बुधवार, 4 नवंबर 2015

पथिक

हे पथिक!
ओ अनजान पथ कि राही
वृक्ष की भांति
एक स्थान पर
अपनी जड़े न जमा
न ही पर्वत के समान स्थूल बन
हे पथिक!
वयु के वेग के समान
अपने मार्ग पर
निरन्तर बढ़े चल
पीछे मुड़कर न देख
जहां जमे खड़े हैं
मात्र अतीत के प्रश्न
और बीते समय की कुछ परछाईयां
हे पथिक!
रूक कर न सोच
अपने भविष्य की
यदि सुनाई दे तुझे
निष्ठुर युग की पुकार
या बाधक हों मेरे मार्ग में
तेरे आदर्श
तो मुक्त कर उन्हें
और जीवन के सुदीर्ध पथ पर
बढ़े चल बढ़े चल
क्षितिज पर तुम्हें कोई प्रकार रहा है।

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