गुरुवार, 5 नवंबर 2015

अमर प्रेम ...

अमर प्रेम …
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प्रिय अंश कर रहा उजाला ,
दिव्य भरवा रहा मय का प्याला ,
रूप का करूँ अंजन,
शिल्प करूँ चन्दन ,
जाना प्रीत बड़ा ही निराला ,
आला हुज़ूर आला I

संध्या का जैसे देवगीत है ,
अरमाँ में प्रधान बड़ी प्रीत है ,
है शाही परिक्रम में ,
वो शारदे भजन में ,
शीत कँवल की तरह कमाल ,
आला हुज़ूर आला I

घिर आए जो ऋतु वर्षा ,
तो इन्द्राणी खलखल में तड़पा ,
हरि शाह मंतर ,
अनुराग कंकण ,
करने लगे मनहरण मजाल ,
आला हुज़ूर आला I

रस्म यहाँ करन को बड़ी हैं ,
प्रीत ये गजगामिनी है ,
रात गई थम ,
राख तंग हम ,
प्रीत उड़ा बनके जो गुलाल ,
आला हुज़ूर आला I

सुबहोशाम उन्ही की वंदना हो ,
हुस्न मंजरी लावण्या हो ,
क्या करूँ मैं अर्पण ,
सुर्ख ज़िंदा दर्पण ,
मुर्गे जैसे हो रहे हलाल ,
आला हुज़ूर आला I

– सुहानता ‘शिकन ‘

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