मंजिल से प्यार मत कर राही ।
रास्तो को चूमना सीख़ ।
क्षण भर की होती है मंजिल मिलने की ख़ुशी।
मैंने लोगों को पूरी जिंदगी रास्ते कोसते देखा है
जिंदगी मिली है तो सोच मत।
प्यार को सही गलत मैं तोल मत।
क्षण भर की होती है समझदारी ।
मैंने समझदार लोगों की आँखों मैं पानी देखा है
चार दिन की होती है ये जिन्दगी
हटा दे तू समाज की ये गन्दगी
क्षण भर की होती है बाहर समाज की वाहवाही
मैंने लोगों को चार दीवारी मैं घुटते देखा है
लेखन=गौरव परिहर
Read Complete Poem/Kavya Here जिंदगी की किताब
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें