /जलती हुई
अब नहीं लिखूँगा कविताएँ
टूटन की ,घुटन की /लावारिस आँखों के सपनों की
सामाजिक विवशताओं की /जलती हुई
मेरी कविताएँ
सोचा था मैंने
अब नहीं लिखूँगा कविताएँ
टूटन की ,घुटन की /लावारिस आँखों के सपनों की
सामाजिक विवशताओं की /जलती हुई
अब नहीं लिखूँगा कविताएँ
टूटन की ,घुटन की /लावारिस आँखों के सपनों की
सामाजिक विवशताओं की /जलती हुई
शुक्रवार, 3 अगस्त 2012
कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं………..
शब्द नए चुनकर गीत वही हर बार लिखूँ मैं
उन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैं
विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की
उन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैं
विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की
दीया अंतिम आस का [एक सिपाही की शहादत के अंतिम क्षण ]
दीया अंतिम आस का
दीया अंतिम आस का, प्याला अंतिम प्यास का
वक्त नहीं अब, हास परिहास उपहास का
कदम बढाकर
दीया अंतिम आस का, प्याला अंतिम प्यास का
वक्त नहीं अब, हास परिहास उपहास का
कदम बढाकर
प्रकृति
रात की निर्जनता का सृजन कोई बतला दे !
इस उदासता और कठोरता का मर्म कोई बतला दे !!
सात समन्दर की लहरो का अन्त कोई बतला
इस उदासता और कठोरता का मर्म कोई बतला दे !!
सात समन्दर की लहरो का अन्त कोई बतला
कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं………..
शब्द नए चुनकर गीत वही हर बार लिखूँ मैं
उन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैं
विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की
उन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैं
विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की
बुधवार, 1 अगस्त 2012
प्रकृती
रात की निर्जनता का सृजन कोई बतला दे !
इस उदासता और कठोरता का मर्म कोई बतला दे !!
सात समन्दर की लहरो का अन्त कोई बतला दे
इस उदासता और कठोरता का मर्म कोई बतला दे !!
सात समन्दर की लहरो का अन्त कोई बतला दे
मेरा परिचय
पता नही क्यू मै अलग खङा हूं दुनिया से !
अपने सपनो को ढूढता विमुख हुआ हूं दुनिया से !!
पता नही क्यूं मै इस दुनिया से अलग
अपने सपनो को ढूढता विमुख हुआ हूं दुनिया से !!
पता नही क्यूं मै इस दुनिया से अलग
दुःख
दुःख की नही कोइ परीभाषा,
वह है पत्तो की तरह !
आता है बसन्त की तरह,
जाता है पतझण की तरह !!
होता ये धुप छाव की तरह,
अपनो के
वह है पत्तो की तरह !
आता है बसन्त की तरह,
जाता है पतझण की तरह !!
होता ये धुप छाव की तरह,
अपनो के
मां
ममता और सौहार्द से बनी हुयी है मां !
कोई कहे कुमाता कोई माता लेकिन है मां !!
जिसके स्पर्श भर से बेता प्रसन्न हो उठता
कोई कहे कुमाता कोई माता लेकिन है मां !!
जिसके स्पर्श भर से बेता प्रसन्न हो उठता
गीत
एक दिन मै बैठा गीत लिख रहा था !
दर्द और प्रेम का संगीत लिख रहा था!!
निःशब्द और अक्षर का निर्जन गीत लिख रहा था !
बिना कगज
दर्द और प्रेम का संगीत लिख रहा था!!
निःशब्द और अक्षर का निर्जन गीत लिख रहा था !
बिना कगज
भ्रष्टाचार
यहा हर तरफ है बिछा हुआ भ्रष्टाचार !
हर तरफ फैला है काला बाजार !!
राजा करते है स्पेक्ट्रम घोटाला !
जनता कहती है उफ मार
हर तरफ फैला है काला बाजार !!
राजा करते है स्पेक्ट्रम घोटाला !
जनता कहती है उफ मार
बचपन
उसे बचपन न समझो वह फुल सी कली है !
जहा न हो बच्चे वह कौन सी गली है !!
कुछ की होती है गर्भ मे हत्या !
तथा कुछ करते है यौवन
जहा न हो बच्चे वह कौन सी गली है !!
कुछ की होती है गर्भ मे हत्या !
तथा कुछ करते है यौवन
छू हो गई
बढ़ती उम्र थी, जवानी छू हो गई
खुशबू सूखे गुलाब की छू हो गई
अब होश में आए तो क्या आए
जब रोशनी चिरागों की छू हो
खुशबू सूखे गुलाब की छू हो गई
अब होश में आए तो क्या आए
जब रोशनी चिरागों की छू हो
हरीयाली
जब आता है सावन और चलती है पुरवाई !
ऐसे मेघ बरसते जैसे हरीयाली आयी !!
शान्त पेङ पर बैठी कोयल करती है गान !
नाचता हुआ मोर
ऐसे मेघ बरसते जैसे हरीयाली आयी !!
शान्त पेङ पर बैठी कोयल करती है गान !
नाचता हुआ मोर
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