मंगलवार, 3 नवंबर 2015

खता...

खता…

"हद से ज्यादा कभी किसी से प्यार नहीं करना,
कर भी लिए तो देर से इज़हार नहीं करना,
सही-गलत के फेर में हाथ से अच्छी चीज निकल जाती,
इसीलिए कभी वक़्त का इंतज़ार नहीं करना।"
– सुहानता 'शिकन'

खता मेरी मुझे ठीक से करना प्यार नहीं आता,
और तेरी कि करना तुझे इज़हार नहीं आता,
नदी के हम दो ओर खड़े हैं दो अधूरे किनारों सा,
सजा है ये कि करना ये कई बार नहीं आता।

क्या खूब है कि बाँहों में हम एक दूजे की खेल रहे,
उफ ! ये आँख का सपना कभी साकार नहीं आता।1।

गुलशन हैं ये फ़िजा, नज़ारे रँगीनियों की तह तलक,
कमी है कि इस वादी में कभी बहार नहीं आता।2।

गुज़र गए हैं महीनों रक्खे फूल तेरी किताबों में,
कैसे तेरी नज़र को वो दीदार नहीं आता।3।

कल ही की तो बात है मैंने दिल से आवाज़ लगाया था,
शायद तुझे सुनाई मेरी पुकार नहीं आता।4।

जज़्बा है, मुझमें जिद़ है, इरादे चाँद चुराने की,
जाने क्यूँ पर लब़ों में ये आकार नहीं आता।5।

सोचता हूँ कि तुझे मिटा दूँ याद के हर एक पन्ने से,
मगर ये तनहा दिल को कहीं करार नहीं आता।6।

गुँज रही है माथे में तू 'शिकन ' के जैसे सवार हो,
शुकर है कि अभी सर पे मेरे खुमार नहीं आता।7।

– सुहानता 'शिकन'

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here खता...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें