आओ दिवाली की नई रस्म अदा फरमाये
जलाकर एक चिराग मोहब्बत का हम
किसी गरीब घर में भी खुशिया फैलाये
कुछ इस तरह दीप पर्व की शोभा बढाए !!
बहुत छुड़ाए हमने बम पटाखे
बहुत रूपये हमने यूँ ही जलाये
करके दीप-दान इस बार ख़ुशी से,
किसी के अँधेरे घर रौशनी फैलाये !!
बहुत बाँटे महंगे तोहफे, मिठाई
इस बार मिटटी के दीपक बाँटे जाये
हर घर हो लक्ष्मी का आवागमन
गरीब मजदूरो को भी लाभ पहुंचाये !!
इस दिन करे बिजली का त्याग
घरो में घी, तेल के दीपक जलाये
चारो और बिखरेगी छटा निराली
और वातावरण संग ऊर्जा भी बचाये !!
छोड़ो कल परसो की बाते पुरानी
आज कुछ नया कर के दिखलाये
बंद करे ये महँगी आतिश बाजियां
क्यों न पर्यावरण को हम बचाये !!
घर-घर महकेगा भीनी सुगनध से
अगर हम घी-तेल के दीपक जलाये
लौट आयंगे दिन फिर राम राज्य के
अगर पूर्वजो के पदचिन्हो पर हम चल जाये !!
तोड़कर सब नफ़रत की दीवारे
आपस में प्रेम का अलख जगाये
दिलो में रहे न कोई द्वेष भाव
ख़ुशी ख़ुशी सबको गले लगाये !!
हिन्दू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई
क्यों न सब एक संग मिल जाये
रोज मनेगी ईद, दिवाली, किसमिस
धर्म के ठेकेदारो को सबक मिल जाये !!
किसी घर में ना अब रहे अँधेरा
सूने घर में भी एक दीपक जलाये
नहीं करेंगे हम अब ध्वनि प्रदुषण
सब मिलकर आज ये प्रण उठाये !!
आओ दिवाली की नई रस्म अदा फरमाये
जलाकर एक चिराग मोहब्बत का हम
किसी गरीब घर में भी खुशिया फैलाये
कुछ इस तरह दीप पर्व की शोभा बढाए !!
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[———डी. के. निवातियाँ ———]
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