हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! जहां तुम दिशा दो वहीं है विजयश्री !
रणभूमि में खडे़ सगे सब, एक ओर सेना ले कौरव, एक ओर सेना ले पाण्डव।
मध्य रथ को हाँक चले तब, अर्जुन को लेकर श्री केशव।
अर्जुन का हुआ अंग शिथिल, मुख सूखा, गाँडीव द्दूटा, हृदय हुआ व्यथित।
क्या राज्य ? क्या विजय ? क्या धन का सुख ? इनकी मृत्यु से उपजेगा पाप दुख।
यही असमंजस अर्जुन को घेरे, यही व्यथा अर्जुन की भेदी!
हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! जहां तुम दिशा दो वहीं है विजयश्री !
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