गुरुवार, 5 नवंबर 2015

।ग़ज़ल।आजमाते जा रहे सब ।

।ग़ज़ल।आजमाते जा रहे सब।

जिंदगी में दोस्ती के गीत गाते जा रहे सब ।
पर दोस्तों की कदर ही अब भुलाते जा रहे सब ।।

बढ़ रही तादाद अपने दोस्तों की हर पहर ।
पर न जाने ठोकरों से जख़्म पाते जा रहे सब ।।

मर्ज की लेते दवा पर मर्ज अब बढ़ने लगा है ।
दर्द है ,तन्हाइयां पर मुस्कुराते जा रहे सब ।।

है यहाँ सब गम से बोझिल अपने ही हालात से ।
तर्ज मिलता ही नही पर गुनगुनाते जा रहे है ।।

न समझ पाये कभी जो प्यार की बारीकियों को ।
दिल के टुकड़े हो गये पर दिल लगाते जा रहे है ।।

इश्क़ और दोस्ती में शर्त तो होती नही है ।
न जाने फिर कौन सा वादा निभाते जा रहे सब ।।

साहिलों पर देखता हूँ रकमिश” तेरी दास्ताँ मैं ।
तोड़कर दिल कह रहे की आजमाते जा रहे सब ।।

…..R.K.MISHRA

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