कही तो हैं मंजिल,
कही तो हैं काँरवा,
चलना हैं अहिस्ते,
हम भी गम के मारे हैं…..
दुख तो है साथी,
सुख हैं मेरी मंजिल,
डगर हैं टेड़ी-मेड़ी,
खुद मौत के किनारे हैं,
हम भी गम के मारे हैं…..
झुठी हैं मुस्कूराहटे,
झुटी हैं शान,
गम की दरिया में,
आँसुओं के धारे हैं,
हम भी गम के मारे हैं …..
छोटी सी नैन हमारी,
सपने हज़ारे हैं,
गम के आँसुओं में,
सितारे हज़ारे हैं,
सपनों के आसमा में,
आँसुओं के सहारे हैं,
हम भी गम के मारे हैं…!
सोमवार, 2 नवंबर 2015
हम भी गम के मारे हैं
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें