घर बन जाते बच्चो की जेल
मुँह से चलती भाप की रेल
सर्दी से बदन जब लगे ठिठुरने
मानो आया मौसम सर्दी का !!
बाजारों में हो त्योहारो की रौनक
हाठ और मेलो की होती भरमार
बच्चे बनते है जब सेंटा-क्लाज़
मानो आया मौसम सर्दी का !!
पालक, मेथी, सरसो का साग
हरी सब्जियों की लगती कतार
आलू जब नया नया आता हो
मानो आया मौसम सर्दी का !!
गोभी, मूली के परांठे बनते
चाय संग जब पकौड़े चलते
खाने पीने में आता हो स्वाद
मानो आया मौसम सर्दी का !!
आँगन में जब अलाव जलती हो
रजाई में बैठ गपशप चलती हो
जब शाम जल्दी से ढलती हो
मानो आया मौसम सर्दी का !!
सन्डे की छुट्टी का जलवा हो
घर बनता गाजर का हलवा हो
जब सिकुड़ते सबके हाथ हो
मानो आया मौसम सर्दी का !!
गज्जक रेवड़ी से प्यार हो
मूंगफली पे आई बहार हो
चाय काफी की सरकार हो
मानो आया मौसम सर्दी का !!
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——:: डी. के. निवातियाँ ::——
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